• 28 Apr, 2025

केसर की कमरे में होती है खेती

केसर की कमरे में होती है खेती

● केसर की खेती फुल टाइम नौकरी के साथ ● पंजाब के दो भाई मिल कर कर रहे हैं कमाल

मुक्तसर (पंजाब ) (निरंतर पहल)। पंजाब की मिट्टी की तासीर ही कुछ ऐसी है कि लोग मिट्टी की ओर खिचें चले आते हैं। यहां की सरजमी से बहने वाली पांच नदियों से ही इस धरती को नाम मिला है 'पंजाब'पांच नदियों का पानी यानी 'पंज आब'। हमेशा से इस प्रदेश की मिट्टी फसलों से आबाद रही है और यहां के आम आवाम की खुशहाली में पंजाब की खेती का बड़ा किरदार रहा है। नई नस्ल भी इसीलिए मिट्टी से ही जुड़ी हुई है। यहां के दो भाई पिछले दो साल से केसर की इंनडोर खेती कर खासा पैसा और नाम कमा रहे हैं।

  जानकर ताज्जुब होगा कि पिछले दो साल से वे 10 फिट गुणा 10 फिट के छोटे से कमरे में केसर उगा रहे हैं। एक भाई ने कहा कि मैं वैसे तो बैंक में जॉब करता हूं और साथ ही साथ मैने केसर की खेती का ये साइड बिजनेस शुरू किया है। दूसरे साल में जाके मेरा केसर अब इंनडोर खेती की टेकनीक से सफलता पूर्वक उग कर उन्नत हो चुका है। श्री मुक्तसर साहिब के रहने वाले दो भाई सौमिल गुब्बर और रघु गुब्बर पिछले कई सालों  से एक साइड बिजनेस की तलाश में थे। तभी उन्हें पता चला कि भारत में केसर  की कुल मांग का महज 30 प्रतिशत हिस्सा ही कश्मीर की वादियों में पैदा होता है। बाकी का 70 प्रतिशत बाहर से आयात किया जाता है।

इस गैप को देखते हुए इसको भरने  का ख्याल उनके मन में आया और उन्होंने कश्मीर यूनिवर्सिटी से केसर के इनडोर कल्टीवेशन की तकनीक का पता लगाया और फिर इस तकनीक की बारीकियों को समझ कर पंजाब में अपने घर से शुरु कर दी केसर की खेती ।  सौमिल गुब्बर ने बताया कि शुरुआती दौर में हमारा बजट छोटा सा था और इसमें हमने साढ़े पांच लाख के करीब खर्चा किया है। जिसमे ये साराकुछ  जिसमें केसर सीड्स है और कोल्ड स्टोरेज, चिलर यूनिट, रैक्स और ट्रेज आप देख सकते हैं ये सारा खर्चा मिला कर ये रुम केसर की इंडोर खेती के लिए तैयार किया जा सका।

हालांकि केसर से बाद में उन्हें अच्छी सफलता मिली पर अपने पहले प्रयास में सफल नहीं हुए थे। गुब्बर बंधुओं ने कहा कि यद्यपि हम पंजाब से हैं पर खेती से हमारा दूर-दूर तक किसी किस्म का नाता नहीं था।  जब हम इसमें हाथ आजमाने जा  रहे थे तो पहले तो सभी यही कहते थे ये किस पंगे में हाथ आजमाने जा रहे हो। ये पंजाब की सरजमी पर ग्रो नहीं हो सकता ये सिर्फ कश्मीर की सरजमी और आबो-हवा में ही  पनप सकता है। पर इन सभी टिप्पणियों और कमेंट्स की अनदेखी -अनसुनी कर हम दोनों भाइयों ने यह काम शुरु किया। अब जब हम नई तकनीक से केसर की पैदावार लेने में कामयाब हो गए हैं तो रोज इस बारे में जानने के लिए 30 से 40 काल्स आते हैं जिसमें ज्यादातर लोगों की इच्छा होती है कि वे केसर की खेती की तकनीक अपनी आंखों से देखें। वे कहते हैं कि हम आपका रुम देखना चाहते हैं, हम आपका सेट अप समझना चाहते हैं ।

आज सौमिल और रघु ने मिलकर केसर की इंनडोर खेती करके किसान बनकर अपनी एक्ट्रा इनकम का जरिया तो बना ही लिया है साथ ही नौकरी की तलाश में गांव छोड़कर जाने वालों को भी केसर की खेती की ट्रेनिंग देकर उनकी मदद भी कर रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि देश के दीगर हिस्सों में भी पारंपरिक खेती से हटकर किसान नई और फायदेमंद खेती की ओर रुख करेंगे।