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● महामारी के दौरान जन्मे बच्चों में दिख रहे है कुप्रभाव, स्कूलों में भी अच्छा प्रदर्शन नहीं
नई दिल्ली। इस सदी के पूर्वार्ध में आई महामारी ने दुनिया को जो दुर्दिन दिखाए जैसे उतना ही काफी नहीं था। उन दिनों हर दूसरी जान सांसत में रही किसी तरह बच गए लोगों ने राहत की सांस ली थी पर अब उस आंधी के निकल जाने के बाद उसके कुप्रभाव धीरे -धीरे सामने आने लगे हैं। महामारी के दौरान जन्में बच्चे अब स्कूलों में दाखिल होने के बाद कई तरह की परेशानियों का सामना कर रहे हैं। शिक्षकों ने बच्चों पर तनाव और अलगाव के प्रभाव को स्पष्ट तौर पर देखा । इनमें से कुछ छात्र तो ऐसे भी है जो बड़ी मुश्किल से कुछ बोल पाते हैं।
कई विद्यार्थी तो ऐसे भी हैं जो कक्षा में पूरे समय किसी ख्याल में खोए गुमसुम से बैठे होते हैं। कुछ कुछ ऐसे जैसे उनका कुछ खो गया हो। इसके साथ कुछ तो ऐसे भी हैं जो शरीर से पूरी तरह स्वस्थ हैं पर पेंसिल भी ठीक तरह से नहीं पकड़ पाते। इसके साथ ही उनमें आक्रामकता अन्य छात्रों की अपेक्षा कुछ ज्यादा घर कर गई है। शिक्षक बताते हैं कि कुछ तो ऐसे हैं जो बेवजह कुर्सियां फेंक रहे हैं और एक दूसरे को
दांत गड़ाकर काट दे रहे हैं।
अमेरिका के पोर्टलैंड स्थित ओरेगन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. जैमे पीटरसन का कहना है कि - निश्चित रूप से महामारी के समय पैदा हुए बच्चों को पिछले वर्षों की तुलना में विकास सबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा विभिन्न वैज्ञानिक शोधों से यह भी पता चला है कि महामारी ने कई छोटे बच्चों के शुरुवाती नैसर्गिक विकास को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है।
बच्चों में उम्र के अनुसार विकसित नहीं हो पाया कौशल-- स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि महामारी के वक्त जन्म लेने वाले नवजात बच्चे अब प्री स्कूल में जाने की उम्र के हो गए हैं। उन्होंने कहा कि महामारी का उन पर कुप्रभाव स्पष्ट रूप से दिख रहा है। कहा कि इनमें से कई शैक्षणिक बातों को पकड़ नहीं पाते उनका विकास का दर भी अपेक्षाकृत धीमा है। यह दो दर्जन से ज्यादा शिक्षकों, बाल रोग विशेषज्ञों और नवजात के विशेषज्ञों के साथ किये गए साक्षात्कार के आधार पर कही गई है। कहा गया कि इनमें एक ऐसी नई पीढ़ी दिख रही है जिनमें उम्र के अनुसार अपेक्षित कौशल विकसित नहीं हो पाया है। बच्चे अपनी जरूरतों को बताने, आकृतियों और अक्षरों को पहचानने, अपनी भावनाओं को प्रदर्शित करने या साथियों के साथ अपनी समस्याओं को हल करने में सक्षम नहीं है। | कई कारकों ने प्रभावित किया है विशेषज्ञों के अनुसार जब महामारी शुरू हुई तो बच्चे औपचारिक स्कूलों में नहीं थे। उस उम्र में वैसे भी बच्चे घर पर ही अधिक समय बिताते हैं। हालांकि बच्चे का शुरुआती साल उनके मस्तिष्क के विकास के लिए सबसे अहम होता है। महामारी के कई कारकों ने छोटे बच्चों को प्रभावित किया है।जैसे माता-पिता का तनाव, लोगों के बीच कम संपर्क, प्री स्कूल में कम उपस्थिति के साथ स्क्रीन पर अधिक समय और खेलने में कम समय लगाना इत्यादि। | मुश्किल से बोल पा रहे कई छात्र सेंट पीर्टर्सबर्ग( फ्लोरिडा) के किंडरगार्टन शिक्षक डेविड फेल्डमेन ने बताया कि चार से पांच साल के कई बच्चे बिना किसी कारण के कुर्सियां फेंक रहे हैं, एक दूसरे को कांट खा रहे हैं। इसके अलावा टॉमी शेरिडन ने 11 साल तक किंडरगार्टन में पढ़ाया है उन्होंने बताया कि कई छात्र मुश्किल से एक आध शब्द बोल पा रहे हैं। कई बच्चे ऐसे भी है जो शौचालय नहीं जा सकते तो कई तो सभी तरह से समर्थ होते हुए भी पेंसिल तक पकड़ने में परेशानी महसूस कर रहे थे। इसी तरह प्री स्कूल शिक्षिका फ्रेडरिक ने कहा कि इस साल स्कूल आने वाले बच्चे उतने निपुण नहीं थे जितने कि महामारी से पहले आने वाले बच्चे हुआ करते थे। |
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