• 28 Apr, 2025

विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून पर विशेष ....

विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून पर विशेष ....

कोशिश हो तो लौट सकती है मैनपाट की कुदरती खूबसूरती

■ समीर दीवान 
मैनपाट (सरगुजा)।गर्मी की छुट्टियों में इस बार मैनपाट यात्रा का मन बना तो सपरिवार  छुट्टियां मनाने 5 जून की सुबह रायपुर से 7 बजे  मैनपाट के लिये  निकल पड़े। यह एक संयोग ही है कि पूरी दुनिया आज के दिन पर्यावरण दिवस मना रही है और सूर्यास्त होते- होते हम अम्बिकापुर से लगभग पचास किमी दूर पहाड़ पर बसे सरगुजा जिले के कस्बे मैनपाट के लिये जा रही जंगल से आच्छादित सर्पिल सैकड़ों पर रोमांचक सफर पर थे।
      वैसे तो हम प्लेजर ट्रिप पर ही  यहाँ आये हैं और अब जब अपने ठिकाने पर पहुंचे हैं तो बड़े उत्साहित और रोमांचित भी हैं । घना अंधेरा छा रहा है और रिसार्ट के बाहर खासी हरियाली है, उसके साथ है शहरों में लगभग अनुपलब्ध रहने वाला गहन सन्नाटा।  अच्छी गहरी सांस लेने पर यहां की आबो-हवा की इन गर्मी के दिनों में भी कुछ खबर मिल रही थी।  गूगल ने दिन का अनुमानित तापमान 31 डिग्री अधिकतम बताया था तो रात होने पर 25 के करीब हो रहा था जो  ऐसी कमरे जितना सुखद था।  रात के भोजन और विश्राम के बाद की सुबह भी बहुत सुंदर और सुखद थी। चारो ओर पेड़ और वनस्पतियों ने रिसॉर्ट को सम्मोहक सा बना दिया था। 
   सुबह के नाश्ते के बाद हमारा पहला पड़ाव था मैनपाट के करीब के गांव कुनेरी का खूबसूरत लीची फॉर्म । यहां इसके मालिक सूबेदार मेजर लाकपा से मिलना भी कम रोमांचक नही था जिन्होंने रिटायरमेंट के बाद 2017 में कुल 8 एकड़ के खेतों में कोई 27 किस्मो के फलदार पेड़ लगाए हैं । जिनमे से अनेक तो विदेशी किस्में हैं और उनके कमाल के इंतजाम और देखभाल से इस समय भी फलों से लदे है।  बहरहाल बातचीत में उन्होंने बताया कि उनका जन्म तिब्बती शरणार्थी परिवार में मैनपाट में ही साठ के दशक की शरुआत में हुआ था। 1959 में तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद 1962 - 63 में शरणार्थी तिब्बत से भारत आये तो उनमें से 900 लोगो को मैनपाट में बसाया गया जिसकी आबो हवा तिब्बत के आबोहवा से मिलती जुलती सी थी। सूबेदार लाकपा बताते हैं कि जब वे छोटे बच्चे थे तो कुनेरी गांव जहां हम अभी बैठे है यहां बहुत ही घना जंगल हुआ करता था।  झोपड़ियों से निकलते ही अक्सर बाघ, भालू जैसे जानवर दिख जाते थे। खेती के लिए हमारे पूर्वजों ने कुछ जंगल काटे भी पर फिर भी पर्यवारण में जरूरी संतुलन बना रहा। अब आबादी के दबाव में पेड़ काटे हैं तो पहले जैसी स्थिति नही है। 
एक अन्य स्थानीय बाशिंदे ने बताया कि जंगल विभाग के आंकड़े भी मैनपाट के जंगलों के सपाट होने की कहानी कहते हैं ये और बात है कि कागजों में हर साल जाने कैसे बारिश के आते आते लाखों की संख्या में पेड़  रोप दिये जाते हैं पर जमीन पर धूल उड़ रही होती है। हमने तीन दिन रात मैनपाट में ठहर कर देखा सचमुच सुंदर तो है पर जाहिर है ये 60 साल पहले अपने पूरे हरियर वैभव के साथ बहुत खूबसूरत रहा होगा। लगता तो है कि जंगल पर दबाव कम हो , पेड़ों का कटाव रुके तो ऐसे में पर्यावरण दिवस पर  पेड़ रोपने की सामूहिक जिमेदारी और सार्थक ज़मीनी प्रयास से  इसकी खोई हुई खूबसूरती वापस हासिल की जा सकती है।
 

विश्व पर्यावरण दिवस क्यों और कब से मनाते हैं ?

विश्व पर्यावरण दिवस ( World Environment Day; WED) पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पूरे विश्व में 5 जून को मनाया जाता है। वर्ष 1972 में पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु इस दिवस को मनाने की घोषणा  की गई थी।
विश्व पर्यावरण दिवस पर्यावरण के प्रति जागरुकता बढ़ाने के लिए भी मनाया जाता है, जो व्यक्तिगत, समुदाय और वैश्विक स्तर पर कार्रवाई को प्रोत्साहित करने के लिए महत्वपूर्ण कदम है। यह इस बात की भी याद दिलाता है कि आज की पीढ़ी को आने वाली जनरेशन के लिए पर्यावरण को संरक्षित करना कितना महत्वपूर्ण है।
1972 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम सम्मेलन के पहले दिन को चिह्नित करते हुए 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में नामित किया। उसी दिन महासभा द्वारा अपनाए गए एक अन्य संकल्प से UNEP का निर्माण हुआ। फिर 5 जून 1973 को पहली बार विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की शुरुआत की गई।