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• अफसरों का निर्देश, आवेदन चेक लिस्ट के बाद ही भेजे जाएं • पूरे दस्तावेज नहीं होने से भी हो रही परेशानी • 12 बिंदुओं की चेकलिस्ट और प्रमाणपत्र जरूरी
रायपुर। प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों की संख्या चार लाख से अधिक है और इनके स्वास्थ्य से संबंधित इलाज के क्लेम के सैकड़ों केस पेंडिंग पड़े हुए हैं। शासन के संज्ञान में यह बात आई है कि संबंधित कर्मियों के दफ्तर के अधिकारी निर्धारित चेकलिस्ट के बिना ही आवेदन और मेडिकल बिल से संबंधित दस्तावेज संचालनालय भेज देते हैं। इस वजह से क्लेम मंजूर होने में अनावश्यक महीनों की देर होती है।
लगातार हो रही परेशानी और संबंधित हितग्राही कर्मियों के पीड़ित होते रहने से कर्मचारियों और संचालनालय की शिकायत शासन सक्रिय हुआर है कहा जा रहा है कि आवेदकों ने यह बात भी शासन की जानकारी में लाई है कई बार दफ्तर के स्टाफ की सेवा नहीं करने पर भी वहां से अधूरे दस्तावेज संचालनालय भेज दिये जाते हैं। यानी की दफ्तर के स्टाफ के लोग पीड़ितों से इस काम के सही ढंग से करने के लिए भी कुछ अतिरिक्त लाभ की उम्मीद करते हैं और अपेक्षाएं पूरी नहीं होने पर वे अधूरे दस्तावेज संचालनालय भेज देते हैं जिससे आपत्तियां लग जाती हैं या फिर अधूरे दस्तावेज होने के कारण काम तय समय पर नहीं होता और महीनों की लेट लतीफी होती है। इन वजहों से हितग्राही कर्मचारियों को भटकना पड़ता है।
इन्हीं सब बातों के कारण लोगों को हो रही असुविधा को ध्यान में रखते हुए मंत्रालय से स्वास्थ्य विभाग के अवर सचिव जनक कुमार ने अफसरों और दफ्तरों को निर्देश दिये हैं कि 12 जरूरी बिंदुओं का चेक लिस्ट व विभागीय प्रमाणपत्र के बाद ऐसे केस संचाललनालय भेजे जाएं। अभी सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों और उनके परिजनों को आकस्मिक हालात में प्रदेश और देश के चुनिंदा अस्पतालों में इलाज करवाने की सुविधा है। इन सबका का खर्च सरकार उठाती है और इसके लिए तय प्रक्रिया के तहत रिएंबर्समेंट के लिए आवेदन भी करना पड़ता है।
अस्पताल में इलाज के अलग-अलग प्रमाणपत्र-
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