• 28 Apr, 2025

महिला आरक्षण बिल लोकसभा व रास में

महिला आरक्षण बिल लोकसभा व  रास में

• नारी शक्ति वंदन से श्री गणेश • नई संसद का पहला दिन, पहला बिल, पहला संबोधन महिलाओं के लिए समर्पित • लोस-विस में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित करने का प्रावधान • बिल में 15 साल के लिए आरक्षण का प्रस्ताव • यदि पास हुआ तो ... परिसीमन तक इंतजार • यह सपना अधूरा था ईश्वर ने इसके लिए मुझे चुना- नरेन्द्र मोदी

नई दिल्ली। नई संसद में सभा की शुरूआत, लोकतंत्र  की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही नरेन्द्र मोदी सरकार ने लंबे समय से विचाराधीन महिला आरक्षण विधेयक को लो 19 सितंबर 2023 को लोकसभा में पेश कर दिया।  नारी शक्ति वंदन अधिनियम से पेश संविधान के 128  वें संशोधन में लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान है।  - एससी-एसटी के लिए आरक्षित सीटों में महिलाओं के लिए भी एक तिहाई कोटा होगा।  इस पर लोकसभा में चर्चा भी शुरू हो चुकी है। इसके बाद बिल राज्यसभा में जाना है।  सरकार तो इसे 22 सितंबर तक चलने वाले संसद के विशेष सत्र में पास करना चाहती है। समझा जा रहा है कि ज्यादातर दलों के समर्थन में इसका पास होना भी तय था।  

कहा जा रहा है कि 2024 के विधानसभा चुनाव या आम चुनाव में महिला आरक्षण का लागू होना मुश्किल है। क्योंकि संसद के मसौदे के मुताबिक कानून बनने के बाद पहली जनगणना और परिसीमन में महिला  आरक्षण सीटें तय होंगी। 2021 में होने वाली जनगणना अब तक नहीं हो सकी है  और ऐसे में आरक्षण 2026 से पहले पास होने की संभावना बहुत कम है।  कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने बिल पेश  करते हुए कहा इससे लोकसभा में महिलाओं की संख्या 82 से 181 हो जाएगी। इसमें शुरूआत में 15  साल के लिए आरक्षण का प्रावधान है।  संसद को इसे बढ़ाने का अधिकार होगा। 
 
नई लोकसभा भवन में अपने पहले संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा यह संसद भवन आजादी के अमृतकाल का ऊषा काल है। मैं दोनों सदनों के सभी सदस्यों से विधेयक को सर्वसम्मति से पारित करने का अनुरोध करता हूँ। हम उन्हें जितनी सुविधा देंगे हमारी बहनें और बेटियां उतना सामर्थ्य दिखाएंगी।   पीएम मोदी ने उम्मीद जताई कि पुरानी संसद भवन में भारत दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था बना तो नए संसद भवन में दुनिया की तीन शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होगा।  

 नई लोकसभा को सबसे पहले संबोधित करते हुए स्पीकर ओमबिड़ला ने कहा कि पुराने संसद भवन को संविधान सदन के नाम से जाना जाएगा।  
लोकसभा और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों को तय करना है परिसीमनः- आबादी का प्रतिनिधित्व करने के लिए लोकसभा और विधानसभा चुनावों के निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं के निर्धारण को परिसीमन कहते हैं। 

  • कब, कैसे और क्यों ये तीन अहम बातें
  • तुरंत लागू क्यों नहीं किया जा सकता-
    बन भी गया तो भी जनगणना और परिसीमन के बाद ही यह कानून लागू हो पाएगा। जनगणना में कम से कम दो साल का लम्बा वक्त लगेगा ही और इसके बाद ही परिसीमन संभव है। लेकिन मौजूदा कानून के तहत अगला परिसीमन 2026 के पहले नहीं हो सकता। ऐसे में 2027 में 8 राज्यों के चुनाव व 2029 के आम चुनाव से ही यह लागू हो पायेगा।
  •  महिला आरक्षित सीटें कैसे तय होंगी- 
    2026 के परिसीमन में तय होगा कि कौन सी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। इसके बाद जब जब परिसीमन होगा इसके हिसाब से सीटें बदलतीं रहेंगी। इसके लिए पंचायतों में लागू लॉटरी सिस्टम की तरह सीटें तय की जा सकती हैं।  हालांकि मौजूदा मसौदे में इसको लेकर कोई स्पष्टता नहीं है। 
  • क्या राज्यों की सहमति जरूरी है-
    जी हाँ, अनुच्छेद 368 के मुताबिक, संविधान संशोधन बिल के लिए कम से कम 50 फीसदी राज्यों की सहमति जरूरी होती है। अभी देश में 16 राज्यों में एनडीए की सरकार है।  11 राज्यों में इंडिया गठबंधन और 3 राज्यों में अन्य दलों की सरकारें हैं। हालांकि इस बारे  में ज्यादातर पार्टियां समर्थन में हैं इसलिए कोई दिक्कत नहीं है। 

