★ तीरथगढ़ जलप्रपात,कोटमसर, कैलाश और महादेव गुफ़ाओं के अलावा भी बहुत कुछ है बस्तर
★ बस्तर में होमस्टे रहने देखने के लिए सस्ता और सुलभ
★ कुछ नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के बाद भी सैकड़ों पर्यटक हर साल यहां की ख़ूबसूरती देखने आते हैं
★ कला ,संस्कृति और साहित्य
★ पर्यटन के माध्यम से रोज़गार
मनोरंजन -पर्यटन
दीप्ति ओगरे, जगदलपुर (दाहिनी ओर)
बस्तर में मेरी यात्रा की शुरुआत कई जिज्ञासाओं के साथ,एक पर्यटक के रूप में हुई। फेसबुक के माध्यम से मेरा परिचय "झूड़ी दादा" से हुआ, और मैं बस्तर आ गयी तब से अब तक मेरा आश्रय स्थल "बस्तर ट्राईबल होमस्टे" बना हुआ है।
इस होमस्टे में रहते हुए यहाँ के धुरवा,भतरा,गोंड जनजातीय समाज की कला,संस्कृति, सामाजिक परिवेश को करीब से समझने और जीने का मौक़ा मिलेगा। लक्ष्मी जगार,बाली जगार, जात्रा, स्थानीय तीज त्योहार, लोकोक्ति, जीव-जंतु, भतरा नाट, गोंडी नृत्य, देव पाड़, सिरहा-गुनिया का जीवन, पारंपरिक वैद्ध, कांगेर वेली का विशाल भूभाग, कला...और न जाने कितने अनछुवे पहलुओं और रहस्यमयी दुनिया से साक्षात्कार करने का अवसर मिलेगा। आपका हर दिन रोमांच से भरा हुआ होगा।
निश्चितरूप से बस्तर अपने आप मे अनोखा और निराला है।बस्तर आने वाले अधिकाँश पर्यटक केवल तीरथगढ़ जलप्रपात,कोटमसर, कैलाश और महादेव गुफ़ाओं के साथ चित्रकोट जलप्रपात और जगदलपुर में स्थित मानवविज्ञान संग्रहालय ही जा पाते हैं। जबकि इसके इतर बस्तर बहुत कुछ है।
यहां की धुरवा और भतरा जनजाति का इतिहास इतना समृद्ध है, जिसे उनके गांव जाकर ही देखा और समझा जा सकता है। बस्तर का जनजातीय समाज न केवल बीहड़ वनों में सैकड़ों साल से रहते आ रहे हैं वरन उन्होंने आप को यहाँ के भूभाग, पर्यावरण और साल वन और जंगल के अनुरूप अपने आप को ढाला भी है।विभिन्न मौसमों के अनुरूप कृषि और उद्यानिकी हेतु पद्धति विकसित कर आवश्यक फल सब्ज़ियों का उत्पादन करते हैं जो न केवल पर्यावरण को शुद्ध रखती है वरन शरीर भी रसायनों से मुक्त रहता है। ग्लोबलाइजेशन के प्रभाव से आज हमारा खान पान से हमारा जीवन इतना प्रदूषित हो चुका है जिसका प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर पड़ रहा है और तरह तरह के रोग से ग्रसित हो रहे हैं।
इन आदिवासियों ने अपनी कला, संस्कृति, विचारधारा, दैनिक जनजीवन को आज की आधुनिक जीवन शैली से प्रभावित हुए बिना चलायमान रखा हुआ है। मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं कि यहाँ के लोग आत्मनिर्भर हैं। न तो इन्हें आधुनिक उपकरणों की आवश्यकता है न किसी ज्ञान-विज्ञान की।तमाम तरह की छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी बातें आप केवल इन होमस्टे में रह कर ही समझ सकते हैं जो आपको आश्चर्यचकित कर देगी।
★ बस्तर ट्राईबल होमस्टे
बमैं आपको बताती चलूं कि झूड़ी दादा, ढोर डाक्टर, बबलू छर, डोकरा, पठान जैसे कई अनगिनत नामों और उद्बोधनों से अलंकृत व्यक्ति कोई और नहीं - शकील रिज़वी हैं। वे 2002 में एक डेनिश प्रोजेक्ट में काम कर रहे थे तब इसका मुख्यालय जगदलपुर था, उनके कार्यक्षेत्र में दंतेवाड़ा, जगदलपुर,कोंडागाँव, नारायणपुर,कांकेर और भानुप्रतापपुर जैसे जनजातीय बहुल क्षेत्र आते थे। उन्होंने 2002 से 2007 तक इन क्षेत्रों का सघन दौरा किया और लगातार जनजातियों के संपर्क में रहते हुए उनके विषय में महत्वपूर्ण जानकारियां इकठ्ठी की। परंतु समय के साथ आ रहे सांस्कृतिक बदलाव और सांस्कृतिक घालमेल ने इन्हें झकझोर कर रख दिया। वे कहते हैं कि इसमें होने वाले छोटे छोटे बदलाव न केवल आदिम संस्कृति के घातक हैं वरन यहां की फ़्लोरा-फ़ौना और इको सिस्टम भी अपना दुष्प्रभाव छोड़ेंगे। इसलिये इन्होंने प्रोजेक्ट की समाप्ति के बाद तत्काल स्थानीय लोगों के साथ मिलकर बस्तर ट्राईबल होमस्टे की स्थापना की।