• वाइजाग स्टीलः केन्द्र ने किया निजीकरण का एलान, पर बचाने के लिए सुझाव भी
• विशाखापट्टनम स्टील प्लांट को निजी हाथों में जाने से बचाने वर्कर्स यूनियन के साथ पार्टियां भी
• शुरूआत से अब तक इसकी अपनी कोई अयस्क की खान ही नहीं
मानस मिश्रा, निरंतर पहल संवाददाता
विशाखापट्टनम। सार्वजनिक उपक्रमों को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी में जिन प्रमुख संयंत्रों का नाम शुमार हैं उसमें से विशाखापट्टनम स्टील प्लांट या वाइजाग स्टील भी प्रमुख नाम है। दो साल पहले 2021 से ही घाटे के सौदे वाला प्लांट करार देकर इसे निजी हाथों में सौंपने की लगभग तैयारी तो ही गई थी। इसी बीच सरकार का इससे जुड़ा कार्पोरेटीय चेहरा राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड ( आर आई एन एल) ने एक एक्सप्रेशन ऑफ इन्टरेस्ट ( ई ओ आई) जारी किया है ताकि वाइजाग स्टील के दो बहुत समय से लंबित मुद्दे जैसे कच्चे माल की कमी और कार्यशील पूंजी पर ध्यान दिया जा सके। इसने इस मुद्दे पर नए सिरे से ध्यान आकर्षित किया।
इस तरह ( ई ओ आई) करने का मतलब ऐसी राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय कंपनी जो स्टील बनाने के कच्चे माल पर काम कर रही हो जिसके साथ साझा करके, पार्टनरशिप करके इस वाइजाग स्टील को बचाया जा सके। इधर वाइजाग स्टील के कर्मचारियों और ट्रेड यूनियनों का यह तर्क है कि निजी कंपनी को वाइजाग के साथ काम करने के लिए चुनना एक तरह से स्टील प्लांट के हक के साथ खिलवाड़ ही करना कहा जाएगा।
एम सरत जो कि आंध्र प्रदेश मानवाधिकार फोरम स्टेट कमेटी के उपाध्यक्ष हैं ने कहा कि वाइजाग स्टील की आत्मा को ही सब तरह से रौंद डालने की कोशिशें हो रही हैं। ऐसा लगता है कि इनका तो जैसे इरादा ही यह बताना है कि प्लांट तो बिना बाहरी मदद के चल ही नहीं सकता। और यह सब जानबूझ कर किया जा रहा है। यहां 30 हजार से ज्यादा प्लांट कर्मचारियों औऱ मजदूरों जिसमें नियमित और ठेका प्रथा के कर्मी भी शामिल हैं इन सबने यह तय किया है वे केन्द्र सरकार के इस प्लांट को निजी हाथों में सौपने का हर हाल में विरोध करेंगे।
केन्द्र का राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (आर आई एन एल ) खुद इनकी ही घोषित (पीसीपीएसपीएस) फोरम की नीतियों के खिलाफ है जिमसें प्रसिध्द शिक्षाशास्त्री, दक्ष प्रशासक, ट्रेड यूनियन, पीपुल्स मुवमेंट एंड सिविल सोसायटी आदि शामिल हैं। अभी तक 29 से ज्यादा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने इसमें रुचि जाहिर की है और कहा जा रहा है कि (आरआईएनएल ) इन सब की प्रविष्टियां देख रहा है।
- यूनियनों की मांगः-
