पूरे महीने कई तरह के घटनाक्रम ने देश और सियासी हलकों को झकझोर कर रख दिया। मणिपुर में नफरत, हिंसा, अशांति और अनाचार ने उपजी जुगुप्सा ने पूरे देश को सिहरा दिया पर केंद्र की सरकार को जैसे इतने पर भी कोई फर्क नही पड़ा था। मई में जो कुछ भी दो महिलाओं के साथ मणिपुर में घटा उसने पूरी मानवता को शर्मसार किया है। लगातार सौ से ज्यादा दिनों से चल रही हिंसा में सवा सौ लोगों की जानें जा चुकीं हैं। तब से ही पूरा मणिपुर जातीय हिंसा की आग में जल रहा है। मैतेई और कुकी समुदाय के लोग एक दूसरे की जान के दुश्मन बने हुए हैं। इधर दो महिलाओं के साथ हुए सामूहिक दुष्कृत्य के वीडियो वायरल होने पर भी केंद्र की चुप्पी ने देश के शीर्ष न्यायालय को ही सुओमोटो संज्ञान लेने पर विवश कर दिया। पीएम मोदी को तब फुरसत मिली जब संसद का पावस सत्र शुरू हुआ उस पर भी मणिपुर की अभूतपूर्व घटना के साथ दो प्रदेशों छत्तीसगढ़ और राजस्थान का जिक्र कर जातीय हिंसा की तुलना अन्य जगहों से करते हुए ये बताने की कोशिश हुई कि और भी प्रदेश हैं जहां हालात खराब हैं, हद है। ये इतनी संजीदा बात की गम्भीरता कम करने की अशिष्ट कोशिश थी।
सीजेआई ने कहा इतिहास गवाह है, कि दुनियाभर में ऐसी स्थितियों में हिंसा को अंजाम देने के लिए महिलाओं का इस्तेमाल एक साधन के रूप में होता है, लेकिन संवैधानिक लोकतंत्र में ये अस्वीकार्य है। अब समय आ गया है कि सरकार जल्दी कार्रवाई करे। दो युवतियों की नग्न परेड के वीडियो पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा वीडियो बेहद परेशान करने वाला है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा कि यह संवैधानिक अधिकारों और मानवाधिकारों का घनघोर उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा सरकार तत्काल कार्रवाई करे अन्यथा हम करेंगे कार्रवाई। सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर की सरकार और केंद्र सरकार से मामले में की गई कार्रवाई की रिपोर्ट तलब की है।
दूसरी ओर एक और महत्वपूर्ण मामला इसी बीच सामने आया जब 4 अगस्त को मानहानि मामले में राहुल गांधी की सजा पर भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट ने मानहानि मामले में जो सजा दी वह 2 साल की अधिकतम सजा भी इस तरह के मामले में अभूतपूर्व ही है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि सीजे एम को पता था कि राहुल को एक दिन भी कम सजा मिलने का मतलब क्या है ? और फिर सॉलिसिटर जनरल का सुप्रीम कोर्ट की पीठ से गुजारिश करना कि वह ‘गुजरात हाईकोर्ट पर तत्काल कोई सख्त टिप्पणी न करे’ भी यह बताता है कि मामले के पीछे की मंशा क्या थी?
इतना ही नहीं पीठ ने यह कहा कि यह गुजरात का कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी हमने गुजरात से आये मामले देखे हैं। और इस तरह संसद में बोलने से रोकने के लिए किये गए सत्तापक्ष के सभी प्रयास विफल हो गए , राहुल को फिर संसद में बोलने का मौका मिला तो फिर उन्होंने सब कुछ बोला और खूब बोला, बोला ही जाना चाहिए था। नए बने गठबंधन के अविश्वास प्रस्ताव पर कोर्ट से राहत लेकर लौटे राहुल ने मणिपुर की दुर्दशा के लिये जब केन्द्र सरकार को हमले की जद में लिया तो ट्रेजरी बेंच को जैसे पाला मार गया। इतनी बड़ी घटना और ऊपर से अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सदन में उपस्थित न रहने को उनके विराट अहंकार की तरह देखा- दिखाया गया। राहुल ने मेटाफोरिकल भाषा में रामायण के पात्रों मेघनाथ और कुम्भकर्ण को अहंकारी रावण का विश्वासपात्र बताकर लाक्षणिक रूप से ये कहने की कोशिश की कि राजा को दंभी नहीं होना चाहिए। मणिपुर की तुलना लंका से करते हुए कहा कि लंका को हनुमान जी ने बल्कि रावण के अहंकार ने जलाकर नष्ट कर दिया और मणिपुर भी किसी और कि वजह से नहीं बल्कि राजा के अहंकार से ही जल रहा है। कहा कि केंद्र की सरकार ने मणिपुर में भारतमाता की हत्या की है। हिंदुस्तान कि हत्या की है। राजा देशद्रोही है। इतने आक्रामक तेवर की तो कल्पना भी नहीं की थी।
उधर की आग अभी धधक ही रही है कि हरियाणा के नूह में साम्प्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश हुई इसमें कितनी जानें चली गईं। जन प्रतिनिधियों की चालाकियां सब मतदाता समझते हैं। जहां बरसों से सौहार्द्र कायम था वहां की शांति जानबूझ कर भंग करने की कोशिश हुई। प्रशासन की सलाह, उसकी समझाइश को रद्दी की टोकरी में डाल कर जुलूस उस रास्ते से ही निकाला गया जिससे गड़बड़ होना तय समझा गया था। अपनी ड्यूटी सही ढंग से कर रहे पुलिस अफसर को निलंबित सिर्फ इसलिए कर दिया जाता है कि उसने बिगड़ती हुई स्थिति को काबू में करने हल्की लाठी चार्ज के अनुमति दी थी। क्या ये समझते हैं कि लोग सिर्फ आपकी दी हुई ऐनक से ही देखेंगे? बहरहाल पिछले दशकभर से ज्यादा समय से सत्ता की लिप्सा में तमाम हदें लांघ जाने की बढ़ती बेशऊरी लोगों के रिश्ते,सुख- चैन सब छीन ले रही है। आखिर आम लोगों की सुरक्षा की जवाबदेही किसकी है ?
फिलवक्त तो सियासतदानों की मोटी चमड़ी ही है जो उन्हें हर हाल में ‘स्थितप्रज्ञ’ बनाये रखे हुई है। चुनाव करीब आ रहे है और पार्टियां अपने औजार पजा रही हैं। वे हर उस पैतरें, चाल और चालाकियों का इस्तेमाल बड़ी निष्ष्ठुरता और निर्लज्जता से करती रही हैं जिनसे सत्ता तक पहुंचने की राह से रोड़े हटते हों, फिर चाहे इस कोशिश में लोगों का कितना भी अहित हो , उनके घर तबाह हो जाएं, उनकी रोजी-रोटी के लाले पड़ जाएं, कानून व्यवस्था बिगड़ कर जंगल राज कायम हो ज़ाय, ये सब उनके लिए कोई सरोकार ही नहीं रह जाते। लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे कलुषित पक्ष यही है कि इसमें 'लोक' को अपने समर्थन में खड़ा करना अनिवार्य होता है फिर वो चाहे जिस भी तरीक़े से हो, दुर्भाग्य से फिर 'सब कुछ ' ही जायज बना दिया जाता है।