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मुझे लोग प्रेम से मास्टर मोशाय कहते हैं और मैं अंतिम सांस तक बच्चों को पढ़ाना चाहता हूँ। बस इसी लिए मुझे इस ग्रह पर भेजा गया है, मेरा जन्म ही पढ़ाने के लिए हुआ है ..
कोलकाता । ये एक ऐसे व्यक्ति पद्मश्री सुजीत चट्टोपाध्याय की आत्मकथा का हिस्सा है जिसने अपनी पूरी शिक्षादीक्षा अपने गांव पूर्वा बर्धमान बंगाल के बच्चों की पढ़ाई के लिए ही समर्पित कर देने का फैसला किया और एक संकल्प को ही सारी उम्र दोहराते हुए कर्म योग के साथ जीते रहे- कि मेरा तो जन्म ही पढ़ाने के लिए हुआ है..
उन्होंने एक जगह लिखा है कि जिस दिन मेरी स्नाकोत्तर की पढ़ाई पूरी हुई और मेरे हाथों में मेरी डिग्री मिली मैने एक मिनट भी व्यर्थ नहीं गंवाया। मैंने अपने पैतृक गांव आसग्राम बंगाल का रुख किया ताकि वहां मैं एक शिक्षक बन कर रह सकूं। जी हां मुझे मेरी योग्यता के बाद अपने गांव से कहीं ज्यादा वेतन पर दूसरे शहरों के स्कूलों में पढ़ाने के लिए बुलावा आने लगा था पर मुझे मेरे ही गांव के स्कूल में पढ़ाने के लिए 169 रुपये वेतन की पेशकश की गई थी वही मेरे लिए बहुत कुछ था। मुझे तो अपने गांव के ही स्कूल के बच्चों को पढ़ाने की ललक और लालसा थी जिन्हें एक अच्छे शिक्षक की जरूरत भी थी।
और मैं लगातार 39 वर्षों तक अपने गांव के स्कूल में बच्चों को पढ़ाते हुए सेवानिवृत्त हो गया क्योंकि पढ़ाते हुए मेरी उम्र 60 की हो गई। क्या विडंबना है। तो मैं रिटायर हो गया और मुझसे ये उम्मीद की जाती थी कि मैं चीनी वाली चाय पीते हुए खाट पर लेटे- सोते हुए अपने दिन महीने साल बिताता रहूँ। पर मेरा मन इसके लिए तैयार नहीं था, मैं अपने ही आप से सवाल करता रहता था कि अब क्या किया जाय क्यों कि मैने कभी नहीं चाहा था कि मैं रिटायर हो जाऊं। और कुछ ही दिनों बाद मुझे मेरे सवाल का जवाब मिल गया।
एक सुबह मैं क्या देखता हूँ कि साढे 6 बजे के आसपास युवतियां मेरे घर प्रवेश कर रही हैं। मुझे हैरानी ये जान कर हुई कि जब उन्होंने कहा कि वे तीनों कोई 23 किलोमीटर की दूरी से ये देखने आई हैं कि कौन शिक्षक रिटायर हो गए। वे तीनों आदिवासी समुदाय की लड़कियां थी जिनमें पढ़ने की ललक थी और तीनों हाथ जोड़े मेरे सामने खड़ी हुई पूछ रही थीं मास्टर जी क्या आप हमें पढ़ाएंगे। मैनें फौरन उन्हें हामी भरते हुए कहा जरूर पढ़ाउंगा पर मेरी एक शर्त है कि आप लोगों को मेरे स्कूल में सालभर की पढ़ाई की फीस जमा करनी होगी।