उन तमाम ट्रेड यूनियनों ने जो स्टील प्लांट के मजदूरों कर्मियों का प्रतिनिधित्व करते हैं ने कहा है कि राष्ट्रीय पीएसयू को भी इसके खरीददारों में शामिल किया जाना चाहिए। इधर स्टील प्लांट एम्प्लाइज यूनियन के महासचिव यू रामास्वामी जो सीटू से भी जुड़े है ने कहा कि हम चाहते हैं कि - स्टील एथारिटी ऑफ लिमिटेड ( सेल) या नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कार्पोरेशन (एन एम डी सी) को इसमें हिस्सा लेना चाहिए जब टेंडर जल्द ही फ्लोट किया जाए। सीटू, द इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन (इनटुक) और ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन ( आईटुक) और यही सब वाइजाग स्टील के महत्वपूर्ण यूनियन हैं। इसके अलावा 20 अन्य यूनियन भी स्टील प्लांट के साथ पंजीकृत हैं। विशाखापट्टनम उक्कु परिरक्षण पोराटा कमेटी एक ऐसी कमेटी है जो विशाखापट्टनम स्टील को बचाने के लिए बनाई गई है। कमेटी है जो दरअसल प्लांट को बचाने के लिए बनी संयुक्त संघीय ईकाई है जो निजीकरण के विरोध में काम कर रही है। इस संयुक्त संघ का तर्क है जब सरकार सहयोग कर रही है और इसमें और निवेश करने से यह पुनर्जीवित हो सकती है तो इसके लिए निजीकरण की जिद करना व्यावहारिक और तार्किक बात नहीं कही जा सकती। यहां तक कि के. श्रीनिवास राव जो भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस ) से हैं और जिनको संघ ( राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ) का समर्थन भी हासिल है ने भाजपा के प्लांट के निजीकरण नीति का विरोध ही किया है।
सभी यूनियन के नेताओं ने निरंतर पहल संवाददाता से कहा है कि उन्होंने आरआईएनएल प्रबंधन से अपील की है कि वे जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड ( जेएसपीएल) और जिंदल के ही जेएसडब्ल्यू समूह की ओर से जारी सबमिशन पर गौर न करें। वे जिंदल के इस फर्म को आरआईएन एल का सीधा प्रतिस्पर्धी मानते हैं। इंटुक के अध्यक्ष नीरुकोड्डा रामचंद्र राव के अनुसार जिंदल की बाजार की रुचि वाइजाग स्टील के लम्बे समय तक के लक्ष्य के अनुकूल नहीं हैं।
राव ने अपनी पुरानी मांग दोहराते हुए कहा है कि कार्यशील पूंजी देना और वाइजाग स्टील के लिए उसके अपने इस्तेमाल के लिए कैप्टीव कोल माइंस का आवंटन वाइजाग स्टील को बचा सकता है । इससे होगा यह कि स्टील प्लांट को कोयले के लिए किसी का मुंह नहीं देखना होगा और इसके इंतजाम में प्लांट को जो खरीदी करनी पड़ती है वह खर्च भी कम हो जाता है।
वाइजाग स्टील में कामकारों की कमी और उनकी नियुक्ति न होने के मसले ट्रेड यूनियन और समाजिक कार्यकर्ता उठाते रहे हैं। सेवानिवृत्ति के बाद हुई रिक्तियों को भरने तक की कोई पहल नहीं की गई।
- वाइजाग स्टील का इतिहासः-
वाइजाग स्टील का इतिहास भी सामान्य नहीं रहा यह उतार चढ़ावों से भरा रहा है। 1966 में हुए जन आंदोलन में पुलिस फायरिंग में 32 लोगों की मौत हो गई थी जब लोग विशाखापट्टनम में स्टील प्लांट खोले जाने के लिए सरकार को उनके आश्वासन की याद दिलाते हुए सड़को पर आंदोलन कर रहे थे। और फिर इसमें पूरे दो दशक से ज्यादा का समय लगा और 1991 में प्लांट से उत्पादन शुरू हो सका। जब प्लांट में उत्पादन शुरु हुआ तब तक उत्पादन लागत बढ़ चुकी थी फिर सरकार ने इस अंतर की भरपाई नहीं की। कर्मचारियों की संख्या भी घटा दी गई थी। वाइजाग स्टील की क्षमता है कि वह 7.3 मिलियन टन तरल लोहा हर साल बना सकता है आज की तारीख में पर इस प्लांट का अपना खुद की खान हासिल करने की कोशिशें अब तक सफल नहीं होने से इसकी उत्पादन क्षमता पर असर पड़ा है। गौरतलब है कि आरआईएनएल सार्वजनिक क्षेत्र का एक मात्र ऐसा स्टील प्लांट है जिसके पास शुरूआत से ही अपनी कोई लौह अयस्क की खान नहीं है।
