सुप्रीम कोर्टने कहा- बिना सहमति संबंधों को माना दुष्कर्म तो नष्ट होगी विवाह संस्था
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• एलजीबीटीक्यू समुदाय को झटका – शीर्ष अदालत का एकमत से फैसला • कानून बनाना न्यायपालिका नहीं, विधायिका का काम है
नई दिल्ली। समलैंगिक विवाहों को सुप्रीम कोर्ट ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत कानूनी मान्यता देने से इंकार कर दिया है। शीर्ष अदालत की संविधान पीठ ने इस पर चार अलग- अलग फैसले लिखे लेकिन सभी ने एकमत फैसले में कहा ऐसे गठजोड़ के लिए कानून बनाना और मान्यता देना सिर्फ संसद या विधानसभाओं का अधिकार है।
साथ ही शीर्ष कोर्ट ने तीन दो के बहुमत के फैसले में कहा ऐसे जोड़ों को बच्चा गोद लेने का भी अधिकार नहीं है हालांकि अदालत ने हिंसा जबरदस्ती या हस्तक्षेप के किसी भी खतरे के बिना संबंध बनाने के उनके अधिकार को बरकरार रखा है। साथ ही ऐसे जोड़ों की चिंताओं की परख करने के लिए केन्द्र सरकार से कमेटी बनाने के लिए कहा है।
चीफ जस्टिस डी वाय चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवीन्द्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा की पांच सदस्यीय संविधान पीठ इस पर एक मत थी कि कानून समान लिंग वाले जोड़ों के विवाह के अधिकार को मान्यता नहीं देता। पीठ ने एकमत से यह भी कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान करने के लिए विधायिका को निर्देश देना भी अदातलों के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
संविधान पीठ ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह के अधिकार को मान्यता देने की मांग करने वाली 21 याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया है।
सीजेआई जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस कौल, जस्टिस भट और जस्टिस नरसिम्हा के अलग -अलग लिखे चार फैसलों में समलैंगिक जोड़ो को विशेष विवाह अधिनियम (एसएमए) के दायरे में लाने के लिए इसके प्रावधान को रद्द करने या उसमें बदलाव करने से इंकार कर दिया गया। इनमें से सीजेआई जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस कौल समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोद लिए जाने के पक्ष में थे पर शेष तीनों जजों ने इसके उलट राय दी थी। मार्च और अप्रैल में दोनों पक्षों की ओर से चली गहन बहस के बाद पांच न्यायाधीशों की पीठ ने 11 मई को 21 याचिकाओं के एक बैच पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था। याचिकाओं में न्यायपालिका से समलैंगिक शादी को मान्यता देने के लिए विशेष विवाह अधिनियम में बदलाव करने और उन्हें बच्चे गोद लेने के अधिकार की मांग की गई थी।
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