कार जो सड़क पर फर्राट भरती और नदी में तैरती है..
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ऑस्ट्रेलिया के मोनाश यूनिवर्सिटी, मेलबोर्न के शोधकर्ताओं ने उन्नत बायोनिक आँख विकसित की है। इसे ' जेनारिस बायोनिक विजन सिस्टम' के नाम से जाना जाता है जिसका उद्देश्य उन लोगों की दृष्टि वापस लाना है, जिन्होंने अपनी देखने की क्षमता खो दी है। यह खोज एक दशक के लगातार अनुसंधान और विकास का परिणाम है।
इसमें मरीज़ों को एक हेडगियर पहनाया जाएगा जिसमें वायरलेस ट्रांसमीटर और कैमरा लगा है। यह हेडगियर नेत्रहीन व्यक्ति की आंखों के सॉकेट में रखे जानेवाली मशीनी आंख और मस्तिष्क में रखे जाने वाले 9 मिमी के इम्प्लांट से कनेक्ट होगा। यह बाहर के दृश्य को इसी मिलेजुले सिस्टम के माध्यम से मस्तिष्क में ठीक उसी तरह स्पष्ट करता है जैसे सामान्य आंख वाले के मस्तिष्क में कुदरती तौर पर होता है। यह बायोनिक नेत्र सम्भवतः उनके लिए बेहतर है जिन्होंने पहले कभी देखा है पर जो बाद में नहीं देख पा रहे हैं।
अभी यह कृत्रिम आँख 100 डिग्री का दृश्य क्षेत्र प्रदान करती है जो मानव आँख की 130 डिग्री की सीमा से थोड़ा कम है पर यह पिछली फ्लैट सेंसर तकनीकों से बेहतर है जो केवल 70 डिग्री तक ही सीमित थी। यह शोध पहले ही हो चुका है और बायोनिक आंख भी आ चुकी है जिसका लगभग 16 लाख ₹ तक का खर्च था पर यह बहुत परिष्कृत रूप में अब आया है जो सम्भवतः अधिक महंगा भी नहीं होगा।
विज्ञान ने हमारे जीवन को हमेशा सुविधाजनक बनाया है इसके बाद भी हमारे यहां विज्ञान शिक्षा और वैज्ञानिक चेतना में वह बात नजर नहीं आती जो होनी चाहिए। विज्ञान का उपयोग हमने खुद सुरक्षित रहकर कुदरती संसाधनों के दोहन, प्रदूषण में बढ़ोतरी, युद्धों और हत्याओं के लिए ज्यादा किया है। एक दूसरों पर नजर रखनेवाली आंख भी अब प्रचलित है कैमरों के रूप में जिसका सबसे ज्यादा उपयोग यौन कुंठाओं के लिए हो रहा है। जो मोबाइल फोन का उपयोग नहीं करता उसे छोड़कर अब कोई किसी की नजर से बचा नहीं है। काश, आज के तमाम आंखवालों के पास देखने के अलावा 'दृष्टि' भी होती।
बहरहाल, बायोनिक आंख के आविष्कार करनेवालों को बधाई, उम्मीद है, यह आंख और परिष्कृत होगी। और हां, मरने के बाद लोग नेत्रदान करें, यह सबसे बेहतर रहेगा।
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