• 28 Apr, 2025

चांद पर पहुंचने की शानदार कामयाबी के बाद सरकार कमतरी के प्रदर्शन से कब बाज आएगी

चांद पर पहुंचने की शानदार कामयाबी के बाद सरकार कमतरी के प्रदर्शन से कब बाज आएगी

देश के लिए अगस्त-सितंबर का महीना दो अभूतपूर्व कामयाबियों के लिए बहुत ही खास हो गया है। देश का अंतरिक्ष कार्यक्रम जो पूरी तरह इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन (इसरो) के नेतृत्व पर दक्षता से संचालित होता है जिसने पूरी दुनिया में एक बार फिर अपनी महत्ता और धाक साबित कर दी कि हम भी वह कर सकते हैं जो किसी के लिए अकल्पनीय मालूम होता है और इसी के साथ अंतरिक्ष में बड़ी छलांग लगाते हुए 23 अगस्त को भारत का चंद्र मिशन चंद्रयान-3 दक्षिणी ध्रुव पर उतरा। इससे देश चांद के इस क्षेत्र में उतरने वाला दुनिया का पहला और चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला चौथा देश बन गया। 

    निसंदेह यह देश के तकनीकी विकास और सामर्थ्य की सफलतम झांकी है जिससे दुनिया किसी देश के बाजुओं का बल आंकती है। कोविड काल में कोरोना की विभीषिका झेल चुकी पूरी दुनिया बाजार और व्यापार की टूटी कमर का दर्द सहने विवश थी और कराह रही थी। आर्थिकी पाताल तक सरक गई थी और सेहत के उस मोर्चे से सफलता पूर्वक निकलकर इस तरह उठ खड़ा होना सचमुच देश की आंतरिक क्षमता का बेमिसाल और कामयाब प्रदर्शन ही कहा जाएगा। इतना ही नहीं इसके बाद यह भी कहा गया कि भारत का आदित्य मिशन भी तैयार है जो सूर्य के रहस्यों की खोज के लिए काम करेगा। ये किसी भी देश के लिए महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं।  हालांकि ये हमारी कामयाबी के बड़े पताके हैं पर देश को अभी आम चुनाव में भी जाना है। आसन्न चुनाव पर सरकारों के पास उनकी उपलब्धियों की फेहरिस्त भी होनी चाहिए। लिहाजा ये तैयारियां फकत देशभर के लिए नहीं चुनाव में जाने के लिए भी हैं। 

ये अच्छा है कि इन बड़ी परियोजनाओं की तारीखें अभी आ गईं। एक तरह से महंगाई, भ्रष्टाचार, मनमानियों और निष्ठुरता के आरोप झेलती सरकार के लिए ये मुंहमांगी मुराद मिलने की तरह ही सुखद और राहत की बात रही।  वरना सरकारें जब काम नहीं कर पातीं तो सारी ऊर्जा जनता का ध्यान उनकी जरूरत के मुद्दों से इतर कहीं और खींच लाने के लिए कारगर तरकीबें तलाशने में लगाती हैं। 

      अब जल रहा है तो जला करे मणिपुर अपनी बला से। फिर संसद का विशेष सत्र बुलाया जाएगा। सरकार बहुमत में है तो एक तरह से इसे मनमानी करने के पासपोर्ट की तरह इस्तेमाल करने का रिवाज बनाया जा रहा है। इसमें किसी मुद्दे पर बहस होगी ये तय करना शेष है। हां लोकसभा और विधानसभाओं के लिए एक साथ ही चुनाव कराने पर विचार करेंगे- नाम होगा एक देश एक चुनाव..। और ये कोई पहली बार होगा ऐसा नहीं है। आजादी के बाद इस तरह के चुनाव तीन-चार दफा हुए भी हैं पर उस समय आज की तरह इतनी क्षेत्रीय पार्टियां नहीं थीं, मध्यावधि चुनाव की स्थितियां भी बाद के वर्षों में बनती रही हैं। इस तरह के शिगूफों के पक्ष में चाहे जो कह-सुन कर हवा बनाई जाए इसमें आम आदमी की दो पैसे की रुचि नहीं रहती । जब टमाटर दो सौ रुपये किलो बिक रहा हो, पेट्रोल-डीजल के दाम आसमान पर हों, रसोई गैस की कीमत ग्यारह सौ के पार चली गई हो तो, इलाज के लिए गांव के लोग जमीन बेच रहे हों तब इस तरह के बातों का मतलब लोग खूब समझते हैं।

   केन्द्र सरकार इधर जी-20 देशों के सम्मेलन में मेजबानी भी कर रही है, दुनिया के राष्ट्राध्यक्षों की अगुवाई करते हुए खास किस्म के एहतियात भी बरत रही है कि जिन रास्तों से उन्हें होटलों तक ठहराने ले जाना है उन रास्तों पर मीलों तक झुग्गियां हैं तो इन्हें विदेशी मेहमानों की नजरों से बचाने सड़क के दोनों ओर हरे पर्दे लगाए गए हैं। दुनिया में  युध्द की कोई जगह नहीं बची है इस बात की जोरदार पैरवी करती सरकारें किसी भी देश के एटम बम के इस्तेमाल की धमकी को तो असह्य कहती हैं पर इसमें शामिल कई देश मानवाधिकार की बात पर आपराधिक चुप्पियां  साधे हुए हैं। अभिव्यक्ति की आजादी की या फिर आम जनता को जानने के हक से दूर रखने की बहुत ही शर्मनाक साजिशें हो रही हैं। इससे बड़ा और इसका क्या ही सबूत चाहिए होगा कि जी-20 के सम्मेलन में आए अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ आए पत्रकार सम्मेलन  एक प्रेस वार्ता की मांग करते रह गए पर उन्हें इसकी इजाजत नहीं मिली। डर था मणिपुर पर सवाल न पूछ लिये जाएं। देश के पत्रकार तो इरादतन चुप करा ही दिए गए हैं पर इस मौके  का लाभ उठा कर कहीं ईडी के दुरुपयोग और इस पर सुप्रीम कोर्ट में लगी याचिका के बाद वहां से मिली नसीहत पर सवाल पूछ लिए जाते तो क्या होता ? लिहाजा जो बाइडेन को अपने पत्रकारों के साथ प्रेस कांफ्रेंस की इजाजत नहीं मिली तो नहीं ही मिली। सब जानते हैं अमरीका का लोकतंत्र  200 सालों का परिपक्व लोकतंत्र है तो वहां के राष्ट्रपति बाइडेन को पता था कि घर वापस पहुंच कर उनकी चुप्पी की बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। इससे बचने का वहां कोई उपाय नहीं है तो भारत से निकलकर अपने पहले के  तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार वियतनाम पहुंचते ही उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के रवैये की पोल खोल दी। कहा कि किसी भी लोकतांत्रिक देश में प्रेस की आजादी और मानावधिकार को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए या ऐसा ही कुछ। जिसका मतलब साफ था कि उन्हें उनके देश में उठाए जा सकने वाले सवालों पर अब बात करना आसान होगा कि उन्होंने इस मुद्दे को बिना हाथ लगाए ही अमरिका वापस लौटने का जोखम नहीं लिया।

और अंत में – 
देश में राजनीतिक ध्रुवीकरण का दौर चल रहा है। विपक्ष संयुक्त रूप से इंडिया बन कर उठ खड़ा हो रहा है तो आरोप है कि  चुनाव के ठीक पहले  केन्द्र सरकार ने अपने केन्द्रीय एजेंसियों को ईडी और सीबीआई को विपक्ष की राज्य सरकारों और उनके नेताओं को घेरने में लगा दिया है। ताबड़तोड़ ईडी के छापे पड़ रहे हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के घर-परिवार और पार्टी के नेता एक ओर सीएम का जन्मदिन मना रहे थे तो ईडी सीएम के राजनीतिक सलाहकार सहित उनके अन्य करीबियों के घरों-दफ्तरों और दीगर ठिकानों पर छापे मार रही थी। इसी तरह झारखंड के मुख्यमंत्री को 20 दिनों में ईडी ने लगातार तीन समन भेज दिए। सीएम सोरेन ने ईडी को तो पत्र लिख कर कहा है कि उन्हें परेशान करने के इरादे से किया जा रहा है वे इसकी शिकायत सुप्रीम कोर्ट से करेंगे और कर भी दिया। ईडी के प्रमुख संजय मिश्रा का तो कार्यकाल भी खत्म हो रहा है। शीर्ष कोर्ट से फटकार भी पड़ी है पर केन्द्र की मोदी सरकार इन्हीं संजय मिश्रा को इस मियाद के बाद और ऊंचे पद पर बिठाने की तैयारी में है। कहा जा रहा है कि अभी इनका और उपयोग करना शेष है। पर दीवार के इस तरफ से उसे दुरुपयोग की तरह ही देखा जा रहा है।