अब महाराष्ट्र-झारखंड में चुनावी सरगर्मियां तेज..
■ भाजपा ने दोनों राज्यों में लगाई सौगातों -वादों की झड़ी ■ विपक्षी खेमा भी सक्रिय हुआ ■ इन दोनों राज्यों में चुनाव नवंबर में होने की चर्चा
• कांग्रेस में भाजपा और अन्य पार्टी छोड़कर आए कुल 23 प्रत्याशियों में से 16 जीते • प्रमुख बातें जिनसे भाजपा की हार तय हुई
बेंगलुरु। कर्नाटक में कांग्रेस जीत गई। दक्षिण के इस राज्य ने पारंपरिक रूप से चुनाव में सत्तारुढ़ पार्टी को छोड़कर हमेशा ही दूसरी पार्टी को तरजीह दी है। ये दक्षिण के इस राज्य की खूबी है। हालांकि एन्टीइंकबेंसी के कारण ये तो तय ही माना जा रहा था कि भाजपा का एक बार पुनः जीत कर आना बहुत मुश्किल है और फिर भाजपा की सरकार में व्याप्त बड़े घोटाले और भ्रष्टाचार को उसकी रवानगी का बड़ा कारण बताते हुए कहा जा रहा था कि भाजपा अब नहीं आएगी। दूसरा दक्षिण की राजनीति को बहुत करीब से जानने वालों का कहना है कि इस बार तो कई-कई बार कर्नाटक आकर भी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के नेताओं को ये पता नहीं था कि यहां के लिंगायत और वोक्कालिगा जाति की अच्छी खासी तादात है और उन्हीं में से आने वाले कर्नाटक के नेतोओं येदुरप्पा को बहुत ही हल्के में लिया और कर्नाटक में अपने पसंद का नेता थोपने की कोशिश करते रहे। वहां के स्थानीय कद्दावर नेताओं की अनदेखी उन्हें बहुत महंगी पड़ी की उसकी कीमत उन्हें पार्टी की हार से चुकानी पड़ी।
इधर कर्नाटक में बजरंग दल को बैन करने की कांग्रेस की घोषणा को भाजपा ने बेशक बजरंगबली का अपमान बताते हुए मुद्दा बनाने की कोशिश की लेकिन इसका बिल्कुल भी असर नहीं हुआ। कांग्रेस ने पिछली बार के मुकाबले 4 प्रतिशत ज्यादा वोट लेकर न सिर्फ हिजाब बैन जैसे मुद्दों को बेअसर कर दिया बल्कि इसके साथ ही पूरे दक्षिण भारत को भाजपा मुक्त भी कर दिया। अब दक्षिण के किसी भी राज्य में भाजपा नेतृत्व वाली कोई सरकार नहीं है। कर्नाटक में कांग्रेस की यह जीत 1989 के बाद सबसे बड़ी जीत है। उस समय कांग्रेस ने 178 सीटें जीतीं थीं।
कर्नाटक के सबसे बड़े लिंगायत नेता येदुरप्पा अपने समुदाय के वोट एकजुट नहीं रख पाये। दूसरी ओर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे अपने राज्य में पूर्व सीएम सिद्दारमैया और प्रदेशाध्यक्ष डीके शिवकुमार जैसे दिग्गज नेताओं को एकजुट रखने में सफल रहे। भाजपा नेता अब कह रहे हैं कि मोदी –शाह ने चुनाव से पहले ताबड़तोड़ रैलियां न की होंती तो नतीजे इससे भी खराब हो सकते थे। मोदी-शाह ने कुल 47 सीटों पर रैलियां की जिनमें से 14 सीटें भाजपा ने जीतीं लेकिन उसके 12 मंत्री हार गए।
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कांग्रेस की जीत और भाजपा की हार की वजह ... जेडीएस की गढ़ में भाजपा उभरी लाभ हुआ कांग्रेस कोजेडीएस का तो गढ़ रहा है पुराना मैसूर जहां 64 सीटें हैं यहां इस बार भाजपा ने 8 फीसदी ज्यादा वोट हासिल किए हैं पर सीटें फिर भी नहीं बढ़ पायीं। इस तरह यहां सीधे तौर पर जेडीएस के वोट कटे और उसकी सींटे घट कर 12 रह गईं वहीं कांग्रेस की सीटें बढ़ कर 43 हो गईं यानी सीधे कांग्रेस को फायदा और जेडीएस का नुकसान हो गया। |
भाजपा अंत तक असमंजस में थी- प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने चुनाव से छह महीने पहले ही प्रत्याशी तय कर लिए थे यानी टिकिट की औपचारिक घोषणा के पहले ही प्रत्याशी मैदान में थे। भाजपा आखिरी वक्त तक उलझी रही। |
उल्टा पड़ा दांव- कर्नाटक को जानने वाले बताते हैं कि इसे दक्षिण का बिहार कहा जाता है। यानी जातियों का यहां भी वैसा ही महत्वरपूर्ण भूमिका होती है। भाजपा ने 4 फीसदी मुस्लिम आरक्षण खत्म कर वोक्कालिगा और लिंगायत समुदायों में बाट दिए। इधर कांग्रेस ने इसके विपरीत इसके बहाली का वादा किया औऱ जातीय जनगणना की घोषणा भी की। हिजाब बैन करने की घोषणा करने वाले शिक्षा मंत्री नागेश चुनाव हार गए। वहीं हिजाब बैन के खिलाफ रहीं फातिमा चुनाव जीत गईं। |
कमीशन का मामला-
यहां भाजपा हर चुनावी रैली में अपने मुद्दे बदलती गई लेकिन कांग्रेस ने हर जगह शुरूआत से अंत तक 40 फीसदी कमीशन के अपने मुद्दे को जीवित रखा। सीएम बोम्मई को पेसीएम बताते हुए सितंबर 2022 से लगातार पोस्टर युध्द जारी रखा। |
■ भाजपा ने दोनों राज्यों में लगाई सौगातों -वादों की झड़ी ■ विपक्षी खेमा भी सक्रिय हुआ ■ इन दोनों राज्यों में चुनाव नवंबर में होने की चर्चा
हम एक धर्म निरपेक्ष देश हैं । हमारे निर्देश सभी के लिए होंगे। चाहे वे किसी धर्म या व्यवसाय के हों। अगर सड़क के बीच में कोई धार्मिक संरचना है फिर वह गुरूद्वारा हो, दरगाह या फिर मंदिर, तो उसे हटाना ही पड़ेगा। यह जनता के आवागमन में बाधा नहीं डाल सकती। साथ ही अवैध निर्माण तोड़ने से पहले पर्याप्त समय देना चाहिए। महिलाओं और बच्चों को सड़क पर देखना अच्छा नहीं । - जस्टिस बी.आर. गवई
हम एक धर्म निरपेक्ष देश हैं । हमारे निर्देश सभी के लिए होंगे। चाहे वे किसी धर्म या व्यवसाय के हों। अगर सड़क के बीच में कोई धार्मिक संरचना है फिर वह गुरूद्वारा हो, दरगाह या फिर मंदिर, तो उसे हटाना ही पड़ेगा। यह जनता के आवागमन में बाधा नहीं डाल सकती। साथ ही अवैध निर्माण तोड़ने से पहले पर्याप्त समय देना चाहिए। महिलाओं और बच्चों को सड़क पर देखना अच्छा नहीं । - जस्टिस बी.आर. गवई
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