• 28 Apr, 2025

यहीं चुने हुए रास्ते मंजिलें तय करते हैं चुनौतियां अवसर की तरह मिलती हैं बस नजरिया वैसा होना चाहिए लोगों का विश्वास जीतना भी रास्ते के कितने ही रोड़े हटा देता है

बास्किंग रिज, न्यू यॉर्क. किताबों में पढ़ा था की ज़िंदगी कई बार आपको दो राहे पर ला खड़ा करती है और आपको सिर्फ़ एक रास्ता चुनना होता है। मज़े की बात यह है की आपको उस वक्त यह खुद नहीं पता होता कि यही वो दोराहा है जिसका ज़िक्र आपने किताबों मैं पढ़ा या बुजुर्गों से सुना है ।
मैंने अपने पहले कार्यस्थल एक साफ्ट लिंक नाम की कम्प्यूटर साफ्टवेयर कम्पनी में काम करना अभी शुरू ही किया था, मुश्किल से एक ही हफ़्ता हुआ होगा । पहला जॉब मतलब आपकी ज़िंदगी का यादगार समय। जैसे ही मैंने अपना अध्ययन समाप्त किया वैसे ही यह कार्य मुझे हाथ लग गया और वो भी मेरे अपने रायपुर शहर में जहां मैंने लगभग अपना सारा क़ीमती बचपन गुज़ारा। इस नए जॉब को हासिल करने में मुझे कोई भी तकलीफ़ नहीं आयी क्योंकि कम्प्यूटर साइयन्स एक नया क्षेत्र था और उस वक्त 1988 में बहुत ही कम लोग इस  क्षेत्र में थे, हाँ यह भी था कि बहुत कम संस्थाएँ इस क्षेत्र में काम कर रही थीं। ख़ैर काम आसानी से मिल गया और मुझे ख़ुशी थी कि इस कम्पनी के मालिक (boss) प्रताप मोहन खुद बहुत अच्छे और जानेमाने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलाजी (IIT)और भारतीय प्रबंधन संस्थान, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (IIM) से पढ़कर खुद अपना काम शुरू कर रहे थे और इस कम्पनी को इन्होंने दो सालों  में ही शहर की दो सबसे बड़ी कम्प्यूटर कम्पनी के रूप में स्थापित कर दिया था। इंटर्व्यू के समय उन्होंने मुझे बताया था कि इस कम्पनी में उनके अलावा 11 लोग हैं और उनमें से चार बहुत अच्छे अनुभवी और सीन्यर स्टाफ़ हैं जिन्होंने इस क्षेत्र में 3-4 वर्ष से भी ज़्यादा काम किया है और पिछली कम्पनी से साथ में हैं। 
मुझे तो काम का बिल्कुल भी अनुभव नहीं था क्यूंकि यह मेरा पहला जॉब था। मैंने बड़े उत्साह से काम लेना शुरू किया और स्पंज की तरह सब कुछ सोख लेने का इरादा लेकर मैं वहाँ काम करने लगा। मालिक के तो दर्शन भी दुर्लभ थे मगर मैं बाक़ी सभी लोगों से भी काफ़ी प्रभावित हो गया जब उन्होंने मुझे बताया की उन्होंने कितनी जल्दी कितने अच्छे साफ्टवेयर बना लिए हैं और सारे ग्राहक (clients) को भी सम्भाल रहे हैं। मैं भी जल्दी ही सब कुछ सीखकर उनके जैसा बन जाना चाह रहा था।
चलिए अब वापिस दोराहे वाली बात पर आते हैं। एक दिन मैं जब सुबह ऑफ़िस पहुँचा तो देखा कि बॉस जा रहे हैं  महत्त्वपूर्ण क्लायंट से मिलने और सीन्यर्ज़ से कहा कि वे शाम तक ही वापस आएँगे। उनके जाने के क़रीब 15 मिनट बाद ही सीन्यर स्टाफ़ ने सभी लोगों को कॉन्फ़्रेन्स रूम में बुलाया और सबके आते ही यह स्पष्ट कर दिया कि वे सब बॉस के व्यवहार से बहुत ही उद्वेलित हैं और अलग होकर अपनी खुद का संस्थान खोल लेंगे और सभी को उनके अनुभव के हिसाब से वेतन देंगे जो कि यहाँ से कम से कम दो गुना ज़्यादा होगा। मैं तो यह सुनकर स्तब्ध रह गया। मुझे ज़रा भी जानकारी नहीं थी की ये सब लोग बॉस से इतना नाखुश हैं और मैंने उनका यक़ीन भी कर लिया क्योंकि मुझे जॉब और वर्क की कोई जानकारी तो थी नहीं तो मुझे लगा कि ये लोग ठीक कह रहे होंगे। दूसरी तरफ़ मैंने यह सोचा की बॉस ने अभी तक मेरे साथ तो कोई भी बुरा व्यवहार नहीं है तो क्या मैं इन 10 लोगों की बात मान कर उनका साथ दूँ?
