सियासी सरगर्मियां शुरू होने से पहले केंद्रीय एजेंसियों ने उन तमाम प्रदेशों को खंगाल डाला जहां विपक्षी पार्टियों की सरकारें हैं। करप्शन के नाम पर ताबड़तोड़ छापे डलते रहे, इन विपक्ष की सरकारों पर दबाव डालने का यह काम सिलसिले से होता रहा, ये काम एक तरह से रणनीतिक ढंग से किये जाते रहे कि सरकारों को उन्हीं के किये गफलतों में उलझाए रखने के साथ अफसरों और राजनेताओं को धमका कर उन्हें पाला बदलने के लिए राजी किया जा सके। ये काम तब तक चलता रहा जब तक कि 14 विपक्षी पार्टियों की नाक में दम न हो गया। आखिर में सभी कथित रूप से सताई गई पार्टियों ने केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाइयों को इरादतन तंग करने की कोशिश बताते हुए उनके खिलाफ शीर्ष कोर्ट में याचिका लगा दी पर यहां भी उन्हें निराश होना पड़ा क्योंकि अप्रैल में उनकी दलीलें वहां खारिज हो गईं। अब ऐसे में केंद्र को कोस रही पार्टियों को धक्का लगा और भाजपा ने यहीं से अपनी चुनावी तैयारियों की नई रुपरखा तय कर ली।
इधर छतीसगढ़ में जहां अचानक ही मंत्री टी एस सिंहदेव को दिल्ली में पिछले दिनों हुई पार्टी की शाम को हुई बैठक के बाद अचानक देर रात किसी को कानों कान खबर हुए बिना डिप्टी सीएम नियुक्त करने की घोषणा कर दी गई। पार्टी में ही नहीं दिल्ली में इस तरह ठीक चुनाव की अधिसूचना के पहले हुए इस फैसले को सियासी हलकों में भी उनके अलग निहितार्थ के साथ देखा- समझा जा रहा है। इधर अचानक हुए इस फैसले को जहाँ संगठन में संतुलन साधने की कोशिश कहा जा रहा है वहीं इसे लगातार खिंचे- खिंचे चले आ रहे गुट की जीत की तरह भी लिया जा रहा है।
पहले प्रदेश के कुछ अफसरों और नेताओं पर करप्शन केस में जेल दाखिल करवाकर अहसास दिया कि उन सभी की नब्ज केंद्र के हाथ ही है। परन्तु वहीं उसके जवाब में सीएम ने इसका काट निकाला और भाजपा में लंबे समय से यथोचित जगह और सम्मान नहीं मिलने से हताश चले आ रहे वरिष्ठ आदिवासी नेता नन्द कुमार साय को कांग्रेस में लाकर उन्हें मंत्री के दर्जे वाला पद देकर तुष्ट कर दिया। इसे केंद्र सरकार की आदिवासियों की उपेक्षा के प्रतिनिधि प्रकरण की तरह पेश किया जा रहा है। ये इसलिए भी अहम है कि बस्तर और सरगुजा आदिवासी अंचल में प्रदेश की आबादी का एक बड़ा आदिवासी बहुल समाज रहता है तो जाहिर है कुल 90 सीटों में से 20 से अधिक पर इस फैसले की तपिश महसूस की जाएगी। पर इसी बीच इसी बीच सीएम बघेल ने कैबिनेट की बैठक कर प्रदेश सरकार के कर्मियों अफसरों के लिए 5 प्रतिशत महंगाई भत्ते सहित दर्जनों रियायतों की घोषणा भी कर दी।
इसके अलावा प्रदेश सरकार जहाँ अपने सभी वर्गों के लिए विशेष रूप से किसानों, महिलाओं और युवाओं के लिए किये काम को प्रचारित कर जनादेश पक्ष में करने की तैयारी में है वहीं केंद्र की भाजपा की सरकार फकत करप्शन के केस को आगे रख कर कड़ी कार्रवाई की धमकियाँ दे रही है। इतनाभर नहीं बल्कि 7 जुलाई को पीएम नरेंद्र मोदी ने राजधानी रायपुर में अपनी सरकार की खूबियां गिनाते हुए आमसभा में जहां भाजपा को ही प्रदेश की जनता का सच्चा हितैषी बताया वहीं कांग्रेस को ‘करप्शन की गारंटी’ बताते हुए खुद अपने को करप्शन के खिलाफ ‘कार्रवाई की गारंटी’ कहा। जिस तरह से दिल्ली के मंत्री मनीष सिसोदिया और प्रदेश में एक महिला अधिकारी की गिरफ्तारियां हुई हैं उसे देखते हुए चुनाव से पहले ऐसी किसी कार्रवाई की आशंका प्रबल हो गई है। बहरहाल अभी तो दोनों पार्टियों की अपनी-अपनी बाजियां अपने-अपने दांव हैं।
उधर मणिपुर महीनेभर से जातीय हिंसा की आग में जल रहा है और जहां 110 से भी ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं पर उनकी जख्मों पर मरहम लगाने वाला कोई नहीं। दूसरी ओर महाराष्ट्र में विपक्ष की सरकार को तोड़कर उसका भगवाकरण करने की कोशिश हो रही है। शरद पवार की पार्टी राकांपा को उन्ही के भतीजे ने एक तरह से अपने कब्जे में कर लिया था। वहीं इस बीच विपक्षी एकता के लिए हुए 14 पार्टियों की एक बैठक के नतीजों पर भी केंद्र की नजर है।