• 28 Apr, 2025

काश रोपे गए सभी पौधे पेड़ बनते दिखते ...

काश रोपे गए सभी पौधे पेड़ बनते दिखते ...

जुलाई का महीना यूं तो कई मायनों में शहर और गांवों में,किसानों, विद्यार्थियों  के लिए नई शुरुआत का होता है। मानसून की आमद हमारे प्रदेश में एक महीने पहले जून के बीच में ही दर्ज हो चुकी होती है। फसलों की तैयारी खेतों में और फिर स्कूलों में रौनक लौट आने के दिन भी होते हैं। ठीक इसी बीच पर्यावरण की चिंता का जो  दौर पर्यावरण दिवस यानी 5 जून से शुरू होता है हालांकि तब हमारी सख्त और सूखी जमीन पर फुहार तक नहीं पड़ी होती वो जुलाई में एक दो बारिश हो जाने पर परवान चढ़ कर बोलने लगती है। पौध रोपण का सिलसिला जगह जगह दिखने लगता है अनगिनत संस्थाएं, बैनर, इश्तेहार, प्रचार, सेल्फी, फोटो और खबरों से अखबार और सोशलमीडिया अट जाते हैं। पर्यावरण की  इस तरह समवेत चिंता और पौधरोपण देखना सचमुच सुखद है काश इन पौधों के पेड़ बनने का भी कोई सिलसिला दिखता तो और भी सुखद होता।

    सरकारें भी विराट आयोजन कर सैकड़ों करोड़ के पौधरोपण की व्यवस्था करती हैं बजट में प्रावधान भी होता है पर क्या सचमुच ही सरकारें भी इनके पेड़ बन जाने के जतन करती हैं। खैर वर्षा वन तो अपने से ही परागण से बनते हैं बशर्ते उनको बनने तक का सब्र हम कर लें। वनों की कटाई न हो इसकी फिक्र हो तो भी यह पर्यावरण को सुरक्षित रखने की दिशा में जरूरी कदम होगा। पर सारा जोर पौधरोपण पर होता है वो भी कब से हो रहा है और इतना हो रहा है कि अब ये कोशिशभी रवायत में बदल गई है। काश प्रदेश के खूबसूरत और हसदेव अरण्य में फैले  137 हेक्टेयर में फैले जंगल से हजारों पेड़ काटे जा चुके हैं। एआई ने तो बताया कि 15000 हजार पेड़ काटे जा  चुके हैं।  कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में इस जंगल से ढाई लाख पेड़ काटे जाने हैं। पौधे लगाने की  रस्मी तस्वीरों से आक्सीजन नहीं मिलना है प्राण बचाने के लिए जहां से प्राणवायु मिल रही है पहले उन पेड़ों को कत्लोगारत से बचाना कहीं ज्यादा जरूरी है।

       ये तो तब संभव है जब पढ़ने के लिए माहौल मिले। हाल में ही सरकार ने नई शिक्षा नीति के लागू करने की तैयारी का जिक्र हुआ। शिक्षा विभाग ने जो आंकड़े जारी किये हैं उनमें ही यह चिंता जताई गई है कि प्रदेश के हजारों स्कूल है जहां  कुल जमा एक ही शिक्षक है यानी सभी विषयों और कक्षाओं का जिम्मा सिर्फ और सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे है। 2014 में प्रदेश में कुल 1400 स्कूल थे जिन्हें सिंगल टीचर वाले स्कूल की तरह चिह्नित किया गया था। सरगुजा में ही 20 स्कूल  ऐसे मिले जहां एक भी शिक्षक नहीं था। एक यह निजी टीवी चैनल की रिपोर्ट में कहा गया ।बुनियादी स्तर पर जहां स्कूलों की दशा ऐसी है वहां इस बात की संभावना कम ही है कि उन्हे सिलेबस के इतर जाकर कोई यह बताए की पर्यावरण की रक्षा के लिए पेड़ लगाने से भी ज्यादा जरूरी जो पहले से मौजूद हैं उन्हें बचाए रखना भी है।

    फिर युवाओं के सबसे जरूरी मसले शिक्षा औऱ रोजगार पर भी लापरवाही इस कदर हुई कि देश के सर्वोंच्च न्यायालय को भी कहना पड़ा कि विद्यार्थियों की प्रतियोगी परीक्षा में इस तरह ढिलाई के लिए कौन जिम्मेदार है भला। नीट की परीक्षा में गड़बड़ी और परीक्षा आयोजक संस्था को पूरा का पूरा एक अस्थायी सेट पर टिका होना केन्द- सरकार की युवाओं के लिए तय प्राथमिकता पर से नकाब उठाता है। संसद में सपा नेता अखिलेश यादव का यह कहते सवाल उठाना तो जायज ही मालूम पड़ता है जब वे कहते हैं कि देश में युवाओं की शिक्षा और रोजगार जैसे अहम मुद्दों पर लापरवाही से तो यही लगता है कि सरकार नहीं चाहती कि युवा रोजगार के लिए खड़े हो सकें। उनकी परीक्षा लेने और रद्द करने से तो यही लगता है कि यह सब जैसे किसी नियोजित तरीके से किया जा रहा है।

   और  बात पिछले कुछ दिनों से ज्यादा साल रही है वो है हमारे प्रदेश में हर तरह के अपराध का बढ़ता स्तर। ये  शांत प्रदेश की समरसता की छवि के विरुध्द है। हत्या, डकैती, फ्राड, साइबर क्राइम के शिकार होते बुजुर्ग, अनाचार की शिकार होती मासूम बच्चियां, सरकार और पुलिसिंग का सुप्त दिखता रवैया। कुल मिलाकर नई सरकार को बने 8 महीने होने को आए। घोषणाएं, योजनाएं  कागजों पर ही चस्पा हैं ये कूद कर जमीन पर आती दिखती नहीं। 

  फिर आखिर में लोकतंत्र में इन तरह के रवैये का  यानी उनके सरोकार की लगातार अनदेखी का नतीजा - चुनने की बारी आने पर जनता दिखाती जरूर है। रोजगार, महंगाई, अत्याचार, न्याय की गुहार की अनदेखी कर केवल धर्म के नाम पर एक वर्ग का ध्रुवीकरण ही जब धेय  हो गया तो आम चुनाव में उसी अयोध्या की सीट नहीं मिल सकी जिसकी दुहाई देकर भव्य मंदिर बनाकर राम के भक्त होने का गौरव लिए विजय पताका फहराने का चुनाव से पहले ही ऐलान कर दिया गया था। इतना तो किसी विराट दर्प के मर्दन के लिए पर्याप्त होना चाहिए था पर शायद इतना ही काफी नहीं था कि हाल में हुए उपचुनाव में भी भाजपा बद्रीनाथ की सीट भी गंवा बैठी। क्या कहा जाय । सात राज्यों के 13 सीटों के उपचुनाव में 10 तो इंडिया के खाते में गई हैं। इसे तो दीवार पर बड़े अक्षरों में लिखे इबारत की तरह पढ़ा-समझा जाना चाहिए।