चूंकि उन्होंने अपनी पढ़ाई भी समाजशास्त्र को लेकर की थी, और बस्तर में जन्म लेने के कारण भी स्वभाविक रूप से यह उनका रुचिकर विषय था।
★ कला ,संस्कृति और साहित्य:-
शकील रिज़वी कोंडागाँव में अपनी स्कूली शिक्षा के दौरान ही ढोकरा कला के विख्यात कलाकार स्व. जयदेव बघेल से घड़वा कला सीखी, महाराष्ट्र के गांधीवादी श्री कृष्णमूर्ती मिरमिरा के शिष्यों के सम्पर्क में आकर साथी संस्था में कार्य करते हुए मृदा शिल्प की बारीकियां सीखीं और कारीगरों के उत्थान के लिए कार्य किया, लौह शिल्पी श्री सुरेश पोयाम के सानिध्य में रहते हुए डिज़ाइन डेवेलपमेंट का कार्य किया। श्री सुरेंद्र रावल, श्री हरिहर वैष्णव, श्री रुद्रनारायण पाणिग्रही, दादा जोकाल जैसे मूर्धन्य साहित्यकारों एवं लेखकों से जुड़ाव के कारण साहित्यिक अभिरुचि जगी। विभिन्न विषयों के महारथियों से निरन्तर चर्चाओं-संपर्क-कार्यशालाओं ने इनके व्यक्तित्व को निखारा। वे बताते हैं कि वे अपने को परम सौभाग्यशाली मानते हैं कि उनका सतत संपर्क ऐसे महान व्यक्तित्वों से रहा।
★ पर्यटन के माध्यम से रोज़गार:-
उनका का उद्देश्य पर्यटन के माध्यम से न केवल रोज़गार सृजित करना था, बल्कि उससे अधिक पर्यटकों को यहां की संस्कृति, कला और जीवन शैली दिखाकर यह संदेश देना था कि आधुनिकता की अंधी दौड़ में भागे बिना भी हर व्यक्ति कम संसाधनों में भी सुव्यवस्थित जीवन, प्रकृति को नुकसान पहुंचाये बिना भी जी सकता है। वे बताते हैं कि बिना किसी शासकीय मदद से शुरू किया गया यह अभियान नितांत सफ़ल रहा। आज स्थानीय लोग स्वयं ही पर्यटन व्यवसाय से जुड़ रहे हैं और अपनी संस्कृति को दिखाकर गौरवान्वित महसूस करते हैं।शकील का यह मानना है कि "जब तक आपको अपनी संस्कृति और विरासत का मूल्य पता न हो, तब तक आप उसे बचा नहीं सकते।"
जनजातीय समुदाय की विशुद्द जीवनशैली में बिना हस्तक्षेप के उनके निवास स्थलों को पर्यटकों हेतु खोलना उनके लिए न केवल दुष्कर कार्य था, बल्कि ग्रामीण अंचल में मूलभूत एवं सामान्य सुविधाओं के अभाव में सामान्य पर्यटकों को ठहरने के लिए तैयार करना भी चुनौतियों से भरा हुआ है।
आज भी बिजली,इंटरनेट कनेक्टिविटी, आवागमन के अभाव से जूझ रहे गाँव में पर्यटन गतिविधियों को जारी रखे हुए हैं और केवल उन्हीं देसी और विदेशी पर्यटकों को आमंत्रित करते हैं जिनकी अभिरुचि सुविधाओं की अपेक्षा संस्कृति है।
★ होमस्टे और गूगल
वे अपने और अपने साथियों के होमस्टे को गूगल और भिन्न व्यवसायिक वेबसाइट में दर्ज कर इसका प्रचार करते हैं,और अपने सहयोगियों को इनटरनेट और व्यवसायिक जानकारी भी साझा करते हैं। देसी और विदेशी टूर आपरेटर्स से दीर्घकालीन व्यवसायिक संबंध स्थापित कर रहे हैं और यह निरंतर प्रगति कर रहा है। वर्तमान में फ्रांस,इंग्लैंड, इटली, टर्की के ऑपरेटर और भारत के बड़े व्यवसायियों से संबंध बनाकर कार्य कर रहे हैं।
