• 28 Apr, 2025

जल रहा है मणिपुर

जल रहा है मणिपुर

 जातीय हिंसा में महीनेभर में 80 से ज्यादा मौतों की पुष्टि |  तीन मई से शुरू हुई हिंसा के बाद कुल 35000 लोग घर छोड़ने पर विवश हुए हैं |

इम्फाल। मणिपुर में 3 मई को भड़की जातीय हिंसा में अब तक कुल 80 लोगों की जान जा चुकी है। संघर्ष के समय में 35000 हजार लोग अपना ठिकाना और घर-बार छोड़कर विस्थापित हो गए हैं।  लोगों को अपने घर छोड़कर जंगल में पनाह लेना पड़ रहा है। तकरीबन एक महीने पहले 03 मई से शुरू हुई जातीय हिंसा ने मणिपुर की सूरत बिगाड़ कर रख दी है। 30 मई की रात यहा कंग्पोक्पी जिले की सीमा पर लिटनपोक्पी गांव में उपद्रवी समूहों ने सुरक्षा बलों पर ताबड़तोड़ कई हमले किए। जवाबी कार्रवाई में कई हमलावरों के मारे जाने की खबर दी गई है। 
सुरक्षा सूत्रों ने बताया कि उपद्रवियों ने हमले में स्नाइपर राइफल का भी इस्तेमाल किया। कहा जाता है कि हमला तब हुआ जब सुरक्षा बलों का एक संयुक्त दल 29 मई की रात यहां पहुंचा ही था। सुरक्षा बलों पर हमले से पहले उपद्रवियों ने लिटनपोक्पी गांव की रखवाली कर रहे ग्रामीणों के समूह पर गोलियां  चलाई। इसमें सगोलसेम्स बुध्दा नामक एक 37 साल के युवक के सीने में गोली लगी। दहशत के चलते इस गांव में रात में हथियारबंद लोग खुद ही रखवाली करने लगे हैं। मई की शरुआत में ही भड़की मणिपुर की जातीय हिंसा में जून के पहले हफ्ते तक उपद्रवियों ने इलाके के सैक़ड़ों घरों में आग लगा दी है। इनके तमाम रहवासी स्कूलों और आसपास के घरों में शरण लिए हुए हैं। 31 मई बुधवार की सुबह बिष्णुपुर और चुराचांदपुर की सीमा पर तंजेंग गांव में सुरक्षा बलों और उपद्रवियों के बीच मुठभेड़ हुई। ज्यादातर हमलों के पीछे कुकी समुदाय के हथियार बंद लोग बताये जा रहे हैं जो अलग-अलग जगहों पर मैतेई समुदाय के लोगों पर हमले कर रहे हैं।
  दूसरी ओर कुकी संगठनों  ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार मैतेई समुदाय को साथ देकर नगा-कुकी समूहों को उग्रवादी करार दे रही है। इससे भी नगा और कुकी संगठनों के धड़े सरकार के खिलाफ नजर आ रहे हैं। उल्लेखनीय है कि मैतेई समुदाय अभी यहां अपने लिए शेड्यूल ट्राइब (एसटी) स्टेटस की मांग कर रहा है जबकि अफवाह यह फैली हुई है कि एंग्लो कुकी वार मेमोरियल में मैतेई समुदाय के उग्र धड़े ने आग लगा दी जो कुकी बहुल चुरचांदपुर का इलाका  है। मैतेई समुदाय ने कहा है कि दंगे और हिंसा तो तब शुरू हुए जब कुकी लोगों ने पास ही के मैतेई लोगों के गांव में हमला कर दिया और पास ही के सम्मिलित आबादी वाले गांव में भी हमले किये जो विष्णुपर और चुरचांदपुर के बीच का सीमावर्ती इलाका है और जिसमें मैतेई समुदाय की एक बड़ी आबादी रहती है।  
दंगाइयों ने पढ़ने वाले छात्रों को भी नहीं छोड़ा। एक कुकी छात्र हेलुन ताउतांग ने बताया कि वे पोलिटिकल साइंस में स्थानीय मणिपुर यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रहे हैं वे जब हॉस्टल के लाइब्रेरी में थे तो भीड़ यूनिवर्सिटी के गेट पर जमा हो रही थी। कहा गया कि भीड़ हॉस्टल के भीतर कुकी छात्रों को खोज रही है। अब ऐसे में तो हमें नालों में छिपना पड़ा और मदद के लिए इंतजार करना पड़ा। और फिर वही हुआ जिसका कि डर था भीड़ ने बहुत से कुकी छात्रों की किताबें और उनके सामान जला दिये।
 इधर प्रभावशाली और बहुसंख्य आबादी तो मैतेई की ही है और जो यहां की आबादी का 60 प्रतिशत तक होगा जो इम्फाल घाटी क्षेत्र में रहते हैं और जो कि मणिपुर का केवल 10 प्रतिशत ही है। यह घाटी चारों तरफ से हरियाली से भरे पहाड़ी से घिरी है जो कि प्रदेश का 90 प्रतिशत भूभाग है। यही मणिपुर के ट्राइब कुकी औऱ नागा के लिए मणिपुर में रहने की जगह है। हालांकि यहां केवल नागा और कुकी ही नहीं रहते बल्कि कुल 35 तरह के जनजातियां निवास करती हैं।
 इसी बीच मणिपुर की छात्र इकाई ने कहा है कि अलग-अलग सरकारें यहां जनजातियों के साथ सौतेला सा व्यवहार करती हैं और जो लम्बें समय से कुकी समुदाय के खिलाफ नफरत की हवा बनाने के लिए काम कर रही हैं। ये कुकी बहुत समय से कई कारणों से मणिपुर से  बाहर खदेड़े जाते रहे हैं।  और अब मैतेई लोग हमारी जनजातीय की जमीन पर नज़रें गड़ाए बैठे हैं।  कुकी कई कारणों से मणिपुर से बाहर ले जाए जाते रहे हैं। यहां जनसंख्या का अनुपात ही कुछ ऐसा है कि कुकी को हमेशा से ही मैतेय़ी के सामने भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है जो राजनीतिक और आर्थिक रुप से सशक्त मैतेई के सामने कमजोर पड़ते रहे हैं।
  घाटी के लोग मूल रूप से स्थायी जगहों पर खेती करते हैं जबकि इनकी तुलना में कुकी जगह बदल-बदल कर खेती करते हैं। दूसरी महत्वपूर्ण बात है कुकी में जमीन के स्वामित्व का तरीका। यहां होता यह है कि किसी भी कुकी गांव का प्रमुख उस गांव की सभी जमीन का अकेला स्वामी होता है। और इस नाते प्रधान किसी को भी गांव से भी बाहर निकलवा सकता है।  यहां के लोग तो यह भी कहते हैं कि यहां जमीन के हक के लिए ही सारी लड़ाइयां होती हैं जो यहां पहाड़ी वाले राज्य में सबसे ज्यादा  संसाधन है। यहां चाहे कुकी लोगों  ( एफआरए) फारेस्ट राइट्स एक्ट के तहत जंगल से बाहर किया जाना हो या फिर अफीम की खेती का मामला हो – इन सब में हमेशा कुकी ही फंसते रहे हैं। 
  फरवरी में संरक्षित वन क्षेत्र से जनजातीय परिवारों को बाहर निकालना शुरू किया था। चुरचांदपुर इलाके से जो सबसे पहला गांव खाली करवाया गया वह के सोंगजांग था, जहां से 16 परिवार खाली करवाए गए। यहां इंडिजिनिनस ट्राइबल लीडर फोरम(आईटीएलएफ ) की सदस्या जो ग्राम के मुखिया की बेटी है ने कहा कि हमें रहने के लिए कोई विकल्प नहीं दिया गया। देखिए वे तो हमें अफीम की खेती करने वाला कहते हैं जबकि सचाई यह है कि  हमारी पूरी कम्यूनिटी ही किसी भी तरह के  नशे के व्यापार के खिलाफ काम करती रही है। यह बहुत दुःखद है। ग्रेसी और अन्य लोग यहां जिला प्रशासन के साथ मिलकर नशामुक्त भारत अभियान में अफीम की खेती के विरोध में वकालत करते हुए काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनकी टीम ने इस क्षेत्र में कम से कम 6 गांवों को नशा से मुक्त करने में कामयाबी हासिल की है। 