यही वो दोराहा था। मेरा दिल तेज़ी से धड़क रहा था और मैं कोई फ़ैसला नहीं कर पा रहा था। इतनी देर में सब लोगों ने अपने समान इत्यादि समेट लिए और बाहर जाने लगे। मैंने भी अपना बैग पैक किया और उनके साथ साथ दरवाज़े तक आ गया। मैंने आख़िरी बार सोचा की मैं बॉस को कैसे बिना कोई ठोस कारण के छोड़ सकता हूँ? मैंने निर्णय ले लिया की मैं नहीं जाऊँगा उन सब के साथ और दरवाज़ा बंद करके मैं वापस बैठ गया अपने स्थान पर! पूरा दिन मैं सोचता रहा कि क्या मैंने ठीक किया? मैंने दो गुनी तनख़्वाह के बारे मैं तो शायद एक बार भी नहीं सोचा मगर सबसे ज़्यादा दुःख मुझे उन अनुभवी लोगों के साथ काम करने का मौक़ा लुप्त हो जाने का था।
शाम हो गयी और बॉस वापस आ गए और वे मुझे अकेला देखकर हैरान हो गए। मैंने उनको पूरा क़िस्सा बताया तो उन सभी का एक साथ छोड़कर जाने का उनको भी बहुत दुःख हुआ। मगर इस वाक़ये ने मेरा भविष्य बदल दिया। अगले दो वर्ष शायद मेरी ज़िंदगी के सबसे बहुमूल्य रहे। जिसे अंग्रेज़ी में कहते है - he took me under his wings! प्रताप मोहन जी ने मुझे वो सब कुछ उन दो वर्षों मैं सिखा दिया जो शायद मैं चार वर्षों मैं भी नहीं सीख पाता और मैंने उनके साथ क़रीब से काम करके उनके अनुभवों से सीखकर भी ज्ञान प्राप्त कर लिया। मैं बॉस का असिस्टेंट भी था और उनका दायाँ हाथ भी बन गया और सभी क्लायंट के साथ भी रिश्ता बन गया। कुछ महीनों के बाद हमने और 3 नए लोगों को चुन कर रख लिया जिनको काम सिखाने का ज़िम्मा अब मेरा था। बहुत जल्दी ही हमारा काम और भी अच्छे से चलने लगा।  अगर मैंने उस दोराहे वाले दिन वो निर्णय नहीं लिया होता तो शायद मेरा भविष्य कुछ और ही होता।
दो वर्षों के बाद एक बार फिर मैंने अपने आप को एक और दोराहे पर पाया। प्रताप मोहन जी ने यह फ़ैसला लिया की हम अपने कम्पनी बंद करके हमारे सबसे बड़े क्लायंट रायपुर अलॉयस एंडस्टील (RASL) के कम्प्यूटर विभाग को सम्भाल लेंगे। यह सभी के लिए काफ़ी फ़ायदे का सौदा था। मज़े की बात यह की RASL ने मेरा औपचारिक इंटर्व्यू तक नहीं लिया और मुझे असिस्टेंट मैनेजर की पोस्ट मिल गयी सिर्फ़ इसलिए की प्रताप मोहन जी को मैनेजर बनाया गया था और उन्होंने यह शर्त रखी कि मुझे भी साथ में लिया जाए।
इस नयी कम्पनी RASL में कटिंग एज सॉफ्टवेयर तथा हार्डवेयर ख़रीदे गए थे और उसको सीखना भी अपने आप में काफ़ी बड़ी चुनौती थी। मुश्किल से 40 दिनों के अंदर बॉस ने एक धमाकेदार खबर दे डाली की वो आर.ए.एस.एल. (RASL)को छोड़कर गुजरात की एक बड़ी कम्पनी में मैनेजिंग डिरेक्टर बनकर जा रहे हैं। वक्त ने मुझे फिर एक बार एक दोराहे पर खड़ा किया था और निर्णय लेने का समय आ गया था कि मैं कोई एक रास्ता चुनूँ। इस कम्पनी में बने रहना मतलब था सारी चुनोतियों का अकेले ही सामना करना क्यूंकि बॉस यहाँ नहीं होंगे मदद करने के लिए या मैं उनसे बात करता कि मैं उनके साथ नयी कम्पनी में चलूँ। मैंने निर्णय ले लिया था यहीं आर.