• 29 Apr, 2025

चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर क्यों उठ रहे इतने सवाल ?

चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर क्यों उठ रहे इतने  सवाल ?

• समीर दीवान

देश में आम चुनाव लगभग समाप्ति के चरण पर है ऐसा इससे पहले लिखा या कहा नहीं जाता था क्योंकि चुनाव दो महीने तक नहीं चला करते थे। देश की आबादी, क्षेत्रफल और अनेक राज्यों में दूरस्थ और दुर्गम रास्तों से चुनाव के लिए टीमें भेजनीहोती हैं और मौजूदा समय में जब निष्पक्ष चुनाव कराने की तैयारी शुरु होती है तो कई तरह की चुनौतियों से चुनाव आयोग को दो-चार होना होता है। देश के कतिपय अशांत क्षेत्रों में भी चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से कराना मुश्किल काम हो जाता है तो इसी से चुनाव को चरणबध्द करने की योजना  बनती है। एक ओर जहां आयोग को इस तरह चुनाव कराने मेंसुविधा होती है वहीं आचार संहिता की आड़ में आम नागरिक के दर्जनों जरूरी काम लटके रहते हैं।

अब पांच साल में एक दफा होने वाले इस कवायद को लोग बर्दाश्त भी कर लेते हैं पर विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में ऐन चुनाव के समय ही जब संविधान की अनदेखी होती है तो और इसे कोई और नहीं कर रहा होता खुद देश की सबसे पुरानी और बड़ी राजनीतिक पार्टियां ही आदर्श चुनाव आचार संहिता की धज्जियां उड़ा रही होती हैं। जात-पात के नाम पर केनवासिंग चल रही होती है। जातिवादी टिप्पणियां खुले आम होती हैं और वह भी किसी पार्षद या पंचायत स्तर के जनप्रतिनिधि नहींदेश के सर्वोच्च पदों पर बैठे नेता कर रहे होते हैं। आयोग से शिकायत  हो भी जाए तो इस पर संज्ञान लेने या कार्रवाई करने में ही हफ्तों का वक्त लग जाता है वह भी कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद जबकि आयोग को चुनाव संबंधी शिकायतों के निवारण के लिए देश का संविधान पर्याप्त शक्तियां दिए हुए है वह भी इस संकेत के साथ कि चुनाव के बारे में शिकायत पर कोर्ट को हस्तक्षेप की नौबत नहीं आनी चाहिए फिर भी यदि कोर्ट को ही हस्तक्षेप करना पड़े और उसकी ही सख्ती के बाद आयोग शिकायत का निपटारा करने पर आये तो यह तो किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए शर्म की बात है यह हम नहीं कह रहे इस तरह की नौबत देश के सामने देखते हुए जब एक वरिष्ठ पत्रकार ने 17  वें पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त शहाबुद्दीन याक़ूब कुरैशी से राय जाननी चाही तो उन्होंने ये बात कही , इतना ही नहीं उन्होंने ने ये भी कहा कि आयोग इनकी  जायदाद  है, जो ये आंकड़े नहीं देंगे?  मेरी तो बात समझ मे नहीं आई। जब सारे आकड़े पहले ही दिन से पता  है जिसे बताने में  चंद मिनटों का समय लगना  है,  फिर इतनी देरी  क्यों ? ये वाज़िब सवाल है।
      इधर  दूसरी ओर  चुनाव आयोग के वकील मनिंदर सिंह  ने सुप्रीम कोर्ट में  एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म  की ओर से लगी मतदान के आकड़े  देने  सम्बन्धी याचिका के जवाब  मे कहा कि इस तरह की याचिकाएं आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल लगाने के लिए  किए जाते हैं, इनमें कोई तथ्य तो होता नहीं बिना सबूत इस तरह शोर मचाया जाता है वो भी चुनाव के  दौरान । इस  पर सुप्रीम कोर्ट के वकीलों ने सबूत सहित  तर्क रखे। और वीडियो भी  दिखाया कि कैसे फर्रुखाबाद  में एक युवक इवीएम में बार बार 8 बार भाजपा को वोट देता हुआ  दिखाई दे रहा है। इसके  बाद आयोग संज्ञान लेता है और फिर  से चुनाव  कराने की घोषणा होती है। वस्तुतः इस का संज्ञान आयोग को पहले ही ले लेना चाहिए था।  कोर्ट के आदेश के बाद जागना आयोग की इमेज खराब करता है।   अब 4 जून को चुनावों के नतीजे आने  तक इस तरह की कवायद चलती रहेगी । तो क्या कोर्ट के हस्तक्षेप के  बाद जारी कार्रवाई के आदेश आयोग को  शर्मसार  नहीं करते? यदि ये आयोग की नाक के नीचे  होगा, उसकी अनदेखी होती रहेगी तो उसकी विश्वसनीयता पर सवाल तो उठेंगे ही.