• 28 Apr, 2025

गाज से बचाने ताड़ के पेड़ लगा रहा है ओडिशा

गाज से बचाने ताड़ के पेड़ लगा रहा  है ओडिशा

■ पिछले 10 सालों में आकाशीय बिजली की चपेट में आकर करीब , 2200 लोगों ने जान गंवाई है ओडिशा में ■ ओडिशा आकाशीय बिजली से सर्वाधिक प्रभावित राज्यों में से एक है ■ ओडिशा में ताड़ के मौजूदा पेड़ों को काटने पर भी रोक

भुवनेश्वर । ओडिशा ने आकाशीय बिजली के प्रकोप से बचने के लिए नई युक्त खोज ली है । उसे ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योंकि इस प्रदेश में पिछले  कुछ सालों में  आकाशीय बिजली से होने वाली मौतें बढ़ गई हैं। यह प्रदेश आकाशीय बिजली से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले राज्यों में से एक है। अब इसी महीने के 17 और 18 अगस्त  को बिजली गिरने से यहां 15 लोगों की मृत्यु हो गई । ऐसी घटनाओं में कमी लाने के लिए राज्य की भाजपा सरकार ने फैसला लिया है कि राज्यभर में 20 लाख ताड़ के पेड़ लगाए जाएंगे।

ओड़िशा के राजस्व एवं आपदा प्रबंधन मंत्री सुरेश पुजारी ने कहा कि ओडिशा में बिजली गिरने से होने वाली मौतों की दर भारतभर में सर्वाधिक है। इससे निबटने के लिए हमने पूरे राज्य में ताड़ के लम्बे पेड़ लगाने की शुरुआत की है क्योंकि इसकी ऊची प्रजाति के पेड़ बिजली के अच्छे संवाहक (कंडक्टर ) का काम करते हैं। राज्य की हर वन प्रखंड की सीमा के पास ताड़ के चार पेड़ लगाए जाएंगे।

मंत्री ने बताया कि इस पूरी योजना में करीब सात करोड़ रुपये खर्च होना अनुमानित है। उन्होंने बताया इतना ही नहीं ओडिशा में ताड़ के मौजूदा पेड़ों केो काटने पर भी पाबंदी लगा दी गई है। अगर कोई व्यक्ति बिना अनुमति लिए अपनी निजी जमीन पर लगे ताड़ के पेड़ काटता है तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी।

कर्नल संजय श्रीवास्तव आकाशीय बिजली के मामले के विशेषज्ञ हैं। वे क्लाइमेट रेजिलियेंट ऑब्जर्विंग प्रमोशन कांउसिल के अध्यक्ष भी हैंं। यह काउंसिल बिजली गिरने की सालाना रिपोर्ट जारी करती है। साल 2021-22 में इनकी रिपोर्ट के मुताबिक आकाशीय बिजली की चपेट में आने से 96 फीसदी मौतें केवल ग्रामीण क्षेत्रों में हुई हैं। जान गंवाने वालों में ज्यादातर लोग किसान, चरवाहे, मजदूर आदिवासी और मछुवारे ही हैं। और इनमें भी किसानों की संख्या सबसे अधिक 77 फीसदी थी।

संजय श्रीवास्तव बताते हैं कि पुराने समय में खेतों का आकार बड़ा होता था और उनकी मेढ़ों पर चारों ओर पेड़ लगे रहते थे। ऐसे में बिजली गिरती भी तो पेड़ों पर ही गिरती थी और पेड़ उसकी ऊर्जा सोख लेते थे। इससे खेतों में काम करते लोगों को कोई नुकसान नहीं होता था।  बाद में धीरे-धीरे पेड़ काटे जाने लगे। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि अब खेतों में काम करते किसान और मजदूर आकाशीय बिजली की चपेट में आकर जान गवाने लगे।

क्या ताड़ के पेड़ मौतों को रोकने में कारगर भूमिका निभा सकते हैं। इस सवाल पर श्री संजय कहते हैं कि जिस पेड़ में जितनी ज्यादा मात्रा में पानी होता है वह उतना ही अच्छा बिजली का संवाहक या कंडक्टर होता है और चूकिं ताड़ के लम्बे पेड़ों में ज्यादा पानी होता है इसलिए वे बिजली के अच्छे कंडक्टर माने जाते हैं। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है। इस पर कई तरह के अध्ययन के डेटा भी उपलब्ध है इसलिय यदि योजनाबध्द तरीके से ताड़ के पेड़ लगाए जाएं तो वे बिजली गिरने की स्थिति में करंट को अवशोषित कर लेते हैं। इसके साथ ही उस क्षेत्र की जलवायु भी बेहतर होती है जिस इलाके में बहुतायत में ताड़ के पेड़ होते हैं। यद्यपि कई जानकारों की राय इससे  इतर  भी है। 
 

ओडिशा चौथे नंबर पर है..

सालाना लाइटनिंग ( आकाशीय बिजली) की रिपोर्ट के मुताबिक  जो साल 2023-24 में  जारी हुई है ओडिशा में पिछले दस सालों में आकाशीय बिजली की चपेट में आकर करीब 2200 लोगों की जान गई है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2019- 2022 तक प्रदेश में बिजली गिरने से 1100  से ज्यादा लोगों की जानें गई हैं।इस सूची में ओडिशा चौथे नंंबर पर है । इससे ऊपर मध्यप्रदेश, बिहार और उत्तरप्रदेश हैं।

क्यों बढ़ रहीं है बिजली गिरने की घटनाएं..

बिजली गिरने की घटनाओं में देखी जा रही वृध्दि का संबंध प्रकृति और पर्यावरण में तेजी से हो रहे बदलाव और जलवायु परिवर्तन से भी है। संजय श्रीवास्तव बताते हैं कि पिछले पांच सालोंं में बिजली गिरने की घटनाओं में

इजाफा हुआ है। तापमान बढ़ने की वजह से भी बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ रही हैं। हमने शोध में पाया है कि एक डिग्री तापमान बढ़ने पर लाइटनिंग में 12 फीसदी बढ़ोतरी होती है। इसे रोकने के लिए जरूरी है कि दीर्घकालिक क्लाइमेट एक्शन प्लान बने जिसके तहत जलवायु को बेहतर बनाने के प्रयास किये जाएं।