• 28 Apr, 2025

उत्तराखंडः भारी बारिश से दरक रहे पहाड़, 17 दिनों में 1521 बार भूस्खलन

उत्तराखंडः भारी बारिश से दरक रहे पहाड़, 17 दिनों में 1521 बार भूस्खलन

● यात्रा करते समय चौकन्ने रहने की सलाह

देहरादून। पर्यावरण की अनदेखी और बेहिसाब वन कटाई ने पहाड़ों की सेहत पर बुरा असर डाला है। जिन पहाड़ों की ओर मैदानी इलाकों से लोग छुट्टियां बिताने आकर्षित होते हैं वे अब यात्रियों की जान ही सांसत में डाल रहे हैं। पहाड़ों की पीठ से हरियाली गायब हो रही है। जिन पेड़ों की जड़े पहाड़ों में पकड़ बनाकर उन्हें स्थिर रखने में मदद करती हैं वे पेड़ों की कटाई के साथ गायब हैं। नतीजे में सालभर में हजारो दफा छोटे-बड़े भूस्खलन होते हैं जिससे इन पहाड़ों पर बने रास्ते रुध्द होते हैं और यात्रियों के लिए खतरा बने रहते हैं। 

     इन खतरों के लगातार बढ़ते जाने से सलाह दी गई है कि यदि आप उत्तराखंड से चार धाम की यात्रा पर जा रहे हैं तो थोड़ा सम्भल कर योजना बनाएं। पर्यावरण के जानकारों का कहना है दरअसल पिछले कुछ सालों में इन पहाड़ों पर भूस्खलन की घटनाएं बढ़ीं हैं। इतनी कि जो सामान्य से बहुत अधिक हैं। राज्य में 23 जून से मानसून सक्रिय है और तब ही से अब तक इन पहाड़ों पर 1521 भूस्खलन की घटनाएं हो चुकी हैं। इससे बंद हुए रास्तों में से 217 अब भी बंद हैं। जुलाई के दूसरे हफ्ते के आते तक हालात और खराब हुए हैं।

   राज्य भूस्खलन न्यूनीकरण और प्रबंधन केन्द्र ने ऐसे 132 जगहों की पहचान की है जहां पहाड़ सबसे ज्यादा दरक रहे हैं। इनमें से ज्यादातर चार धाम यात्रा के रास्ते पर हैं । इसके अलावा 35 नए भूस्खलन जोन की पहचान भी की गई है जिन पर हर समय खतरा देखा गया है। भूगर्भ वैज्ञानिकों के मुताबिक हिमाचल की तुलना में उत्तराखंड में भूस्खलन इसलिए अधिक होता है क्योंकि पूरी हिमालय पर्वत श्रृंखला में सबसे कमजोर पहाड़ उत्तराखंड में ही हैं। यहाँ के पहाड़ों का अधिकांश हिस्सा सेडिमेंट्री रॉक का है जिन्हें बने भूविज्ञान की समच गणना के अनुसार ज्यादा वक्त नहीं हुआ है  लिहाजा इस पर बारिश पड़ते ही भीतर तक दरारें आ जाती हैं।  

  • सात साल में 14 हजार बार भूस्खलन

जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के मुताबिक उत्तराखंड का 39 हजार वर्ग किमी वाला क्षेत्र लैंडस्लाइड वाला क्षेत्र चिह्नित किया गया है। यहां बीते सात सालों में 14 हजार से अधिक बार पहाड़ों के दरकने और नतीजतन भूस्खलन की घटनाएं हुईं। इनमें चमोली और रूद्रप्रयाग वाले इलाके सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं।