• 28 Apr, 2025

बिहार को टक्कर देगी छत्तीसगढ़ की लीची

बिहार को टक्कर देगी छत्तीसगढ़ की लीची

सब कुछ सही चला तो नक्सलियों की मांद अबूझमाड़ को मिलेगी नई पहचान

रायपुर
ली ची का नाम सुनकर अमूमन बिहार के मुजफ्फरपुर इलाके का नाम याद आता है लेकिन अब इस कहानी में ट्विस्ट आने वाला है छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ क्षेत्र की मीठी लीची मुजफ्फरपुर की लीची को टक्कर देने मैदान में आ रही है। अबूझमाड़ क्षेत्र की पहचान नक्सलियों के गढ़ के रूप में होती है। अब सब कुछ सही चला तो लीची इस इलाके को एक नई पहचान दे सकती है। लीची के पौधे को लंबी सर्दी और पर्याप्त बारिश की जरूरत होती है। और अबूझमाड़ क्षेत्र इस हिसाब से अनुकूल है। साल 1995 में ओरछा के शासकीय उद्यान में 100 पौधों का रोपण किया गया था जो  आज पर्याप्त फल दे रहे हैं। इस छोटी सी सफलता ने उम्मीद की रोशनी  दिखाई है।
अबूझमाड़ की जलवायु मिट्टी और मौसम लीची के बागानों के लिए उपयुक्त हैं। इसलिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बस्तर की अपने भेंट मुलाकात कार्यक्रम के दौरान  नारायणपुर के ओरछा में 200 एकड़ क्षेत्र में लीची के पौधे लगाने के निर्देश दिए है। अबूझमाड़ का क्षेत्र घनघोर जंगल है और वहां पर्याप्त बारिश होती है। अबूझमाड़ की समुद्र तल से 16 सौ मीटर ऊंचाई होने के कारण आर्द्रता और शीतल जलवायु लीची के लिए उपयुक्त जलवायु है। अबूझमाड़ क्षेत्र में सर्वे और मसाहती खसरा वितरण का कार्य चल रहा है। जिन किसानों को मसाहती खसरा मिल गया है उन सभी को प्रशिक्षण के बाद भी 20 से 30 पौधे दिए जाएंगे। लीची के पौधे से आए करना बहुत ही आसान है। इसके पौधे को लगाना भी उतना ही सरल है। यदि पर्याप्त बारिश होती है तो सिर्फ गर्मी के सीजन में पौधे को पानी देना होता है। इसके पौधे की खास बात है कि 5 साल में ही फल देने लगता है। एक सीजन में एक पेड़ में 20 किलो लीची लगती है जो औसतन ₹120 किलो बिकती है। यही पेड़ 10 साल बाद प्रति सीजन 1 क्विंटल तक फल देता है।

मिठास के साथ मालामाल करेगी लीची
लीची का सीजन मुश्किल से एक महीने का होता है। 10 मई के आसपास फल लगना शुरू होते हैं और 10 जून से पहले ही इनका सीजन खत्म हो जाता है। लेकिन एक माह से भी कम समय में प्रति हेक्टेयर 200 पौधों के हिसाब से 4 से 5 लाख रुपए की आमदनी हो जाती है।

नहीं पड़ती मार्केटिंग की जरूरत
लीची का सीजन छोटा होने की वजह से लीची की बाजार में इतनी डिमांड है कि मार्केटिंग की जरूरत ही नहीं पड़ती है। व्यापारी बागानों से एडवांस में बुकिंग कर लेते हैं और ओरछा शासकीय उद्यान में लगे लीची के 100 पौधों के फल आने से पहले ही व्यापारी आकर बुकिंग कर लेते हैं।