भारत सरकार के पूर्व सचिव ई.ए.ए. सरमा ने सचिव स्टील मंत्रालय को एक पत्र लिख कर कहा कि –यह कितने दुर्भाग्य की बात है कि संबंधित केन्द्रीय मंत्री निजी लौह उत्पादन कंपनी को तो चांदी की थाली में रखकर उनके लिए निजी लौह अयस्क की खाने सौंप रहे हैं पर आरआईएनएल को वही सुविधाएं नहीं नसीब हैं। यह भी कहा कि उन्होंने वाइजाग स्टील की समस्याओं पर पिछले दो साल में दर्जनों बार स्टील मंत्रालय को चिट्टियां लिखीं। कहा कि मैं पूरे तर्क सहित यह कहने के लिए बाध्य हो गया हूं कि विभिन्न केन्द्रीय एजेंसियों ने लगातार आरआईएनएल – राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड को कमजोर करने की कोशिश की है ताकि अपने चुने हुए या चहेते औद्योगिक घराने को इसे बहुत सस्ते में खरीदने का मौका दिया जा सके।
केन्द्र सरकार ने 2021 में इसके निजीकरण की घोषणा की थी और तभी से ही तमाम क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों ने वाइजाग स्टील के कर्मचारियों और ट्रेड यूनियन के साथ होने का भरोसा दिलाया है। जिसमें आंध्र प्रदेश की सत्तारुढ़ युवजन श्रमिक रायथु कांग्रेस पार्टी, विपक्ष की तेलुगुदेशम पार्टी, कांग्रेस, जनसेना और अन्य पार्टियों ने स्टील प्लांट को अपना समर्थन दिया है।
- नया मोड़ः-
सिंगनेरी कॉलियरी कंपनी लिमिटेड (एससीसीएल) ने पिछले महीने अप्रैल में वाइजाग स्टील का दौरा किया, इस कंपनी में तेलंगाना की 51 फीसदी की हिस्सेदारी है। इसमें भारत सरकार की हिस्सेदारी 49 फीसदी की है। इसके साथ ही बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष के टी रामा राव के बयान ने इस बात को हवा दी है कि संभवतः एक्सप्रेशन ऑफ इंट्रेस्ट (ईओआई) में तेलंगाना भी हिस्सा ले सकता है। हालांकि इस अनुमान के विपरीत (एससीसीएल) इससे दूर ही है औऱ लोगों की आम राय यह है कि आंध्रप्रदेश के विभाजन के बाद बीआरएस इसमें आंध्र के लोगों को इसके लिए तैयार कर सकता है। इस बीच सियासी रूप से जो आसान था वह खेल खेला जा रहा था और इसी बीच यूनियन के कुछ धड़े अपने संकल्प से डिगते हुए भी दिखे। तीन दिनों तक तो इस अनुमान पर ही बड़ा शोर चला कि (एससीसीएल) इसके ऑक्शन में हिस्सा ले सकता है पर अंततः ये न हो सका। इसी बीच (ईओआई) एक्सप्रेशन ऑफ इंट्रेस्ट यानी रुचि की अभिव्यक्त के लिए तय सीमा (20 अप्रैल) के पहले एक विरोधाभासी खबर कुछ मीडिया हाउस से यह भी आई कि केन्द्रीय इस्पात मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने यह कहा है कि अब विशाखापट्टनम स्टील प्लांट को मजबूत करने पर जोर दिया जाएगा उसके निजीकरण पर नहीं। इसी के बाद बीआरएस ने सेन्टर के इस यू टर्न पर अपनी जीत बताई हालांकि यह भी दीर्धजीवी खुशी नहीं थी क्योंकि 14 अप्रैल को इस्पात मंत्रालय ने कहा कि (आरआईएनएल) के निजीकरण को रोकने की कोई योजना नहीं है।