शकील अपने पर्यटन व्यवसाय को शुद्ध वाणिज्य श्रोत के रूप में न देखकर संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के विकल्प के रूप में भी देखते हैं, यही कारण है कि वे केवल पर्यटकों और ग्रामीणों के मध्य पुल के रूप में कार्य करते हैं और अधिकांश कार्य ग्रामीणों के माध्यम से सम्पादित करवाते हैं जिसका सीधा आर्थिक लाभ समुदाय को पहुंचता है। स्थानीय युवा गाइड के रूप में, महिलाएं भोजन की ज़िम्मेदारी तो पारंपरिक कलाकार, नर्तक मण्डली, संगीतकार, वैद्ध, सिरहा-गुनिया-पुजारी न केवल अपनी अपनी विरासत को दिखाते हैं वरन इन परंपरागत ज्ञान से लौकिक और अलौकिक जीवन में मिलने वाले लाभ का आभास भी कराते हैं। शादी-ब्याह हो या जन्म-मृत्यु के संस्कार, कृषि में पशुधन की उपयोगिता की बात हो या विभिन्न तीज-त्योहारों में पशु बलि की प्रथा, दैनिक जीवन में सल्फी, लांदा, शराब जैसे मादक द्रव्यों के उपभोग की बात हो या सांस्कृतिक आयोजनों में इन मादक द्रव्यों की आवश्यकता ;सभी के पीछे एक विचार और मान्यता है जिसका पालन ये बख़ूबी से करते हैं।
★ होमस्टे सस्ता और सुंदर है :-
होटलों के तुलना में होमस्टे सस्ते और सुंदर हैं, जो आपको अपनी जड़ों से जोड़ता है। यहाँ का शांत एवं विशुद्ध वातावरण आपकी यात्रा को सफ़ल बना देगा। इन होमस्टे में रह कर आप इन ग्रामीणों से सीधी चर्चा कर सकते हैं, उनके जीवन के अनुभवों से संदेश प्राप्त कर सकते हैं।बस्तर को नक्सलियों का घर भी माना जाता रहा है, परंतु यह नितांत ग़लत है। बस्तर अपने आकार में बहुत बड़ा है। इसमें सात ज़िले हैं, जिनके केवल बीजापुर,दंतेवाड़ा और सुकमा नक्सल प्रभावित है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के बाद भी सैकड़ों पर्यटक हर साल यहां की ख़ूबसूरती देखने आते हैं और यहाँ से सुरक्षित जाते भी हैं।नक्सलवाद और पर्यटन दो अलग अलग बातें हैं और इनका आपस में कोई मेल नहीं, आप निश्चिंत होकर बस्तर भ्रमण कर सकते हैं। बस्तर में पर्यटन का एक मात्र उद्देश्य केवल घूमना ही नहीं, वरन विशाल संभावनाओं का द्वार खोलना भी है।
स्थानीय प्रशासन, पर्यटन मंडल की सक्रियता और संलिप्तता थोड़ी कम है,परंतु अन्य राज्यों - गुजरात,मध्यप्रदेश, नॉर्थ ईस्ट, केरल जैसे राज्यों ने पर्यटन के क्षेत्र में बहुत प्रगति की है। छत्तीसगढ़ शासन भी अपनी महती भूमिका निबाहे तो न केवल रोज़गार के उच्च अवसर बनेंगे बल्कि सांस्कृतिक धरोहर को भी बचाया जा सकेगा।
बस्तर ट्राईबल होमस्टे आपकी सभी शंकाओं, जिज्ञासा को शांत कर सकता है।
■ हरेली छत्तीसगढ़ी लोक का सबसे लोकप्रिय और सबसे पहला त्यौहार है।
■ पर्यावरण को समर्पित यह त्यौहार छत्तीसगढ़ी लोगों का प्रकृति के प्रति प्रेम और समर्पण दर्शाता है।
■ हमारे साझा सरोकार
"निरंतर पहल" एक गम्भीर विमर्श की राष्ट्रीय मासिक पत्रिका है जो युवा चेतना और लोकजागरण के लिए प्रतिबद्ध है। शिक्षा, स्वास्थ्य, खेती और रोजगार इसके चार प्रमुख विषय हैं। इसके अलावा राजनीति, आर्थिकी, कला साहित्य और खेल - मनोरंजन इस पत्रिका अतिरिक्त आकर्षण हैं। पर्यावरण जैसा नाजुक और वैश्विक सरोकार इसकी प्रमुख प्रथमिकताओं में शामिल है। सुदीर्ध अनुभव वाले संपादकीय सहयोगियों के संपादन में पत्रिका बेहतर प्रतिसाद के साथ उत्तरोत्तर प्रगति के सोपान तय कर रही है। छह महीने की इस शिशु पत्रिका का अत्यंत सुरुचिपूर्ण वेब पोर्टल: "निरंतर पहल डॉट इन "सुधी पाठको को सौपते हुए अत्यंत खुशी हो रही है।
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