• 28 Apr, 2025

भारतीय न्याय संहिता में मृत्युदंड का प्रावधान बरकरार रखेगी सरकार

भारतीय न्याय संहिता में मृत्युदंड का प्रावधान बरकरार रखेगी सरकार

• नया कानून- देशद्रोह, आतंकवाद और जघन्य अपराध दुर्लभतम की श्रेणी में रखेंगे

नई दिल्ली। दुनिया में मृत्युदंड को अमानवीय मानने का चलन बढ़ रहा है और इसका विरोध भी लंबे समय से होता रहा है। इसके बाद भी केन्द्र सरकार भारतीय न्याय संहिता में मृत्युदंड के प्रावधान को बरकरार रखना चाहती है। इसे हटाने की मांग के बीच संसदीय समिति ने यह सिफारिश की थी कि मृत्युदंड के प्रावधान  पर सरकार कोई फैसला करे। 

  संसद के शीतकालीन सत्र में तीनों कानून -भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता  और साक्ष्य अधिनियम पास होने की उम्मीद है। मानसून सत्र में  पेश इन कानूनों पर गृह मंत्रालय की स्थायी समिति ने समीक्षा के बाद मृत्युदंड के प्रावधान को हटाने के मुद्दे पर विचार किया। इसमें यह तर्क यह आया कि दोषपूर्ण न्यायिक प्रक्रिया में किसी निर्दोष को भी मृत्युदंड मिल सकता है। कई देशों में मृत्युदंड खत्म करने के उदाहरण भी दिये गए। 

  सूत्रों को कहना है कि समिति की सिफारिश के बाद सरकार मृत्युदंड के प्रावधानों को रखने के पक्ष में है। देश द्रोह, आतंकवाद जघन्य अपराध जैसे मामलों में मृत्युदंड के प्रावधानों को बरकरार रखने की जरूरत है। यदि इसे हटा दिया गया तो इसके बहुत ही गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

  • नया कानून पहली बार आतंकवाद को परिभाषित किया भारतीय न्याय संहिता- राजद्रोह को खत्म किया गया है लेकिन राष्ट्र के खिलाफ कोई भी गतिविधि दंडनीय होगी। 
  • पहली बार आतंकवाद को परिभाषित किया गया है और इसे दंडनीय अपराध बनाया गया है। 
  • संगठित अपराध के लिए नई धारा जोड़ी गई है। 
  • समूहिक दुष्कर्म के लिए 20 साल की कैद या ता उम्र जेल की सजा होगी। 

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता-

  • जीरो एफआईआर पुलिस स्टेशन की सीमा से बाहर दर्ज हो सकती है,इलेक्ट्रानिक माध्यम से भी केस दर्ज होगा
  • आपोप पत्र दाखिल करने के बाद आगे की जांच के लिए 90  दिन का समय, विस्तार कोर्ट की मंजूरी से ही मिलेगा।
  • बहस पूरी होने पर 30 दिन में फैसला, विशेष कारणों में अवधि बढ़ सकेगी। 

भारतीय साक्ष्य अधिनियम-

  • दस्तावेज के तहत इलेक्ट्रानिक और डिजिटल रिकॉर्ड, ईमेल,सर्वर लॉग, कम्प्यूटर फाइलें,स्मार्टफोन , लैपटाप,संदेश मेल संदेश आदि शामिल  हैं।
  • एफआईआर ,केस डायरी,चार्ज शीट  और फैसले का डिजिटलीकरण जरूरी। साक्ष्य की रिकाॉर्डिंग, मुकदमेबाजी और अपीलीय कार्यवाही का डिजि़टलीकरण।