• 28 Apr, 2025

राज्यपाल अनियतकाल तक विधेयकों को रोक नहीं सकते.

राज्यपाल अनियतकाल तक विधेयकों को रोक नहीं सकते.

• सुप्रीमकोर्ट ने कहा- शक्तियों का इस्तेमाल कानून की सामान्य प्रक्रिया को रोकने में नहीं किया जा सकता • यह भी कहा कि राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त व्यक्ति के तौर पर राज्यपाल राज्य का नाममात्र का प्रमुख होता है, असल शक्तियां निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास ही..

नई दिल्ली।   उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि राज्यपाल बिना किसी कार्रवाई के अनियत काल तक विधेयकों को लंबित नहीं रख सकते। न्यायालन ने साथ ही कहा कि राज्य के गैर निर्वाचित प्रमुख के तौर पर राज्यपाल संवैधानिक शक्तियों से सम्पन्न होते हैं लेकिन वह उनका इस्तेमाल राज्य विधानमंडलों द्वारा कानून बनाने की सामान्य प्रक्रिया को विफल करने के लिए नहीं कर सकते। उच्चतम न्यायालय ने पंजाबके राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित को 19 और 20 जून को आयोजित संवैधानिक रूप से वैध सत्र के दौरान विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर निर्णय लेने का निर्देश दिया।

    प्रधान न्यायाधीश डी. वाय. चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाल और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि इस प्रकार की कार्रवाई संवैधानिक लोकतंत्र के उन बुनियादी  सिध्दातों के विपरीत होगी, जो शासन के संसदीय स्वरूप पर आधारित है।  पीठ नें पंजाबसरकार की एक याचिका पर 10 नवंबर के अपने आदेश में कहा - राज्य के गैर निर्वाचित प्रमुख के तौर पर राज्यपाल संवैधानिक शक्तियोंसे संपन्न तो होते हैं लेकिन इन शक्तियों को इस्तेमाल राज्य विधानमंडलों द्वारा कानून बनाने की सामान्य प्रक्रिया को विफल कने के लिए नहीं किया जा सकता है।

विधेयक को पुनर्विचार के लिए विधानमंडल भेज सकते हैं। पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि अगर राज्यपाल किसी विधेयक को मंजूरी देने से रोकने का निर्णय लेते हैं तो उन्हें विधेयक को पुनर्विचार के लिए मंत्रिमंडल के पास वापस भेजना होता है। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि यदि राज्यपाल अनुच्छेद 200 के मूल भाग के तहत मंजूरी रोकने का फैसला करते हैं तो कार्रवाई का तार्किक तरीका विधेयक को पुनर्विचार के लिए राज्य विधायिका को भेजने के लिए बताये गए उपाय पर आगे 
बढ़ना है। 

वास्तविक शक्तियां निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास ही

 फैसले में कहा गया है कि - संसदीय स्वरूप  वाले लोकतंत्र में वास्तिवक शक्तियां जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास होती हैं। राज्य और केन्द्र दोनों सरकारों में राज्य विधानमंडल के सदस्य होते हैं।  फैसले में कहा गया कि मंत्रिमंडल सरकार में सरकार के सदस्य विधायिका के प्रति जवाबदेह होते हैं और उनकी जांच के अधीन होते हैं। राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त व्यक्ति के तौर पर राज्यपाल राज्य का नाम मात्र का प्रमुख  होता है।  

फैसला सभी राज्यपालों के लिए फटकार है- चिदम्बरम

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदम्बरम ने 25 शुक्रवार को कहा कि उच्चतम न्यायालय का फैसला सिर्फ पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित के लिए ही नहीं बल्कि सभी राज्यपालों के लिए फटकार है। तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि को फैसले  की पत्येक पंक्ति पढ़नी चाहिए और यदि आवश्यक समझते हैं तो एक सक्षम वरिष्ठ वकील को फैसले को समझाने के लिए बुलाएं। 

कुछ और तथ्य जिन्हें जानना जरूरी है

  •  संसदीय स्वरूप वाले लोकतंत्र में वास्तविक शक्तियां जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास
  • राज्यपाल की शक्तियों का उपयोग कानून बनाने की सामान्य प्रक्रिया को रोकने में नहीं किया जा सकता
  • इस प्रकार की कार्रवाई संवैधानिक लोकतंत्र में उन बुनियादी सिध्दांतों के विपरीत
  • विधानसभा के सत्र की वैधता पर संदेह करने का कोई उचित संवैधानिक आधार नहीं है।