- हार तो नहीं मानेंगेः-
इन सबके बाद ट्रेड यूनियन ने तो तय कर ही लिया है कि इस मामले को यूं ही नहीं छोड़ेंगे। वाइजाग स्टील देश का पहला समुद्र के तट पर स्थित स्टील प्लांट है जिसकी स्थापना के लिए विशाखापट्ट्नम में 20,000 एकड़ जमीन अधिगृहीत की गई थी। इसके अलावा विशेषज्ञों के अनुसार इस प्लांट की जमीन की कुल मार्केट वैल्यू आज की तारीख में कुल डेढ़ लाख करोड़ रुपये है। यूनियन का इसकी कीमत को देखते हुए यह भी कहना है कि जो जमीन लोगों के हित के लिए ली गई थी वह किसी भी हाल में निजी हाथों में नहीं सौपी जानी चाहिए।
इसके अतिरिक्त प्लांट का विशाखापटटनम के विकास के लिए योगदान भी सर्वविदित है। अभी इस स्टील प्लांट में 15000 स्थायी कर्मचारियों को रोजगार मिला हुआ है। इसके साथ ही कार्यकारी और 20000 के करीब ठेका कर्मी भी यहां काम करते हैं। इसके साथ ही 5000 के करीब अस्थायी लोग हमेशा ही रखरखाव यानी मेंटेनेंस के लिए रूटीन में अनुबंध पर रखे जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार करीब एक लाख परिवारों को सीधे इससे रोजगार मिला हुआ है। सहायक उद्योग और अन्य कर्मचारी इस पर सीधे तौर पर निर्भर हैं।
स्टील प्लांट एम्पाइज यूनियन के जनरल सेक्रेटरी यू रामास्वामी ने कहा कि कर्मचारियों के हित को प्राथमिकता देना एक प्रमुख वजह है जिसके कारण प्लांट को निजी हाथों में नहीं जाने देना चाहिए। और फिर पब्लिक सेक्टर की कंपनी में आरक्षण से रोजगार मिलना एक समाज का बदलावकारी कारक है। इसके अलावा उन्होंने वाइजाग स्टील की और भी खूबियां गिनाईं और कहा कि घाटे के बावजूद वाइजाग स्टील ने अपनी सारी कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के संकल्प को पूरा किया है। और इसके साथ ही उन्होंने हाल ही में वाइजाग स्टील के किए कामों की सूची भी गिनाई।
पीपुल्स कमीशन ऑन पब्लिक सेक्टर एण्ड पब्लिक सर्विसेस ( पीसी पीएस पीएस ) ने कहा है कि केन्द्र का आरआईएनएल का निजीकरण करने का प्लान बहुत ही अव्यवस्थित दिखाई देता है साथ ही उसकी विकास की बात भी संदेहास्पद है जिसके लोगों के हित पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। यहां तक कि निजीकरण करना एक तरह से लोगों के हित के साथ विश्वासघात करने जैसा ही होगा। इसने यह सुझाव दिया है कि इससे तो अच्छा है कि केन्द्र आरआईएनएल को आर्थिक मदद दे उसके प्रबंधन को और पुष्ट करे साथ ही इस प्लांट को उसके खुद के इस्तेमाल के लिए अपना एक अयस्क की खान भी आवंटित करे।
जो अन्य महत्वपूर्ण सुझाव दिये गए हैं उसमें प्रमुख हैं कि इसके कर्ज माफ कर बजट में इसके लिए विशेष प्रावधान किए जाएं और निजी कंपनियों को बेहिसाब सब्सिडी दिये जाने पर रोक लगाई जाए। साथ ही इस्पात मंत्रालय को लौह अयस्क के निर्यात की नीति पर पुनर्विचार कर - वैल्यू एडेड स्टील निर्यात करने पर ध्यान देना चाहिए न कि अयस्क के निर्यात पर।
यानी बहुत से विकल्प हैं और लोगों का समर्थन भी जिससे वाइजाग स्टील को पुनर्जीवन दिया जा सकता है और निजीकरण की कोशिशें बंद की जा सकती हैं बशर्ते केन्द्र की सरकार ऐसा करना चाहे।