• 28 Apr, 2025

अब बिना कीमो होगा कैंसर का इलाज

अब बिना कीमो होगा कैंसर का इलाज

● भारत विश्व में बिना कीमो कैंसर का इलाज करने वाला पहला देश बना |

चंडीगढ़। चंडीगढ़ पीजीआई के विशेषज्ञों ने अब बिना कीमो दिये कैंसर का इलाज ढूंढ लिया है। 15 वर्षों तक संस्थान में चले शोध के बाद यह सफलता मिली है। हेमेटोलॉजी विभाग के विशेषज्ञों ने एक्यूट प्रोमाइलोसाइटिक ल्यूकेमिया के मरीजों को बिना कीमो दिए ही पूरी तरह से ठीक कर दिया है। दावा किया गया है कि पीजीआई की इस उपलब्धि से भारत विश्वभर में बिना कीमो इलाज करने वाला पहला देश बन गया है।

   इस शोध को ब्रिटिश जनरल ऑफ हेमेटोलॉजी में प्रकाशित किया गया है। पीजीआी हेमेटोलॉजी विभाग के प्रमुख व शोध के सीनियर ऑथर प्रो. पंकज मल्होत्रा ने बताया कि इस मर्ज में मरीज की स्थिति तेजी से बिगड़ती है।  यदि मरीज ने दो हफ्तों तक खुद को किसी तरह सम्हाल लिया तो उस पर इलाज का सकारात्मक प्रभाव तेजी से सामने आने लगता है लेकिन इन दो हफ्तों तक सर्वाइव करना बेहद मुश्किल हो जाता है। विश्व में अब तक तो कैंसर के 
मरीजों का इलाज तो कीमो से ही हो रहा है लेकिन पीजीआई ने पहली बार मरीजों को कीमों की जगह दवाओं की खुराक दी  है। इसमें विटामिन ए और आर्सेनिक ट्राइआक्साइड शामिल है।

  • सीधे लक्ष्य पर काम करती है दवा--

कीमों एक ओर जहां कैंसर कोशिकाओं को समाप्त करता है वहीं उसका दुष्प्रभाव शरीर के अन्य अंगों पर भी पड़ता है जबकि विटामिन ए और मेटल की डोज कैंसर सेल बनाने की स्थिति को पूरी तरह खत्म कर देता है। यह कैंसर उत्पन्न करने वाले ट्रेस्ड लोकेशन पर वार करता है। इस तरीका का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता और संक्रमण प्रारंभ में ही रुक जाता है। एक्यूट प्रोमाइलोसाइटिक ल्यूकेमिया एक्यूट मायलाइड ल्यूकेमिया का ही एक रूप है जो मरीजों की अस्थि मज्जा को प्रभावित करता है। अस्थि मज्जा में स्टेम सेल होती हैं जो लाल रक्त कोशिकाओं और श्वेत रक्त कोशिकाओं को विकसित करती हैं। 
  एपीएल से ग्रसित मरीज की अस्थि मज्जा श्वेत रक्त कोशिकाओं के अविकसित रूप का अधिक उत्पादन करती हैं जिन्हें प्रोमोलोसाइट्स कहा जाता है। ये अस्थि मज्जा के अंदर बनते हैं जिससे से स्वस्थ सफेद रक्त कोशिकाओं का उत्पादन कम होता है। 
 

कीमो की तुलना में मिला  बेहतर परिणाम

इस शोध के फर्स्ट ऑथर डॉ चरनप्रीत सिंह ने बताया कि 15 वर्षों तक संस्थान में चले इस शोध में 250 मरीजों को शामिल किया गया था। इन मरीजों को कीमो की जगह विटामिन ए और आर्सेनिक ट्राइआक्साइड दिया गया। गंभीर मरीजों को दो साल तक और कम गंभीर मरीजों को चार महीने तक दवाइयां दी गईं और लगातार फालोअप के साथ टेस्ट किये गए। इन सभी 250 मरीजों की जब कीमो वाले मरीजों से तुलना की गई तो परिणाम काफी बेहतर मिले। कीमो की तुलना में शोध में शामिल मरीजों पर इलाज की सफलता 90 प्रतिशत रही। जो मरीज दो हफ्ते तक सर्वाइव नही कर पाए केवल उन मरीजों का ही परिणाम नकारात्मक रहा। 90 फीसदी मरीज पूरी तरह स्वस्थ हैं और सामान्य जीवन जी रहे हैं।