ए.एस.एल. में रहकर चुनौतियों का सामना अकेले करूंगा। शायद अब मुझे प्रताप मोहन जी की परछाई से आगे आना होगा और अपने पैरों पर खुद खड़े होना होगा। वैसे तो यहाँ 6-7 और लोग भी थे कम्प्यूटर डिपार्टमेंट में मगर उन किसी ने नयी तकनीक को सीखने के लिए आगे कदम नहीं बढ़ाया। वो लोग पिछले कई सालों से वहाँ थे मगर उन्होंने नए कार्य को सीखने में रुचि नहीं ली। इसका मतलब यह था की मैं अब किसी और मदद की अपेक्षा नहीं रख सकता था। अगर मैं इस नयी तकनीक को नहीं सीखकर विकसित कर पाया तो मैं अपने को कम्पनी से बाहर मान लूँ ऐसा ही समझूँ।
अगर मेरे पिछले दो वर्ष बहुत आसान रहे थे तो अगले दो वर्ष कठिनाइयों से भरे भी रहे। सारी ज़िम्मेदारी प्रताप मोहन जी की अनुपस्थिति में मेरे ऊपर आ गयी थी और मुझे नया सिस्टम और टेक्नॉलजी को समझकर नए साफ्टवेयर को बनाना था जो कि पर्सनल कम्पयूटर्स की प्रोग्रामिंग से एकदम भिन्न था। यहाँ यूसर्स के दृष्टिकोण से सिस्टम विकसित करना था जो की मैंने कभी किया ही नहीं था। मैंने काफ़ी कुछ तो मोहन रेड्डी की मदद से और बाक़ी मेनुअल्सपढ़ पढ़कर खुद को सिखाया और रात दिन ऑफ़िस में बिताए। मुझे अच्छे से याद है कई बार मैंने रात मैं 1-2 घंटे के लिए ऑफ़िस मैं हाई कम्प्यूटर स्टेशनेरीको बिछाकर विश्राम किया मगर इन सवा दो सालों मैं जो मैंने सीखा वो ज़िंदगीभर काम आया। मतलब की खुद पर भरोसा करना और यह अच्छे से समझ लेना कि अकेले भी बहुत कुछ किया जा सकता है अगर हम हिम्मत ना हारेंतो। हाँ मुझे काफ़ी सहयोग मिला एक और उपदेशक मेरे मोहन रेड्डी से जो की 6 महीने तक वहाँ न्यू सिस्टम इंस्टॉल करने वाली कम्पनी ओआरजी सिस्टम्ज़ की तरफ़ से रायपुर अलॉयस एंडस्टीलभेजे गए थे। उनका काम था नए  कम्पयूटर्स को इंस्टॉल करके वहाँ पर साफ्टवेयर्स को शुरू करवाना जो की बाद में रायपुर अलॉयस एंडस्टील केस्टाफ़ को ही सम्भालना होगा। मोहन रेड्डी से मेरी अच्छी दोस्ती हो गयी और उन्होंने मुझे काफ़ी कुछ सिखाया जो मुझे आगे बढ़ने में मददगार साबित हुए। ६ महीने के बाद मोहन के जाने तक मैंने अपने आप को इस काबिल बना लिया था कि मैं अकेले नए सॉफ़्ट्वेर को आगे अच्छे से विकसित कर सकूँ। लगभग सवा दो वर्षों में इस कम्पनी के नए सिस्टम अच्छे से चलने लगे थे जो कि उम्मीद से बेहतर विकसित हुवे थे और वो भी काफ़ी कम समय में और इसका परिणाम यह हुआ की मुझे कम्पनी ने तेज गति से प्रमोशन दिए। 
