• 28 Apr, 2025

नोट लेकर सदन में भाषण या वोट दिया तो केस चलेगा..

नोट लेकर सदन में भाषण या वोट दिया तो केस चलेगा..

● ऐतिहासिक फैसला सुप्रीम कोर्ट का ---- ● सुप्रीम कोर्ट का विधायक -सासंदों को कानूनी छूट से इंकार ● उच्चतम न्यायालय की सात सदस्यीय संविधान पीठ ने पीवी नरसिंर राव मामले में 1998 का अपना ही फैसला पलटा ● कहा जन प्रतिनिधियों की घूसखोरी को संसदीय विशेषाधिकार से कोई संरक्षण नहीं ● जन प्रतिनिधियों के भ्रष्टाचार से हिल सकती है संसदीय लोकतंत्र की नींव..

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सांसदों व विधायकों को संसद अथवा राज्य विधानमंडल में भाषण या वोट देने के लिए रिश्वत लेने पर अभियोजन से छूट नहीं मिलेगी। शीर्ष कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा , विधायिका के सदस्य विधानमंडल में वोट या भाषण के संबंध में रिश्वतखोरी के आरोप में संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 के तहत अभियोजन से छूट पाने के लिए विशेषाधिकार का दावा नहीं कर सकते, क्योंकि इन प्रावधानों के तहत रिश्वतखोरी की छूट नहीं है।

संविधान पीठ ने कहा कोई जनप्रतिनिधि जिस क्षण रिश्वत लेता है वह अपराध ही करता है। इसके बदले में वह किसे वोट डालता है या नहीं डालता इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता।  सदन या किसी समिति में भाषण के संबंध में रिश्वतखोरी पर भी यही सिध्दांत लागू होता है। सात सदस्यीय पीठ ने पीवी नरसिंह राव  के प्रधानमंत्री रहते उसकी सरकार के समय झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत कांड में पांच सदस्यीय संविधान पीठ के 1998 के फैसले को पलटते हुए सोमवार 4 मार्च को नया ही फैसला सुनाया। मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ में जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस पीएस नरसिम्हा,जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे।

सर्वसम्मति वाले ऐतिहासिक फैसले में शीर्ष कोर्ट ने कहा , विधायिका के सदस्यों का भ्रष्टाचार व रिश्वतखोरी सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी को नष्ट कर देता है और इससे संसदीय लोकतंत्र की नींव हिल सकती है। इसे संसदीय विशेषाधिकार के सिध्दांतों से संरक्षित नहीं किया जा सकता।

संविधान के अनुच्छेद 105( 2 ) में कहा गया है कोई भी सांसद, संसद या उसकी किसी भी  समिति में कही गई किसी भी बात या वोट के संबंध में किसी भी अदालत में कार्रवाई के लिए उत्तरदायी नहीं होगा। वहीं विधानसभा सदस्यों को छूट का प्रावधान अनुच्छेद 194 ( 2) के तहत निहित है। पीठ ने कहा संविधान के ये प्रावधान स्वतंत्र विचार-विमर्श का वातावरण बनाने की सुविधा देते हैं। हालांकि अगर सदस्य को भाषण या वोट के लिए रिश्वत दी जाती है तो दोनो अनुच्छेदों का मकसद ही नष्ट हो जाता है। 

शिबू सोरेन की बहू ने दी थी याचिका-

सुप्रीम कोर्ट में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) प्रमुख शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन ने याचिका दायर कर 2012 में राज्यसभा चुनाव में घूसखोरी के आरोप में उनके खिलाफ केस चलाए जाने को चुनौती दी थी।  सन 2019 में सीजेआई जस्टिस रंजन गोगोई की पीठ ने मामले को पांच जजों की संविधान पीठ के पास भेजा था। पीठ ने यह तय करने के लिए बड़ी पीठ बनाने कहा था कि क्या जनप्रतिनिधि घूस लेकर मतदान पर आपराधिक मुकदमें से सुरक्षित है। 

विधायी कामकाज तक सीमित है छूट ...

फैसले में कहा गया है , संसद या विधानमंडल में कहीं किसी भी बात के संबंध में माननीयों को अनुच्छेद 105 (2) और 194 (2) के तहत दी गई छूट सदन के सामूहिक कामकाज से जुड़ी है। पीठ ने कहा हम मानते हैं कि रिश्वतखोरी संसंदीय विशेषाधिकार द्वारा संरक्षित नहीं है। भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी संसदीय प्रणाली को नष्ट कर देती है।

दो स्तरीय कसौटी पर खरा नहीं उतरा अभियोजन से छूट का दावा ...

चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के लिखे 135 पन्नों के फैसले में कहा गया है कि विधायिका का कोई सदस्य वोट या भाषण के लिए रिश्वत लेने के आरोप में संसदीय विशेषाधिकार बताते हुए अभियोजन से छूट का दावा नहीं कर सकता। विशेषाधिकार के तहत अभियोजन से छूट का ऐसा दावा सदन के सामूहिक कामकाज और जनप्रतिनिधि के आवश्यक कार्यों के निर्वहन की दो स्तरीय कसौटी पर ख़रा नहीं उतरता। 

ज्यसभा, राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति चुनाव पर भी लागू होगा फैसला-

पीठ ने स्पष्ट किया है कि संसदीय विशेषाधिकार के संबंध में सोमवार 4 मार्च के निर्णय से प्रतिपादित सिध्दांत राज्यसभा, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों पर भी समान रूप से लागू होगा। इसका अर्थ है कि इन चुनावों में रिश्वत लेने वाले सदस्यों पर भी भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है। 

पुनर्विचार की शक्ति जरूरी- नहीं तो थम जाएगा न्यायशास्त्र का विकास

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा  अगर शीर्ष  अदालत को अपने फैललों पर पुनर्विचार करने की शक्ति से वंचित कर दिया गया तो संविधानिक न्यायशास्त्र का विकास वस्तुतः रुक सा जाएगा। शीर्ष  अदालत  ने कहा -कानून के नैसर्गिक विकास और न्याय की उन्नति के लिए अपने फैसलों पर पुनर्विचार करने की क्षमता आवश्यक है। पीठ ने फैसले में कहा -अतीत में शीर्ष कोर्ट को जब भी यह लगा कि संविधान का कोई अंग सही नहीं है या कि जनहित में नहीं है तो वह उसमें जरूरी बदलाव करने से नहीं हिचका है। 

3-2 बहुमत से आया था नरसिंह राव मामले में फैसला-

पीवी नरसिंह राव की सरकार को बचाने के लिए झामुमो सांसदों ने रिश्वत लेकर वोट दिया था। मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय  संविधान पीठ ने 1998 में 3-2 के बहुमत से सांसदों को आपराधिक मामला चलाए जाने से छूट दे दी थी। 

स्वागतम् - राजनीति को  स्वच्छ बनाएगा निर्णय-

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोशल मीडिया पर लिखा .. स्वागतम्.. । माननीय सुप्रीम कोर्ट का महान फैसला है जो राजनीति को स्वच्छ बनाएगा और व्यवस्था में लोगों के विश्वास को और गहरा करेगा। 

- श्री नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री