कार जो सड़क पर फर्राट भरती और नदी में तैरती है..
■ चीन 2046 में जी रहा है, इसकी तरक्की की रफ्तार देखते ही बनती हैं…..
● प्रोसेसिंग से बनाते हैं कागज, जंगल की कटाई रुकेगी.. ● कागज से बनते हैं प्लेट, चम्मच, स्ट्रा और पैकेजिंग का सामान ● 13 फीसदी की दर से बढ़ रही है इंडस्ट्री, सौ प्रतिशत एफडीआई का प्रावधान
नई दिल्ली। खेतों में फसल कटाई के बाद छूटी हुई पराली किसान के लिए पशु चारे के रुप में इस्तेमाल तो होती है पर पशुओं के बाद बची हुई पराली किसानों के लिए बोझ बन जाती है तो जाहिर है छोटे किसान उसे खेतों में ही जला कर निजात पा लेते हैं लेकिन इससे पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचता है । दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (नेशनल कैपिटल रीजिन-एनसीआर) बरसों से इस समस्या का दंश झेल रहा है। अब प्रोसेसिंग यूनिट लगाकर इस समस्या का हल ढूंढ लिया गया है। पराली को मशीन से महीन काटकर उसकी लुगदी बनाकर उसे कागज बनाने के काम में लाया जाता है और यह विशेष तरह का कागज बहुत से अन्य कामों में इस्तेमाल होता है। इससे पर्यावरण को होने वाला नुकसान तो रुकता ही है बल्कि इस काम में लगे लोगों को आमदनी भी होती है।
कहते हैं ने आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है तो पराली के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। खेतों में पड़ी पराली को उठाकर मशीन से उसके महीन टुकड़े बहुत महीन पाउडर की तरह कर लिया जाता है। इसके बाद इसमें बड़े कंटेनर में डाल कर इसमें कास्टिक सोडा और ब्लीच मिलाकर मशीन से ही खूब अच्छी तरह फेंट लिया जाता है। इससे किंण्वन यानी फरमेंटेशन की क्रिया होती है और लुगदी और भी हल्की हो जाती है। इस तरह तैयार पल्प या लुगदी को माउल्ड में डाला जाता है जिससे यही लुगदी को धातु के बेलन से पिचकाकर पेपर में बदल दिया जाता है। ये पेपर इको -फ्रेंडली पेपर कहलाता है क्योंकि इसे बनाने के लिए जंगल की लकड़ी नहीं काटनी पड़ती बल्कि यह खेतों के उपज के बाद बची हुई व्यर्थ की पराली से प्रोसेस कर के बनाया जाता है।
सुखद आश्चर्य की बात है कि जिस पराली को उत्तरभारत में जलाने से पर्यावरण को क्षति पहुंच रही थी अब उसी को प्रोसेस करके पेपर बनाया जा रहा है और इससे करोड़ों का व्यापार भी हो रहा है। हर साल 13 प्रतिशत की दर से बढ़ने वाली ये नॉन वुड पेपर इंडस्ट्री 15 बिलियन डॉलर की है और भारत दुनिया में इसका दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक भी है। ये बिजनेस एक साथ तीन समस्याएं हल करता है पहला एग्री वेस्ट यानी कृषि से पैदा होने वाले बिना काम के बेकार समझे जाने वाले बायप्रोडक्ट को जला देने से होने वाला प्रदूषण कम होगा। दूसरा इसके पेपर बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाली लकड़ी की कटाई रुकेगी तो जंगल बचे रहेंगे और तीसरा इससे किसानों को खेती के अलावा अतिरिक्त आमदनी भी होगी।
भारत सरकार ने भी इसीलिए इस उद्योग में सौ प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश - फारेन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट (एफडीआई) को मंजूरी दी है ताकि नए उद्यमी और विदेश से भी निवेश को बढ़ावा मिल सके और विदेश निवेशक भी इस ओर आकर्षित हों। बस एक बार फैक्ट्री लग जाए फिर चावल, गेंहूं और मकई सभी फसल से जनरेट होने वाला कचरा एक जगह प्रोसेस होकर बहुपयोगी कागज बनेगा।
इसका एक अन्य लाभ यह भी है कि इस कचरे की प्रोसेसिंग और फरमेंटेशन प्रक्रिया से जो बायोमॉस पैदा होगा उसी से उस फैक्ट्री की ऊर्जा जरूरत का आधा हिस्सा भी पूरा हो सकेगा। यानी इसे इस तरह समझें कि यदि फैक्ट्री को चालाने के लिए 100 किलो वाट की जरूरत हो तो पचास तो इसी कचरे के प्रोसेंसिंग से पैदा होगा और इस तरह लागत में भी बचत होगी।
और अंत में बनने वाले इको-फ्रेंडली कागज से डिस्पोजेबल प्लेट, चम्मच, स्ट्रा और पैकेजिंग बॉक्स भी बनते हैं जिससे प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करने में मदद मिलती है। इस तरह पराली जो एक समय पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली समस्या के रूप में देखी जाती थी अब वहीं पराली प्रदूषण से निजात दिलाने वाली निराली चीज बन गई है।
■ चीन 2046 में जी रहा है, इसकी तरक्की की रफ्तार देखते ही बनती हैं…..
■ केन्द्रीय कैबिनेट के महत्वपूर्ण फैसले
● खाद्य तेल 13 दिन में 30 रुपये, प्याज 4 माह में 35 रुपये और आटा 6 महीने में 7 रुपये महंगे हो गए ● सरकार ने किसानों को राहत तो दी पर मुनाफाखोरों ने बाजार में दाम ज्यादा बढ़ाए इन्हे नहीं रोका..
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