अब महाराष्ट्र-झारखंड में चुनावी सरगर्मियां तेज..
■ भाजपा ने दोनों राज्यों में लगाई सौगातों -वादों की झड़ी ■ विपक्षी खेमा भी सक्रिय हुआ ■ इन दोनों राज्यों में चुनाव नवंबर में होने की चर्चा
न्यायाधीश प्रशांत मिश्रा के एक सदस्यीय जांच आयोग ने राज्यपाल को सौंपी रिपोर्ट 60 गवाहों के आधार पर तैयार की गई थी
बिलासपुर. बस्तर के झीरम घाटी में 25 मई 2013 को काँग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हुए कथित नक्सली हमले की जांच के लिए बनाई गई न्यायाधीश प्रशांत मिश्रा की एक सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके को सौंप दी। इसके बाद से ही सियासी सरगर्मी शुरू हो गई है।
झीरम आयोग की ज्यादातर सुनवाई बिलासपुर में हुई है। यहां बरसों तक हुई सुनवाई में अलग-अलग तारीखों में 60 से ज्यादा गवाहों की गवाही और पुनर्परीक्षण किए गए जिसके उपरांत ही इससे निकलकर आये तथ्यों के आधार पर रिपोर्ट तैयार की गई।
सुनवाई के दौरान जो तथ्य सामने आए थे उनमें नक्सली किसी विशिष्ट व्यक्ति, विधायक या मंत्री को बंधक बनाते हैं तो उन्हें छोड़ने के बदले उनसे फिरौती मांगते हैं। नंदकुमार पटेल और उनके पुत्र दिनेश पटेल की हत्या सामान्य नहीं है। यह इकलौती घटना है जिसमें नक्सलियों ने अपहरण करने के बाद उनकी हत्या भी कर दी।
यूनिफाइड कमांड की बैठक की अध्यक्षता पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह स्वयं करते थे। बैठक हर तीन माह में होनी थी, घटना से 7 माह पहले अंतिम बैठक हुई थी। यह साल में एक बार ही हो पाती थी। रोड ओपनिंग पार्टी में पांच कंपनियों के कुल 28 जवानों ने साढ़े तीन बजे तक सड़क पर सर्चिंग की थी। तुकानार से तोंगपाल से पहले बस्तर और सुकमा सीमा जो 15 किमी है में कोई रोड ओपनिंग पार्टी नहीं थी। भीमा मंडावी की तुलना में महेन्द्र कर्मा और नंदकुमार पटेल की सुरक्षा में कम जवान तैनात थे। केन्द्र सरकार ने 13 दिसंबर 2012 को पत्र लिख कर काँग्रेस नेताओं और विशेष कर महेन्द्र कर्मा को सुरक्षा देने कहा था। इसके मुताबिक यूनिफाइड कमान ने न तो चर्चा की और न ही कोई सिक्योरिटी प्लान बनाया।
कुछ विशेष बिन्दु
25 मई 2013 : काँग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर बस्तर के झीरम घाटी में नक्सलियों ने घात लगा कर हमला किया था जिसमें दो दर्जन से ज्यादा काँग्रेस नेता शहीद हो गए थे।
27 मई 2013 : 9 जांच बिन्दुओं पर अधिसूचना जारी हुई जिसे तीन माह में पूरा करना था।
28 मई 2013 : सरकार ने न्यायाधीश प्रशांत कुमार मिश्रा की अध्यक्षता में एक सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग का गठन किया था जिसका कार्यकाल 27 फरवरी 2019 से बढ़ाकर 31 दिसंबर 2019 किया गया था।
झीरम का सच सामने आने से क्यों रोक रही भाजपाः काँगेस
सीएम यूपीए सरकार के फैसले पर प्रश्नचिन्ह लगा रहेः भाजपा
