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• आत्महत्या करने वाले ज्यादातर की मेधावी छात्रों में गिनती होती थी
कोटा ( राजस्थान )। एक समय में देशभर में विभिन्न प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में कामयाबी के लिए गारंटी सरीखी रही राजस्थान की यह जगह अब छात्रों के लिए खराब प्रतिमान गढ़ रही है। एक समय में कोचिंग हब के रूप में मशहूर इस कोटा में छात्रों की मौतों का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा।
एक के बाद एक युवा छात्र यहां विभिन्न कारणों से खुदकुशी कर रहे हैं। आए दिन यहां होती बच्चों की मौत अन्य छात्रों के अलावा कोटा वासियों के लिए भी परेशानी का सबब बनती जा रही है। अगस्त के मध्य में ही यहां 18 साल के छात्र वाल्मिकी जांगिड़ ने आत्महत्या कर ली। बिहार निवासी जांगिड़ पिछले साल से ही इंजीनियरिंग में प्रवेश के लिए ज्वाइंट एंट्रेस एक्जाम (जेईई) की तैयारी कर रहा था ।
एक अध्ययन के मुताबिक कोटा में सालभर में जितने भी बच्चों ने अब तक आत्महत्या की है उनमें से अधिकांश छात्रों की गिनती मेधावी छात्रों के रूप में होती थी। इन सभी छात्रों ने अपने-अपने स्कूलों में अच्छे अंक लिए थे। एक या दो बच्चों को अपवाद स्वरूप छोड़ दें तो भी अधिकांश बच्चों के प्रतिशत 80 से अधिक ही थे। कोटा में अगस्त में छात्रों की खुदकुशी की यह तीसरी बहुत दुःखद घटना है। जनवरी से अगस्त के बीच कुल 22 छात्रों ने खुदकुशी कर ली। इनमें से 14 छात्रों को तो कोटा आए हुए महज तीन से छह महीने से भी कम समय हुआ था । जबकि इनमें से 8 बच्चों ने तो डेढ़ महीने से पांच महीने पहले ही कोटा के कोचिंग क्लास में प्रवेश लिया था। इनके अलावा दो मामले सुइसाइड की कोशिश करने के भी सामने आ चुके हैं।
• अभिभावकों की उम्मीद विद्यार्थियों पर बन रही है बोझ-
कोटा में जितने भी बच्चों ने सालभर में खुदकुशी की है उनमें से अधिकांश की गिनती मेधावी छात्रों के रुप में होती थी। इन सभी ने अपने अपने स्कूलों में अच्छे अंक लिए थे। कोटा की प्रसिध्दि बच्चों को वहां के कोचिंग से पढ़ने के बाद अच्छे संस्थानों प्रवेश मिल जाने के कारण दशको से बनी हुई है पर इन दिनों लगातार बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने छात्रों के साथ साथ उनके अभिभावकों की उम्मीदें बहुत बढ़ा दी हैं। इसका सीधा दुष्प्रभाव यहां संघर्ष कर रहे छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। बहुत से इस तरह का दबाव बर्दाश्त नहीं कर पाते और कमजोर क्षणों में अभिभावकों या हितचिंतकों की मौजूदगी के अभाव में खुदकुशी जैसा घातक कदम उठा लेते हैं। यहां हास्टल या पीजी में छूटे बच्चों की प्रतिस्पर्धा देशभर से आए टॉपर बच्चों से होती है तो उनमें हताशा पनपने लगती है और घर परिवार से दूर रहने पर उन्हें उस तरह का मॉरल सपोर्ट नहीं मिल पाता जिसकी बहुत जरूरत उन्हें एक समय विशेष में वहां होती है। कुछ छात्र इस तरहा का बोझ सहन कर लेते हैं तो कुछ के लिए यह मुश्किल हो जाता है ।
• अपना रहे हैं ड.बल मेथड.
बड़े शहरों में अपने सपनों की चाबी ढूंढने निकले बच्चे प्रतिस्पर्धा के इतने खराब दौर से गुजर रहे हैं कि जिन लोगों में यह दबाव बर्दाश्त करने की क्षमता नहीं है वे अपने को ही खत्म करने का बहुत ही खतरनाक तरीके अपना रहे हैं। इनमें से यहां प्रचलित है -डबल मेथड जिसमें किसी भी तरह जान बचने की गुंजाइश ही नहीं बाकी रहे। दि एक तरीके से किए प्रयास में बच गए तो किसी दूसरे तरीके से ऐसा इंतजाम करते हैं कि निश्चित ही मौत हो जाए। इन दिनों कोटा शहर में इस बात को लेकर यहां के निवासी और दूसरे छात्रों में भी दहशत तारी है। रोज ही नए मामले सामने आने से यहां के लोगों को परेशानी हो रही है। कोटा में इतने कोचिंग संस्थान खुल गए हैं कि एक तरह से यहां कि पूरी आर्थिकी ही छात्रों की मांग पर टिक गई है। रहना, खाना, ट्रेवलिंग सबसे लोगों को मोटी कमाई हो रही है। आए दिन यहां प्रतिस्पर्धा में हो रही बढ़ोतरी से छात्रों की खुदकुशी का क्रम बंद ही नहीं हो रहा है।
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