क्या कहते हैं विशेषज्ञ –

सीटें बढ़ाने की मंशा के चलते ही इस बिल को परिसीमन से जोड़ा है- पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त किदवई
अगर यह विधेयक संसद के मौजूदा विशेष सत्र में पारित भी हो जाता है तो इसके बाद होने वाली जनगणना के आधार पर परिसीमन  की कवायद शुरू हो जाएगी। यानी इस प्रक्रिया के बाद सीटें नई लोकसभा की क्षमता को देखते हुए बढ़ाई जाएंगी और उसका एक तिहाई हिस्सा महिलाओं के हक में जाएगा। जाहिर है कि इस प्रक्रिया में सीटें बढ़ाने की मंशा शामिल है।  इससे सीटें बढ़ सकती हैं और जिसका एक तिहाई हिस्सा महिलाओं को जाएगा। यदि ऐसा न होता तो इस बिल को परिसीमन से नहीं जोड़ा जाता। 
विधेयक बिना परिसीमन के भी लाया जा सकता था।  राज्यसभा में 2010 में पारित पिछले बिल में परिसीमन की शर्त नहीं थी, यह बिल पर निर्भर करता है।  इस नए नारी शक्ति वंदन अधिनियम में महिला सीटों के आरक्षण के लिए अनुच्छेद 334 ए जोड़ा गया है इसमें कहा गया है महिला आरक्षण के लिए परिसीमन अनिवार्य है। 
 

  • बिपक्ष का साथ – लेकिन ओबीसी कोटा मांगा, उमा भारती बोली कोटा 50 फीसदी हो
    महिला आरक्षण बिल में ओबीसी कोटा नहीं होने से विपक्ष के साथ ही भाजपा में भी सवाल उठे हैं। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा इसमें पिछड़े, दलित अल्पसंख्यक आदिवासी महिलाओं का आरक्षण निश्चित होना चाहिए। बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने कहा ओबीसी और ईबीसी वर्ग की महिलाओ को ठेंगा दिखाने वाला है। 
    वहीं बसपा प्रमुख मायावती ने आरक्षण बिल का समर्थन करते हुए कहा कि एससी एसटी के साथ ओबीसी वर्ग का कोटा भी इसमें अलग से होना चाहिए। बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने भी ओबीसी आरक्षण की वकालत की। 
    इसी बीच भाजपा नेता उमाभारती ने कहा कि मुझे डर है यह होने वाला 33 फीसदी आरक्षण उस वर्ग को चला जाएगा जो सिर्फ मनोनीत ही होंगे... मैंने पीएम मोदी को चिट्ठी लिखी है उसमें कहा है कि ओबीसी की महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण होना चाहिए नहीं तो भाजपा से इस वर्ग का विश्वास टूट जाएगा।  
    वहीं कांग्रेस के सांसद पी. चिदंबरम ने कहा कि न तो अभी अगली जनगणना की तारीख तय है, न ही परिसीमन की ऐसे में महिला आरक्षण दो अनिश्चित तिथियों पर निर्भर है। इससे बड़ा जुमला क्या हो सकता है। 
  • 20 साल में महिला प्रत्याशी 152 प्रतिशत व सांसद 59 प्रतिशत बढ़ीं
    तीन साल में पुरुषों से ज्यादा महिला वोटर जुड़ीं हैं -  2019 से 2022 के बीच 5 फीसदी महिला और इसकी तुलना में 3.9 पुरुष मतदाता बढ़े हैं। 2019 में महिलाओं का वोट प्रतिशत भी पुरुषों से अधिक रहा। इसके साथ ही बीते दो साल में 8 विधानसभा चुनावों में से 6 में भी यही ट्रेंड दिखा।
  • महिला वोटर भी 20 फीसदी तक बढ़ गईं-
    महिलाओं में चुनाव जीतने की क्षमता पुरुषों से अधिक – 30 सालों में 92 विधानसभा चुनावों का आंकड़ा बताता है कि महिलाओं के चुनाव जीतने की क्षमता 13 प्रतिशत और पुरुषों की मात्र 10 फीसदी तक ही है पर यह तथ्य  है कि पुरुषों के मुकाबले चुनावों में महिलाओं की  भागीदारी 90 फीसदी तक कम है। इस बीच महिला प्रत्याशियों का अनुपात 5 फीसदी से 10 फीसदी तक ही हुआ है।

    जहां महिला सांसद अधिक वहां भ्रष्टाचार कम – जर्नल ऑफ इकोनोमिक बिहेवियर एंड ऑर्गेनाइजेशन में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक जहां महिला सांसद ज्यादा होती हैं वहां उन सरकारों में भ्रष्टाचार कम होता है क्योंकि वे कार्यव्यवाहर में पुरुषों से अलग नीतियों का चुनाव करती हैं।