भाग्य से यह हुआ की उन सवा दो वर्षों में जो अनुभव मैंने हासिल किया वो अमेरिका और अन्य विकसित देशों में काफ़ी माँग पर था। मुझे जल्दी ही बाहर जाने का मौक़ा मिला और 1993 में मुझे विदेश जाकर काम करने का मौका मिला। आज मुझे  अमेरिका में रहते हुए लगभग २८ वर्ष हो चुके हैं। यहाँ पर मैंने इन वर्षों में काफ़ी बड़ी कंपनियों में काम करने का मोका मिला जैसे किमोर्गन स्टेनली, जेपी मोर्गन, सिटी ग्रुप, फायज़र और मर्क इत्यादि। मैं न्यू यॉर्क शहर के एक सबर्ब बास्किंग रिज (Basking Ridge) में अपनी पत्नी सपना के साथ रहता हूँ। मेरा पुत्र अलिन न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटीसे अपनी पढ़ाई पूरी करके न्यू यॉर्क मैं सिटीग्रुप के इन्वेस्टमेंट बैंकिंग क्षेत्र में कार्यरत है। मेरी पुत्री सलोनी मिशीगन यूनिवर्सिटीमें अपनी पढ़ाई पूरी कर रही है। मैं अपनी ज़िंदगी से बहुत संतुष्ट हूँ और बचपन से ही रहा हूँ।
मैं एएक्सए एक्सएस (AXA XL )नाम की एक अंतरराष्ट्रीय कम्पनी मैं डेटा प्रटेक्शन सब्जेक्टमैटर एक्स्पर्ट के रूप में कार्यरत हूँ। ईश्वर की कृपा और परिजनों के आशीर्वाद से इस क्षेत्र मेरी एक पहचान बन चुकी है और डेटा गवर्नन्स तथा डेटा प्रटेक्शन की अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंसेस में मुझेएक वक्ता के तौर पर आमंत्रित किया जाता है । कई डेटा से संबंधित पत्रिकाओं में मेरे लेख प्रकाशित हो चुके हैं। 
अंग्रेज़ी में एक कहावत है - it takes a village to raise a child! ( इट टेक्स ए विलेज टु रेज ए चाइल्ड ) मेरे संदर्भ में ये ख़री उतरती है। मेरी यहाँ तक की यात्रा में बहुत लोगों का हाथ है। मेरे ममेरे भाई अतुल सरन ने मुझे कम्प्यूटर क्षेत्र में आने का रास्ता बताया। शायद आपको याद हो कि 30 साल पहले बिना इंजीनियरिंगया मेडिकलकी शिक्षा प्राप्त किए हुए कुछ बन पाना असम्भव सा माना जाता था। कम्प्यूटर क्षेत्र में जाने के लिए जो संस्थान मैंने नागपुर में चुना उसकी फ़ीस बहुत अधिक थी, गोलानी परिवार ने उस वक्त आर्थिक मदद की। प्रताप मोहन और मोहन रेड्डी के योगदान के बारे में आप ऊपर पढ़ ही चुके हैं। अपने परिवार के लोग तो हमेशा साथ देते हाई हैं मगर इस तरह का सहारा बाहर से मिलना शायद उतना सामान्य नहीं है। ये लिस्ट दरसल बहुत लम्बी है जो इस लेख में समां ना पाए। शायद आपको विश्वास ना हो मगर मैं कभी भी महत्वकांक्षी नहीं रहा मगर क़िस्मत ने मुझे हमेशा ही कोई ना कोई Mentor (उपदेशक)का सहारा दिया है और मैं कभी भी उनका एहसान चुका नहीं पाया पर मैंने कोशिश की है कि मैं उनके उस अच्छे व्यवहार को आगे बाँटता चलूँ। 
इतने वर्ष बीत चुके हैं मगर मुझे आज भी वो दिन याद हैं जब मुझे 33 वर्ष पहले वक़्त ने पहले दोराहे पर ला खड़ा किया था। यह कहना तो मुश्किल है कि उस निर्णय ने मेरा भविष्य किस हद तक निर्धारित किया मगर मेरा मानना है की मैं शायद आज यहाँ नहीं होता जहां हूँ।