नीरू सैनी, अद्भुत ऊर्जा और अदम्य साहस से लबालब महिला
● 50 पार की उम्र में वो सब कुछ किया जिसके लिए कभी उनका दिल मचलता था और जिन कामों में सिर्फ युवाओं के हस्तक्षेप की कल्पना होती है...
अक्सर कहा जाता है ‘कलाकार मरा नह करते’...........।
सच ही है।उससे भी बड़ा सच ये है की ‘लोग कलाकार को मरने नही देते’।
कलाकार तो अपना काम करके दूसरी दुनिया चले जाते हैं अब हम और आप जैसे लोग ही हैं जो उन्हे याद कर कर के वापस धरती मे खींच लाते हैं।
एक सितंबर; हबीब तनवीर का जन्मदिवस।उनसे जुड़ी अपनी स्मृतियाँ साझा करने के लिए देश के अलग अलग हिस्सों से कई विद्वतजन इकट्ठे हुए।ये मौका मुहैया करवाया छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद के तहत संचालित ‘कला अकादमी’ और संस्थान ‘रज़ा फाउंडेशन’ ने। दोनों संस्थाओं के आपसी सहयोग से; हबीब तनवीर के सौवें जन्मदिवस पर 01 और 02 सितंबर को सर्किट हाउस, कन्वेन्शन हॉल मे दो दिवसीय ‘रंग हबीब’ का आयोजन हुआ।
पहले दिन का पहला सत्र ‘पूनम तिवारी’ के स्वर से सजा था।जब पूनम जी ने ‘चोला माटी के हे राम, एकर का भरोसा......’ गाया तो लगा सचमुच हबीब तनवीर को समर्पित कार्यक्रम का इससे बेहतर आग़ाज़ हो ही नही सकता था।
रज़ा फाउंडेशन की बागडोर संभाल रहे वरिष्ठ साहित्यकार अशोक बाजपेयी जी ने प्रस्तावना वक्तव्य दिया। दरअसल इस तरह के अवसर पर ‘वक्तव्य’ बड़ा औपचारिक सा शब्द लगता है।वास्तव मे उन्होंने हबीब जी के माध्यम से सारे साहित्यिक परिवेश, सरकारों; संस्थाओं की जिम्मेदारियों और रंगमंच से जुड़े आम लोक कलाकारों के उत्साह और उम्मीदों का आंकलन किया।अनुभवी लोगों को सुनना यूँ भी बड़ा सरस होता है उस पर अशोक जी जैसा व्यक्ति जो अपने शब्दों से लोगों के लिए नए नए अनुभव गढ़ना जानता हो।हॉल मे बैठे साहित्यप्रेमियों के लिए उन्हे सुनना एक मनचाही ट्रीट की तरह था; लेकिन अपना वक्तव्य उन्होंने जिस बात से खत्म की वो कान से होती दिल मे जाकर फाँस की तरह गड़ गयी।उन्होंने कहा ‘सरकार हबीब तनवीर को इसलिए भूल गयी क्योंकि वो मुसलमान थे .......................’।
इस सत्र के दुसरे वक्ता रंग निर्देशक ‘अरविन्द गौड़’ ने भारत भवन से लेकर दिल्ली तक के अपने अनुभव साझा किये। उन्होंने स्वीकार किया कि रंगमंच मे हबीब जी न्यूनतम लाइट, सेट और कॉस्टयूम के साथ जिस तरह सादगी से प्रस्तुति देते थे वही सादगी उन्होंने अपने नाटकों मे उतारी है। अरविन्द जी ने बताया कि वो अब भी बड़े से बड़ा नाटक कम से कम संसाधनों मे करते हैं, बहुधा नुक्कड़ शैली मे। हबीब जी ‘the show must go on’ की थ्योरी पर बहुत विश्वास करते थे और अमल मे लाते थे, बस वही सीख हमने भी अपने काम मे अपनायी है।
इस आयोजन मे ‘रतन थियम जी’ को भी अपनी बात रखनी थी लेकिन स्वास्थयगत कारणों से उनका रायपुर न आना हम सबको अखर गया।
दूसरे सत्र का विषय था ‘हबीब का देश’...
