• 28 Apr, 2025

कैलाश-मानसरोवर यात्रा का खर्च दोगुना

कैलाश-मानसरोवर यात्रा का खर्च दोगुना

• चीन को घास को नुकसान के नाम पर 24 हजार रुपये अलग से देने होंगे • मानसरोवर के लिए अब कम से कम 1.85 लाख रुपये लगेंगे • कैलाश यात्रा तीन अलग अलग रास्तों से होती है पहला – लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड) दूसरा- नाथू दर्रा (सिक्किम) और तीसरा- काठमांडु (नेपाल) इन तीनों रास्तों से कम से कम 14 और अधिकतम 21 दिन का समय लगता है।

काठमांडु। चीन न केवल दुनिया के अर्थ तंत्र पर राज करने का आकांक्षी है बल्कि अब तो उसने आस्था को भी व्यापार बना देने में कोई संकोच नहीं किया। तीन साल बंद रही कैलाश-मानसरोवर यात्रा के लिए चीन ने वीसा देने की शुरुआत कर दी है। इतना ही नहीं इसके साथ ही यात्रा पर लगने वाले कई तरह के शुल्क उसने दोगुने कर दिए हैं। कारोबार की हद केवल यहीं आकर नहीं रुकती बल्कि यदि मानसरोवर का तीर्थ यात्री अपनी मदद के लिए नेपाल से किसी हेल्पर या वर्कर को साथ रखता है तो उसे 300 डॉलर यानी की 24 हजार रुपये भारतीय मुद्रा में अतिरिक्त चुकाने होंगे। इस शुल्क क ग्रास डैमेजिंग फीस यानी घास को नुकसान पहुंचाने का शुल्क कहा गया है।
इस बात के लिए चीन का तर्क है कि यात्रा के दौरान रास्ते के आसपास के घास को नुकसान पहुंचता है। जाहिर है ये तीर्थ यात्रियों के यहां लगातार आते रहने से होता है तो इसकी भरपायी भी यात्रियों से ही की जाएगी। अब चीन ने इस यात्रा के लिए ऐसे नियम जोड़े हैं जिससे यात्रा कठिन हो गई है। मसलन अब कैलाश मानसरोवर के हर यात्री को काठमांडु बेस कैम्प पर ही अपनी यूनीक आईडेंटिफिकेशन करानी होगी। इसके लिए आंखों की पुतली यानी आयरिश की स्कैनिंग होगी और फिंगर मार्क भी लिये जाएंगे जो पारंपरिक रूप से लिये जाते रहे हैं। अचानक ही इस तरह के कड़े नियमों के बारे में जानने के लिए हुए प्रयास में नेपाली टूर ऑपरेटरों का कहना है कि इस तरह के जटिल नियम विशेष रूप से भारतीय यात्रियों के प्रवेश सीमित करने के लिए बनाए गए हैं। द काठमांडु पोस्ट के मुताबिक नेपाल के तीन प्रमुख टूर ऑपरेटरों ने चीनी राजदूत चेन सांग को एक ज्ञापन सौपा है जिसमें इन कठिन नियमों को वापस लेने की मांग की गई है। दरअसल कैलाश मानसरोवर यात्रा नेपाली टूर ऑपरेटरों के लिए बड़ा कारोबार है। इन दिनों नए नियमों और बढ़े हुए शुल्क के साथ अब टूर ऑपरेटर्स अब रोड ट्रिप के 1.85 लाख रुपये प्रति यात्री वसूल रहे हैं जबकि 2019 तक सड़क यात्रा का यही पैकेज केवल 90 हजार रुपये ही हुआ करता था।
इस बहुप्रतीक्षित यात्रा के लिए पंजीयन एक मई से शुरू हो चुका है। यह यात्रा अक्टूबर तक चलती है। अब टूर ऑपरेटरों का कहना है कि इस तरह नए नियम लगा देने से और खर्च का दोगुने से भी अधिक बढ़ जाने के कारण यहां तक की यात्रा पर जाने वालों का रूझान भी कम दिखाई दे रहा है। 

नए नियम जिनसे यात्रा हुई कठिन 
  • अब बदले हुए नियम के मुताबिक तीर्थयात्रियों को वीसा लेने शारीरिक रूप से उपस्थित होना होगा। अब ऑन लाइन आवेदन मंजूर नहीं होगा यानी यात्री को अब चीनी दूतावास के चक्कर काटने होंगे। इसी के बाद काठमांडु या दूसरे बेस कैंप पर बायोमिट्रिक पहचान प्रक्रिया से गुजरना होगा।
  • वीसा पाने के लिए अब कम से कम पांच लोगों का एक समूह जरूरी होगा और इनमें से चार को वीसा के लिए स्वयं उपस्थित होना होगा।
  • तिब्बत में प्रवेश करने वाले नेपाली श्रमिकों को ग्रास डैमेजिंग फीस यानी घास के नष्ट होने की फीस जो तीन सौ डालर है , भी देनी होगी। आखिर यह खर्च तीर्थ यात्रियों को ही वहन करना होगा क्योंकि यात्री ही गाइड, हेल्पर, कुली या रसोइये के रुप में सेवक लेकर तिब्बत में प्रवेश करते हैं।
  • किसी वर्कर को साथ रखने के लिए 15 दिनों की 13000 रुपये प्रवास शुल्क भी ली जाएगी जो पहले केवल 4002 रुपये ही हुआ करती थी।
  • यात्रा संचालित करने वाली नेपाली फर्मों को 60000 डालर चीनी सरकार के पास जमा कराने होंगे। इसमें समस्या यह है कि नेपाली ट्रैवल एजेंसियों को विदेशी बैंकों में धन जमा करने की अनुमति नहीं है। ऐसे में यह फीस कैसे ट्रांसफर होगी यह बात साफ नहीं की गई है।