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सबसे लंबा बोरवेल रेस्क्यू ऑपरेशन सफल 10 जून को हुआ था हादसा 14 जून की रात 12:00 बजे निकाला गया सुरक्षित
निरंतर पहल संवाददाता . जांजगीर/रायपुर/बिलासपुर
प्र शासन शासन और जनता के संपूर्ण सहयोग से बोरवेल के खुले मुहाने में गिर गए नन्हे बालक राहुल को 5 दिन की मशक्कत के बाद सुरक्षित बचा लिया गया देश में इस तरह के पहले और भी अनेक हादसे हो चुके हैं लेकिन बचाव दल का यह सिलसिला सबसे ज्यादा लंबा चला। जांजगीर-चांपा जिले पिहरीद गांव में बोरवेल में गिरकर फंसे 11 साल के नन्हे बालक राहुल को 104 घंटे बाद एनडीआरएफ एसडीआरएफ और सेना के संयुक्त बचाव दल ने मंगलवार 14 जून की रात 12:00 बजे सुरक्षित बाहर निकाल लिया। सुरक्षा दल को राहुल के मूक बधिर होने और बोरवेल के बगल में चट्टान की वजह से अतिरिक्त मशक्कत का सामना करना पड़ा। सुरंग से निकालकर राहुल को उनके परिवार के साथ एंबुलेंस से बिलासपुर के अपोलो अस्पताल इलाज के लिए भेज दिया गया। जिसके लिए देर शाम से ही ग्रीन कॉरिडोर बना लिया गया था।
जांजगीर के समर्थ कलेक्टर जितेंद्र शुक्ला ने बताया कि राहुल ने आंखें खोल कर सबको देखा। राहुल को सुरंग के जरिए निकालने के लिए 14 तारीख की दोपहर बाद सेना ने कमाल सम्हाल ली थी। जवान फोल्डेबल स्ट्रेचर ऑक्सीजन सिलेंडर समेत कुछ और आपातकालीन उपकरण लेकर शाम करीब 5:00 बजे सुरंग में उतरे थे। बचाव दल के अनुसार राहुल की झलक रात 10:00 बजे दिखी थी। उधर सुरक्षित होने की चर्चा के बीच राहुल के माता-पिता को एंबुलेंस में पहले ही बिठा दिया गया था। जांजगीर से बिलासपुर तक ग्रीन कॉरिडोर भी शाम से एक्टिव कर दिया गया था यद्यपि राहुल को सुरंग से निकालने की मुहिम में रात 11:00 बजे थोड़ी दिक्कत इसलिए आई क्योंकि बोरवेल में पानी भरने लगा था। इस पानी के स्तर को कम करने के लिए आसपास के पूरे इलाके में बोर चालू करवाए गए थे ताकि पानी का स्तर नियंत्रित रह सके। सुरंग से राहुल तक रस्सी पहुंचाई गई इसके बाद उसे बाहर निकाल लिया गया। इसे सुरंग से एंबुलेंस तक भी कॉरिडोर बनाकर पहुंचाया गया।
गांवभर के सारे बोर लगातार रखे गए चालू
राहुल 80 फीट गहरे बोरवेल में 65 फीट पर जाकर फंस गया था और उसके नीचे पानी था। बचाव दलों के सामने बड़ी चुनौती यह थी कि बोरवेल को खाली रखना था और उसमें चारों तरफ से लगातार पानी भर रहा था। इसके लिए 5 दिन तक गांव के सारे बोर कुछ- कुछ अंतराल के बाद लगातार चालू रखे गए ताकि पानी का स्तर कम बना रह सके। राहुल को निकालने के ठीक एक घंटे पहले भी बोरवेल में पानी भरने लगा था।उस समय आसपास के सारे बोर चला दिए गए गए जिससे बचाव के काम मे एक घंटा विलंब हुआ।
मशीन से बोरवेल धंस न जाय इसलिए किया गया हाथ से काम
जमीन के नीचे बोरवेल के चारों ओर बड़ी-बड़ी चट्टानें थीं इसलिए बोरवेल के समानांतर 60 फीट गहरा गड्ढा बनाने में 2 दिन लग गए। इसके बाद बचे हुये हिस्से में सिर्फ 9 मीटर की सुरंग खोदने के लिए पूरी चट्टान को हटाने हाथ से ही काम करना पड़ा क्योंकि मशीन इस्तेमाल करने थे चट्टान के धसक जाने का खतरा था। ऐसा होने की स्थिति में राहुल की जान को खतरा हो सकता था इसीलिए बचा हुआ सारा काम मैनुअल ही करना पड़ा।
5 दिन सुरक्षित रखना सबसे बड़ी चुनौती
देशभर में बोरवेल में बच्चों के गिरने की जितनी भी घटनाएं हुई हैं उनसे सबसे ज्यादा 105 घंटे का समय राहुल के रेस्क्यू में ही लगा है। इससे पहले हरियाणा के कुरुक्षेत्र में 50 घंटे के अभियान के बाद प्रिंस नाम के बच्चे को बचा लिया गया था। राहुल के रेस्क्यू में सबसे बड़ी चुनौती उसे लगातार ऑक्सीजन और खाने-पीने की चीजें देना भी रही क्योंकि उसे 5 दिन तक सुरक्षित रखना भी जरूरी था।
सीएम भूपेश बघेल ने दिन रात की मॉनिटरिंग
सीएम भूपेश बघेल राहुल के बोरवेल में गिरने के बाद से निकाले जाने तक पूरे बचाव अभियान के साथ लगातार पांच दिनों तक मॉनिटरिंग करते रहे। यहां तक कि उन्होंने रात 2:00 बजे भी प्रशासनिक अफसरों को निर्देश दिए। राहुल को निकाले जाने के बाद उन्होंने पोस्ट किया कि ‘हमारा बच्चा बहुत बहादुर है। ऑपरेशन में शामिल रेस्क्यू टीम को बधाई।
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