अब महाराष्ट्र-झारखंड में चुनावी सरगर्मियां तेज..
■ भाजपा ने दोनों राज्यों में लगाई सौगातों -वादों की झड़ी ■ विपक्षी खेमा भी सक्रिय हुआ ■ इन दोनों राज्यों में चुनाव नवंबर में होने की चर्चा
■ टाइगर रिजर्व के निदेशक की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल ■ जो राजा जी कहें वही चलेगा का युग नहीं, सत्ता है तो क्या कुछ भी करेंगे
नई दिल्ली। उत्तराखंड में एक वरिष्ठ अधिकारी की नियुक्ति मनमाने ढंग से करने के मुख्यमंत्री पुष्करसिंह धामी के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह कोई सामंती युग नहीं है। धामी ने अपने मंत्रिमंडल सहयोगी व अन्य प्रशासनिक अधिकारियों की अनुशंसा की अनदेखी कर भारतीय वन सेवा के अधिकारी राहुल को राजाजी टाइगर रिजर्व का निदेशक नियुक्त किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यमंत्री धामी के फैसले पर कहा कि यह सामंतों का युग नहीं है कि जो राजाजी कहें वही चलेगा। दरअसल राहुल पहले जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक थे और उन्हें पेड़ों की अवैध कटाई के आरोपों में अनुशासनात्मक कार्रवाइयोंं के बाद पद से हटाया गया था। सुप्रीम कोर्ट जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में अवैध निर्माण और पेड़ों की कटाई के मुद्दे पर सुनवाई कर रही थी। राहुल की नियुक्ति के फाइल पर पहले अधिकारी से लेकर उपसचिव, प्रधानसचिव और राज्य के वनमंत्री तक ने टिप्पणी की कि उन्हें राजाजी नेशनल पार्क में नहीं नियुक्त किया जाए। इसके बावजूद मुख्यमंत्री ने नियुक्ति की मंजूरी दे दी।
सीईसी ने नियुक्ति पर की थी आपत्ति-
जस्टिस बी.आर.गवई ,जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस के वी विश्वनाथन की पीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि केन्द्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) ने अपनी रिपोर्ट में मुख्य वन संरक्षक राहुल को जिम कॉर्बेट से राजाजी नेशलन पार्क में तैनात करने पर आपत्ति जताई थी। सीईसी की रिपोर्ट में कहा गया कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में अनियमितताओं का मामला अब भी सर्वोच्च न्यायालय के विचाराधीन है और अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाही भी लंबित है।
मामला- 1
पीठ ने कहा कि जनता के भरोसे का सिध्दांत जैसी भी कोई चीज होती है। राज्य के मुखिया पुराने जमाने के राजा की तरह व्यवहार नहीं कर सकते। मुख्यमंत्री को आखिर इस अधिकारी से इतना लगाव क्यों है। वह मुख्यमंत्री हैं सिर्फ इसलिये क्या वह कुछ भी कर सकते हैं। कोर्ट ने पाया कि राहुल के खिलाफ विभागीय कार्रवाई भी लंबित है। जस्टिस गवई ने मौखिक रूप से राजनीतिक प्रमुखोंं द्वारा अपने निर्णयों के लिए जवाबदेही दिखाने की आवश्यकता व्यक्त की। जवाब सरकार की ओर से - सीएम के पास नियुक्ति का विशेषाधिकार - राज्य सरकार राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील एएनएस नाडकर्णी ने मुख्यमंत्री धामी के फैसले का बचाव करते हुए तर्क दिया कि मुख्यमंत्री के पास ऐसी नियुक्तियां करने का विशेषाधिकार है। इस पर जस्टिस गवई ने नाराजगी जताते हुए मामले में सीएम धामी की ओर से हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देने की बात कही। हालांकि बाद में कोर्ट ने इस मामले में कोई आदेश पारित नहीं किया। |
मामला- 2 संदीप घोष ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती… नई दिल्ली। कोलकाता को आर जी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के पूर्व प्रिंसपल संदीप घोष ने कोलकाता हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। दरअसल हाई कोर्ट ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी थी। संदीप घोष का तर्क है कि उसके मामले में न्याय के सिध्दांत को लागू नहीं किया गया। घोष ने अपने खिलाफ हाई कोर्ट की ओर से की गई कुछ टिप्पणियों को हटाने की भी मांग की। हाईकोर्ट का 23 अगस्त का आदेश अस्पताल के पूर्व उपाधीक्षक अख्तर अली की याचिका पर आया था जिन्होंने घोष के कार्यकाल के दौरान अस्पताल में कथित वित्तीय कदाचार की प्रवर्तन निदेशालय से जांच कराने का अनुरोध किया था। हाईकोर्ट ने याचिका में पक्षकार के रूप में शामिल किये जाने के घोष के अनुरोध को ही खारिज कर दिया था और साथ ही कहा था कि वह इस मामले में जरूरी पक्षकार नहीं है। |
मामला - 3 इस्राइल को हथियारों की आपूर्ति रोकने की मांग , याचिका दायर नई दिल्ली। पूर्व आईएफएस अधिकारियों समेत कार्यकर्ताओं के एक समूह ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि वह केन्द्र सरकार को निर्देश दे कि वह गाजा में युध्द के दौरान इस्राइल को सैन्य हथियार और बारूद की आपूर्ति करने वाली कंपनियों के मौजूदा लाइसेंस रद्द करे। रिटायर्ड आईएफएस अधिकारी अशोक कुमार शर्मा के नेतृत्व में वकील प्रशांत भूषण के माध्यम से याचिकाकर्ताओं ने हाल ही में 26 जनवरी 2024 को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) के एक फैसले का हवाला दिया है जिसमें नरसंहार के अपराध की रोकथाम और दंड पर कन्वेंशन के तहत दायित्यों के गाजापट्टी में उल्लंघन के लिए ईस्राइल के खिलाफ अस्थायी उपाय करने का आदेश दिया गया था। |
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हम एक धर्म निरपेक्ष देश हैं । हमारे निर्देश सभी के लिए होंगे। चाहे वे किसी धर्म या व्यवसाय के हों। अगर सड़क के बीच में कोई धार्मिक संरचना है फिर वह गुरूद्वारा हो, दरगाह या फिर मंदिर, तो उसे हटाना ही पड़ेगा। यह जनता के आवागमन में बाधा नहीं डाल सकती। साथ ही अवैध निर्माण तोड़ने से पहले पर्याप्त समय देना चाहिए। महिलाओं और बच्चों को सड़क पर देखना अच्छा नहीं । - जस्टिस बी.आर. गवई
हम एक धर्म निरपेक्ष देश हैं । हमारे निर्देश सभी के लिए होंगे। चाहे वे किसी धर्म या व्यवसाय के हों। अगर सड़क के बीच में कोई धार्मिक संरचना है फिर वह गुरूद्वारा हो, दरगाह या फिर मंदिर, तो उसे हटाना ही पड़ेगा। यह जनता के आवागमन में बाधा नहीं डाल सकती। साथ ही अवैध निर्माण तोड़ने से पहले पर्याप्त समय देना चाहिए। महिलाओं और बच्चों को सड़क पर देखना अच्छा नहीं । - जस्टिस बी.आर. गवई
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