सुग्नू कस्बे में आगजनी अलग-अलग संगठनों से मिले शाह, शांति की अपीलमणिपुर में भी लागू होगा एनआरसी- शाह 
कंक्चिंग जिले के सुग्नू कस्बे में दोनो समुदायों के संघर्ष में जमकर आगजनी की गई। पूरा कस्बा ही लगभग मई के अंतिम सप्ताह के आखिरी चार दिनों से हिंसक संघर्ष की गिरफ्त में है। दावा किया गया है कि सुग्नू कस्बे में सुरक्षाबलों की भारी मौजूदगी के बाद भी संघर्ष नहीं रुक रहा है। मणिपुर में जातीय हिंसा में अब तक 80 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। ये नगा, कुकी और मैतेई तीनों समुदाय के हैं। दूसरी ओर राज्य सरकार मृतकों को उग्रवादी बता रही है। इधर सेना का कहना है कि ये दरअसल उपद्रवियों के हथियार बंद समूह हैं जो सुरक्षाबलों को भी निशाना बना रहे हैं। हालात ऐसे हैं कि सैकड़ों परिवार जान बचाने के लिए जंगलों में छिपे हुए हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह 31 मई बुधवार को म्यांमार की सीमा से लगे टेंग्नोउपाल जिले के मोरेह कस्बे में पहुंचे और वहां उन्होंने कुकी नागरिक संगठनों के नेताओं से वहां के हालात के बारे में बात की। शाह ने सभी से शांति की अपील भी की। इनके अलावा नेपाली गोरखा समाज, मणिपुरी मुस्लिम काउंसिल, हिल ट्राइबल काउंसिल, मोरेह यूथ क्लब और कुकी स्टूडेंट्स आर्गेनाइजेशन के प्रतिनिधियों से भी मुलाकात की । शाह ने हिंसा के दौरान हुई क्षति और जलाए गए घरों का जायजा लिया। अनेक संगठनों से बातचीत के बाद शाह ने कहा कि केन्द्र सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता मणिपुर की संप्रभुता और एकता की रक्षा करना है इसलिये जातीय आधार पर अलग प्रशासन का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। उन्होंने कहा कि अभी तीन महीने पहले ही असम, नगालैंड और मणिपुर में एनआरसी लागू करने के लिए एक समिति गठित की गई है। इससे साफ है कि मणिपुर में भी एनआरसी जल्द ही लागू होगा।