‘आशीष त्रिपाठी,परवेज़ अहमद और आनंद हर्षुल’ ने इस पर अपनी अपनी बात रखी।
वैसे तो हबीब जी के देश की सीमाएं इतनी विस्तृत हैं कि उसमे सारा विश्व समा सकता है।ऐसा इसलिए क्योंकि हबीब जी नाटकों से एक मजदूर व रिक्शावाला व उतनी ही शिद्दत से जुड़ जाता है जितना बड़ी बड़ी किताबें पढ़ने और लिखने वाला श्रेष्ठी वर्ग का व्यक्ति।
तीसरा सत्र था ‘उर्दू-हिन्दी-छत्तीसगढ़ी के हबीब’।इस विषय पर बात रखने के लिए मंच पर थे वरिष्ठ रंगकर्मी ‘राजकमल नायक’ और ‘दस्तानगोई’ को पुनर्जीवित करने वाले ‘महमूद फ़ारुखी’। बेहद रोचक अंदाज मे महमूद जी ने स्पष्ट किया कि किस तरह उनकी ‘दस्तानगोई’ और हबीब जी की नाट्य प्रस्तुतियाँ भीतरी तौर पर एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं।भाषा को लेकर हबीब साहब इतने लचीले और सहज थे कि गाँव के सामान्य आदमी को भी अपने लगते थे और मेट्रो के तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग को भी।
चौथा सत्र हबीब तनवीर के नाटककार रूप को समर्पित था। इस सत्र मे ऋषिकेश सुलभ’,अनुपरंजन पाण्डे,और बसंत त्रिपाठी ने संस्मरणों के जरिए,हबीब जी के नाटक तैयार करने की प्रक्रिया का जिक्र किया।हबीब जी का नाटक रंगमंच की परंपरा अनुसार स्क्रिप्ट से होता हुआ मंच पर नही आता था बल्कि कलाकारों द्वारा लगातार इंप्रोवाइज़ेशन से स्क्रिप्ट तैयार होती रहती थी।उनकी हर प्रस्तुति पिछली बार से अलग होती क्योंकि वो अपने नाटकों मे लगातार नए नए प्रयोग करते रहते थे।
पहले दिन का अंतिम सत्र था ‘नाट्यनुमा प्रस्तुति’ का। नाटक न कहकर इसे ‘नाट्यनुमा’ इसलिए कहा क्योंकि इस प्रस्तुति के लेखक और निर्देशक ‘राणा प्रताप सेंगर’ ने एक प्रयोग किया जिसमे हबीब तनवीर की कुछ बातें करते हुए उनके निर्देशित नाटकों के गीत गाए गए। राणा ने स्वयं हबीब तनवीर का किरदार निभाया।जिन लोगों ने भी तनवीर साहब को आमने सामने देखा है वो अभिभूत हो सकते हैं कि राणा ने सचमुच बड़ी विश्वसनीयता से ये किरदार निभाया।उनके नाटकों के गीत आज चालीस पैंतालीस साल बाद भी उतने ही ताजा लगते हैं। मुंबई से आए इस दल ने हॉल मे बैठे हर दर्शक को अपने साथ गुनगुनाने और छोटे छोटे प्रसंगों मे खुलकर ठहाके लगाने के लिए विवश कर दिया।
आयोजन का दूसरा दिन तीन सत्रों मे बँटा था। पहला ‘भारत की खोज- वाया हबीब।‘ दूसरा ‘हबीब की कला’ और तीसरा ‘हबीब का जीवन दर्शन’।
इन सत्रों मे सदानंद मेनन,भारत रत्न भार्गव,अमितेश कुमार,देवेन्द्र राज अंकुर,महावीर अग्रवाल, अंजना पुरी,परवेज़ अख्तर,उदयन बाजपेयी,ओम थानवी और आशीष पाठक ने अपनी बात रखी।
सोशल मीडिया के इस दौर मे हम;अपने अपने क्षेत्र के महारथियों के कामों तक पहुँच सकते हैं लेकिन उन लोगों को आमने सामने सुनना अलग तरह का अनुभव होता है।हबीब तनवीर के सौवें जन्म उत्सव के बहाने देश भर के प्रतिष्ठित विद्वानों का जुड़ना एक ऐसा अवसर रहा जिसकी याद लंबे समय तक बनी रहेगी।
कला अकादमी के अध्यक्ष योगेंद्र त्रिपाठी ने आभार प्रदर्शन की औपचारिकता पूरी की यद्यपि थियेटर और साहित्य से जुड़े सभी स्थानीय जन इस आयोजन के लिए कला अकादमी छतीसगढ़ और रज़ा फाउंडेशन के आभारी हैं।
● 50 पार की उम्र में वो सब कुछ किया जिसके लिए कभी उनका दिल मचलता था और जिन कामों में सिर्फ युवाओं के हस्तक्षेप की कल्पना होती है...
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