इस पर उन लड़कियों ने कहा मास्टर जी हम किसी तरह हम पढ़ाई की फीस का इंतजाम कर लेंगे। इस पर उन्हें मैंने कहा ठीक है फिर मेरी सालभर आप लोगों को पढ़ाने की फीस एक रुपये है। इतना सुन कर वे तीनों बहुत खुश हुईं और मुझसे प्रेम से लिपट गईं। उन्होंने कहा कि हम आपको फीस में एक रुपये और चार चाकलेट भी देंगीं। मुझे और क्या चाहिए था मैं तो हमेशा से गांव में बच्चों को पढ़ाना ही चाहता था तो जैसे ही वे घर से गईं मैने अपनी धोती पहनकर सीधे अपने गांव के स्कूल गया और उनसे एक कक्षा मुझे देने के लिए निवेदन किया ताकि मैं उन लड़कियों को पढ़ा सकूं पर स्कूल में मुझे पढ़ाने के लिए कमरा देने से मना कर दिया। इस पर मैने हार नहीं मानी मैने अपना संकल्प खुद से दोहराते हुए कहा अभी तुम्हें रुकना नहीं है। मैं वहीं से तुरंत ही अपने घर लौट गया। अपना वरांडा मैने साफ किया और तय किया कि अब से मैं बच्चों को यहीं पढ़ाया करुंगा। रिटायर होने पर स्कूल में पढ़ाने नहीं दिया जाएगा तो मैं सिर्फ इतनी सी बात के लिए पढ़ाना नहीं छोड़ सकता मुझे पता है अभी मुझमें बहुत सी ऊर्जा सिर्फ पढ़ाने के लिए ही संचित और बाकी है।
ये वर्ष 2004 की बात है जब घर के बरामदे में हमारी पाठशाला कुल तीन आदिवासी बालिकाओं को पढ़ाने के संकल्प के साथ शुरू हुई थी। आज यहां हर साल 3000 हजार से ज्यादा बच्चियां पढ़कर निकलती हैं इनमें से ज्यादातर आदिवासी बच्चियां ही होती हैं। आज भी मेरी सुबह 6 बजे होती है और उठते ही मैं पूरे गांव की एक परिक्रमा कर लौटकर मैं बच्चों के लिए घर के दरवाजे खोल देता हूँ और बरामदे के स्कूल में पढ़ाने लगता हूँ। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि कुछ लड़कियां तो पढ़ने की इतनी जुनूनी हैं कि वे 20 किलो मीटर से भी ज्यादा दूर से पैदल चल कर यहां तक आती हैं।
इतने सालों में मुझे ये देख-जान कर बहुत खुशी होती है कि मेरे पढ़ाए हुए कुछ बच्चे पढलिख कर कॉलेज में प्रोफेसर, विभागाध्यक्ष और इनफरमेशन टेक्नॉलाजी के विशेषज्ञ तक बन गए हैं। वे समय समय पर मुझे फोन करते हैं खुशखबरी सुनाते हैं और मैं हमेशा की तरह उनसे कहता हूं – मेरी चाकलेट कहां है। और पिछले साल मुझे पद्म श्री सम्मान से नवाजा गया तो मेरी फोन की घंटी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। उस दिन पूरा गांव उत्सव मना रहा था पर उस दिन भी मैंने अपने छात्रों को क्लास बंक करने की छूट नहीं दी।
मेरे दरवाजे हर किसी के लिए खुले हैं। आईये आप मेरी पाठशाला में किसी भी समय आ सकते हैं। हमारा गांव खूबसूरत है और मेरे विद्यार्थी सब कुशाग्र और विलक्षण हैं। मुझे पूरा विश्वास है आप इन बच्चों से जरूर कुछ न कुछ सीखेंगे। तो ये मेरी बहुत छोटी और अति साधारण कहानी है कि मैं बंगाल का एक शिक्षक हूँ जिसे रिटायरमेंट के बाद भी बच्चों को पढ़ाना, चाय पीना और अपनी पुरानी चायपायी पर झपकी लेना पसंद है। मुझे लोग प्रेम से मास्टर मोशाय कहते हैं और मैं अंतिम सांस तक बच्चों को पढ़ाना चाहता हूँ। बस इसी लिए मुझे इस ग्रह पर भेजा गया है, मेरा जन्म ही पढ़ाने के लिए हुआ है।
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