आम चुनाव की रणभेरी बज चुकी, सेनाएं सज चुकीं, कूटचालें भी चली जाएंगी, जीत के लिए हर संभव जतन किए ही जाएंगे। युध्द और प्रेम में सब जायज है कि तर्ज पर ही सत्ता की बागडोर मिलना सुनिश्चित किया जाएगा। अब तो कहना होगा कि कथित विपक्ष की आवाज सड़कों पर ही देश नाप रही है तो उधर केन्द्र की सत्ता पर दो टर्म पूरा कर चुकी पार्टी के आत्मविश्वास का आलम यह है कि वो तो सीटों के आंकड़े तक तय कर बैठी है - 'अब की बार चार सौ पार' जैसे जुमले मीडिया के कोनो-किनारों तक फैला दी गई है। कांग्रेस की इस दशा में पहुंचने के जितनी वजहें रही हैं उनमें से एक उनके अपने ही लोगों का पार्टी से मोहभंग होना भी है। वरिष्ठ नेताओं का कितनी दूर तक और कितनी देर तक नाम लिया जा सकता है उन सभी के अनेक कारणों से पार्टी से मोह टूटना क्रमिक ही रहा है। इन लोगों ने यूं तो दशकों तक सत्ता का सुख भोगा इतना कि उनकी पीढियां भी उनके पुण्य प्रताप से ऐश्वर्य भोग रहीं हैं। इससे पहले कई पायों पर खड़ी रही अनेक सरकारों की जाहिर है मजबूरियां भी रहीं ही होंगी तो उन्होंने इस तरह का साहस भी नहीं किया जिस तरह का साहस भाजपा की बहुमत की मजबूत सरकार केन्द्र में कर पा रही है। भ्रष्टाचार के लिए 'जीरो टालरेंस' की बात कहने वाली भाजपा दिख तो रही है कि किसी को भी बख्श नहीं रही। उसने बरसों विपक्ष में
रहकर जाना है कि कैसे पराजय के बाद सब्र रखा जाता है और कैसे अवसर आने पर हथियार पजाए जाते हैं। तो ईडी- आईटी- और सीबीआई वज्र बनकर कथित भ्रष्ट पीठों पर प्रहार कर रही हैं।
सत्ता के व्यसनी हो गए विपक्ष के कुछ बड़े नेताओं को केन्द्र ने उनके अगल-बगल ताबड़तोड़ कार्रवाई कर बता दिया है कि उनका भी नंबर कभी भी लग सकता है। निथर चुका उत्साह ही बताता अब 'जरा और जर्जर' हो चली हड्डियों में न तो संघर्ष के लिए ताकत बची है न ही कोई जज्बा।
उनके रवैयों से तो दिख ही रहा है कि अपने -अपने 'लख्ते जिगरों' को अपने जीवनभर के कमाए साम्राज्य और उपाय कर- कर के खड़ी की गई थाती सौंपने के लिए उनका हथियार डालना जरूरी है, और केन्द्र की सरकार जानती है कि सत्ता और ऐश्वर्य के कथित व्यसनियों की सबसे बड़ी मजबूरी भी यही है।
कितना आसान है निहत्थे दुश्मन को चित कर देना तो ऐसी दशा में तो - आंकड़े निकल कर आ रहे हैं- 'अब की बार चार सौ पार' ..
उत्तरभारत की सीटों में इन चार सौ का ज्यादा बड़ा हिस्सा निहित है पर सारा दारोमदार दक्षिण और बंगाल की सीटों पर है जहां के आंकड़े उत्तर भारत के प्रदेशों के साथ जुड़ कर ही 'चार सौ पार' कर पाने में सक्षम होंगे। तमिलनाडु में द्रमुक के गढ़ से सीटें बटोरनी होगी। केरल में वाम का मोहभंग कर कुछ आंकड़े जुटाने होंगे, तेलंगाना और आंध्र से भी इसी तरह की कोशिशें होंगी। बात बंगाल और ओडिशा पर आकर ठहरती है। तो पिछले बार के आम चुनावों में पं बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी का तख्त हिलाने की हर संभव कोशिशें की गई थी वो भी कोरोना के विकट-विकराल समय में, तब जब लोगों से जीवन की बागडोर की पकड़ हाथ से ढीली हो रही थी। पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की एड़ी-चोटी का जोर लगाया पर ममता की सत्ता नहीं डिका सके। जाहिर है मर्म आहत हुआ है तो अबकी बार इसका इलाज कर लिया जाएगा जैसे तेवर चुनाव के पहले से दिखाए जाने लगे हैं।
सियासत की ममता बेनर्जी की शैली के बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं है जिसने दो दशकों तक गहरी जड़ें जमाए बैठे सीपाईआई को बंगाल से लगभग निष्कासन के लिए ही विवश कर दिया। देशभर में अपने कूटनीति से सरकारें बनाने के लिए मशहूर हो रही भाजपा की शीर्ष नेतृत्व की तमाम कोशिशों के बाद भी पिछले चुनाव में बंगाल से लगभग छूछे हाथ ही लौटना कितना जिल्लतों से भरा रहा होगा कहना न होगा। तो अब की बार सारे जतन कर पिछले बार की कोर-कसर पूरा करने के लिए लगता है,संकल्पित है भाजपा।
अगड़ों-पिछड़ों, ओबीसी, महिलाओं, अल्पसंख्यकों, किसानों-जवानों को रिझाने की तमाम जादूगरी करते पांच साल हो गए इन सबके बिना पर ही तो'चालीस पार' का नारा चल पड़ा है। फिर भी दिल के किसी कोने में एक आशंका होगी ही कि बंगाल और केरल के साथ दक्षिण की सीटों का गणित तो ठीक बैठना ही चाहिए वरना इस आंकड़े तक पहुंचने के रास्ते सकरे ही रह जाएंगे तो उस करिश्माई आंकड़े तक पहुंचना दुर्गम ही रह जाएगा।
और अंत में -
पहला तो ये कि सोशल मीडिया पर तो लगातार कैम्पेन चलता रहा है कि देशभर में बहुत से समाजसेवी संगठन - ईवीएम से चुनाव कराने के विरोध में रहे हैं और पुराने तरीके से बैलेट पेपर से ही मतदान कराने के लिए आंदलोनरत रहे हैं.. पर पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में लगी रिट पर कह दिया चुनाव तो ईवीएम से ही होंगे। बैलेट पेपर से चुनाव नहीं होंगे। दूसरा है आम चुनाव के ठीक पहले स्वतंत्र पत्रकार पूनम अग्रवाल ने इलेक्टोरल बांड को लेकर सुप्रीम कोर्ट के सवालों से छलनी स्टेट बैंक के घायल रहते ही बता दिया कि चुनावी चंदे का 'असल खेल' किस तरह चलता रहा है। उन्ही की खोज के बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक से पूछा बांड के नंबर तो आपने दिए ही नहीं, बताइये जल्दी ?