• 28 Apr, 2025

संपादकीय दिसंबर - 2023

संपादकीय दिसंबर - 2023

निरंतर पहल परिवार नव वर्ष पर प्रदेश की जनता,नई बनी सरकार और सुधी पाठकों के साथ लेखकों और सहयोगयों को हार्दिक बधाई और  शुभकामनाएं प्रेषित करता है।

जाते हुए साल ने छत्तीसगगढ़ को नई सरकार दे दी है। देश में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव 2023 में खासे दिलचस्प इसलिए भी रहे क्योंकि तमाम तरह की सियासी अटकलें और पूर्वानुमान लगभग तीन प्रदेशों में ध्वस्त ही हो गए। छत्तीसगढ़,मध्यप्रदेश और राजस्थान में भाजपा की आसान बहुमत से सरकारें चुनी गईं। तेलंगाना में ही कांग्रेस की सरकार बन पायी ।  इधर जीते हुए भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने जिस तरह आने वाले साल 2024 में होने वालेलोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर इन प्रदेशों में मुख्यमंत्रियों के साथ पूरे मंत्रिमंडल का चयन किया है वह उसके जीत सुनिश्चित करनेकी रणनीति की ओर इशारा करती है।

       छत्तीसगढ़ सहित इन सभी प्रदेशों में  वरिष्ठ नेताओं की नई भूमिकाएं तय कर पार्टी ने युवा चेहरों को प्राथमिकता देकर यह संदेश भी दिया है कि पार्टी नई पीढ़ी को भी अवसर देना चाहती है। छ्त्तीसगढ़,मध्यप्रदेश और राजस्थान में सारे कयासों से इतर चेहरे तय कर भाजपा ने युवाओं में उत्साह का संचार करने की कोशिश की है। तीन बार लगातार मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को विधानसभा अध्यक्ष बना कर सरगुजा के कुनकुरी से विधायक विष्णु साय को मुख्यमंत्री बनाया गया जो अपनी निर्विवाद छवि के लिए जाने जाते हैं। सीएम साय इससे पहले प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रह चुके हैं जिनके बारे में विशेष यह है कि जब ऐन आदिवासी दिवस के दिन उन्हे हटा कर उनकी जगह अरुण साव को प्रदेश भाजपाध्यक्ष की कमान दी गई थी । इस पर भी विष्णु देव साय पार्टी के फैसले पर विचलित नही हुए थे। जाहिर है इस बार सरगुजा अंचल की सभी आदिवासी सीटों पर भाजपा की जीत हुई है और सोशल इंजीनियरिंग के लिहाज से भी एक अनुशासित कार्यकर्ता को उनका वांछित परिणाम मिला। इधर अरुण साव के नेतृत्व में प्रदेश में हुई भाजपा की जीत के बाद उनको भी तो यथोचित जगह दी जानी थी तो उन्हें डिप्टी सीएम बनाया गया। एक चेहरा इसी पद के लिए कवर्धा के युवा विधायक विजय शर्मा को चुना गया।

     आगे लोकसभा के चुनाव की भी तैयारियां जोरों पर हैं। अन्य दोनों राज्यों मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी मुख्यमंत्रियों के साथ मंत्रिमंडल का चेहरा इसी रणनीति को मद्देनजर रखते हुए बनाया गया है। इधर 22 जनवरी को अयोध्या के भव्य राममंदिर में भगवान राम की प्राणप्रतिष्ठा की जानी है। इस आयोजन से भी पूरे देश को सनातनी आस्था की लहरों पर लाने की पूरी तैयारी हो चुकी है। सारे प्रदेशों से लोगों को अयोध्या ले जाने के जतन करने के लिए भी पार्टी ने प्रदेश की सरकारों को फरमान दे दिया है। अयोध्या में सैकड़ों ट्रेनें राम भक्तों को लेकर पहुंचेगी। आयोजन को अनुपम और भव्यतम बनाने की सारी संभव तैयारियां हो रही हैं। और उत्तरपद्रेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार तो है ही। भाजपा का उत्साह नतीजों और नेतृत्व की दृढ़ता के साथ चरम पर है। अनुशासन से चलने वाली पार्टी सामने आ रही सारी चुनौतियों के बीच से राह निकाल ले जा रही है ।

  इधर दूसरी ओर इंडिया गठबंधन की बैठकें रद्द हो कर होती भी हैं तो उनको नेतृत्व के लिए चेहरा तलाशना पड़ता है। विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस से यह उम्मीद भी लगभग छिन गई लगती है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन  खरगे का नाम सामने आता भी है तो पटना के राजद के उत्साही विधायक ठीक उनकी अहम बैठक वाले दिन बैठक के आयोजन स्थल के बाहर अपने नेता बिहार के सीएम नीतिश कुमार के पक्ष में उनकी तस्वीरों के साथ उनकों इंडिया गठबंधन के नेतृत्व दिये जाने के लिए योग्य बताते हुए पोस्टर तक टांग देते हैं। खबर लगते ही ऐन बैठक के पहले इन्हें आनन-फानन में उतरवा भी लेते हैं। तो बैठक में आगामी लोकसभा चुनाव के लिए सीट शेयरिंग पर बात अटक जाती है। हर छत्रप अब अपने यहां ज्यादा शेयर लेने की जुगत में होगा। तो इस तरह के हालात में इंडिया गठबंधन का क्या नतीजा होगा यह देखना शेष  रहेगा। 
   
    इधर प्रदेशों में मंत्रिमंडल के गठन के बाद से भाजपा ने संकल्प पत्र में जनता से जो वादे किये थे उनको प्राथमिकता से पूरा करने का दबाव है क्योंकि इसी पर पार्टी की विश्वसनीयता टिकी है।  हर संकल्प चुनाव के दौरान - पीएम नरेन्द्र मोदी की गारंटी के नाम से परोसा गया था। जाहिर है पीएम मोदी का नाम जुड़ा होने से इन संकल्पों को पूरा करना पार्टी की जवाबदारी हो गई है। लोक लुभावन जितनी भी योजनाएं मतदाताओं को गारंटी के रूप में दी गईं उनका बजट पर खासा भार पड़ने वाला है। देखना होगा कि नई बनी सरकारें किस तरह अपनी प्राथमिकताएं निर्धारित करतीं हैं कि शासन -प्रशासन के सुचारु रुप से चलने में कोई बाधा न आने पाये।

  वैसे संकल्प पत्र में किसानों से पिछली भाजपा सरकार के समय बचे हुए धान के बोनस को एक मुश्त देने का वादा भी  गारंटी  के रूप में शामिल किया गया था। सरकार ने इसे 25 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के जन्मदिन पर जिसे पार्टी सुशासन दिवस के रुप में मनाती है , देने का निश्चय किया है। देखना होगा कि इन सभी वादों के बाद सरकार की माली हालत विकास के कितने कामों को ठीक ढंग से चला पाने के लिए काबिल बची रहती है। वैसे विकास के लिए बाहरी निवेश और अपने रिवेन्यू के साथ साथ सरकारें कर्ज भी लेती हैं जिसके ब्याज का भार भी प्रदेश के खजाने पर भार बढ़ाता रहता है।