काँग्रेस संचार प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि भाजपा झीरम हत्याकांड की सचाई क्यों सामने नहीं आने देना चाहती। उन्होंने कहा कि न्यायिक आयोग ने तय प्रक्रिया का पालन नहीं किया इसलिए कांग्रेस उस पर जायज सवाल खड़ा कर रही है तो ऐसे में भाजपा न्यायिक आयोग की प्रवक्ता की भूमिका क्यों निभा रही है। इसके पीछे भाजपा की क्या मंशा है। शुक्ला ने कहा केन्द्र सरकार जांच में राज्य सरकार के सामने अवरोध क्यों पैदा कर रही है। एनआईए, एसआईटी को फाइल क्यों नहीं दे रहा। पूर्ववर्ती डॉ. रमन सिंह की सरकार सीबीआई जांच क्यों नहीं होने देना चाहती थी। उन्होने कहा कि छत्तीसगढ़ की जनता आज भी जानना चाहती है काँग्रेस परिवर्तन यात्रा की सुरक्षा घोर नक्सल इलाके में ही क्यों हटाई गई।
भाजपा अध्यक्ष साय ने सीएम पर साक्ष्य छिपाने का आरोप लगाया
भाजपा अध्यक्ष विष्णुदेव साय ने सीएम भूपेश बघेल को इस मामले में साक्ष्य छिपाने का आरोपी बताया। उन्होने कहा कि सीएम बघेल तब कहा करते थे कि साक्ष्य उनकी जेब में है लेकिन उन्होंने उसे जांच आयोग के सामने पेश नहीं किया इसलिए वे साक्ष्य छिपाने के आरोपी हैं। एनआईए जांच को ढकोसला कहने पर साय ने कहा कि तत्कालीन यूपीए सरकार ने एनआईए जांच का फैसला किया था । सीएम अपनी ही पार्टी की सरकार के फैसले पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं। पत्रकारों से बात करते हुए साय ने कहा कि राज्यपाल भी तो सरकार का ही अंग है यदि उन्हें जांच रिपोर्ट दी गई है तो काँग्रेस क्यों घबरा रही है। साय ने आरोप लगाया कि काँग्रेस नेता नहीं चाहते कि झीरम कांड का पूरा सच सामने आए।
झीरम रिपोर्ट का राजनीतिकरण न्यायालय की अवमाननाः अमित जोगी
जोगी काँग्रेस के अध्यक्ष अमित जोगी ने झीरम रिपोर्ट का राजनीतिकरण करने को कोर्ट की अवमानना बताया है। उन्होंने कहा कि आंध्रप्रदेश के मुख्यन्यायाधीश प्रशांत कुमार मिश्रा ने यह रिपोर्ट तैयार की है उन्होंने कहा कि उन्होंने संभवतः सर्वोच्च न्यायालय के 9 सदस्यीय संवैधानिक पीठ के निर्णय का पालन करते हुए राज्यपाल को विधिवत इस मामले की रिपोर्ट सौंपी है। इसके अनुसार यदि रिपोर्ट में राज्य सरकार के किसी मंत्री का उल्लेख आता है या निष्पक्ष कार्रवाई की उम्मीद नहीं की जा सकती तो ऐसे में सामूहिक जिम्मेदारी के सिध्दांत को ध्यान में रखते हुए उसे मंत्रिमंडल या राज्य सरकार के प्रमुख के स्थान पर, राज्यपाल या राष्ट्रपति को सौपना न्याय संगत होगा।
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हम एक धर्म निरपेक्ष देश हैं । हमारे निर्देश सभी के लिए होंगे। चाहे वे किसी धर्म या व्यवसाय के हों। अगर सड़क के बीच में कोई धार्मिक संरचना है फिर वह गुरूद्वारा हो, दरगाह या फिर मंदिर, तो उसे हटाना ही पड़ेगा। यह जनता के आवागमन में बाधा नहीं डाल सकती। साथ ही अवैध निर्माण तोड़ने से पहले पर्याप्त समय देना चाहिए। महिलाओं और बच्चों को सड़क पर देखना अच्छा नहीं । - जस्टिस बी.आर. गवई
हम एक धर्म निरपेक्ष देश हैं । हमारे निर्देश सभी के लिए होंगे। चाहे वे किसी धर्म या व्यवसाय के हों। अगर सड़क के बीच में कोई धार्मिक संरचना है फिर वह गुरूद्वारा हो, दरगाह या फिर मंदिर, तो उसे हटाना ही पड़ेगा। यह जनता के आवागमन में बाधा नहीं डाल सकती। साथ ही अवैध निर्माण तोड़ने से पहले पर्याप्त समय देना चाहिए। महिलाओं और बच्चों को सड़क पर देखना अच्छा नहीं । - जस्टिस बी.आर. गवई
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