अब महाराष्ट्र-झारखंड में चुनावी सरगर्मियां तेज..
■ भाजपा ने दोनों राज्यों में लगाई सौगातों -वादों की झड़ी ■ विपक्षी खेमा भी सक्रिय हुआ ■ इन दोनों राज्यों में चुनाव नवंबर में होने की चर्चा
● राहुल की दो माह की यात्रा के दौरान दर्जनों बड़े नेताओं ने कांग्रेस छोड़ी ● यात्रा के समापन से पहले फिर लग सकता है कांग्रेस को झटका
नई दिल्ली। कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बहुचर्चित भारत जोड़ो यात्रा का शनिवार 16 मार्च को मुंबई में समापन हुआ लेकिन इस मौके पर पार्टी के पांच बड़े चेहरे नजर नहीं आए जो हमेशा उनकी अगुवानी में सबसे पहले की कतार में हुआ करते थे। राहुल गांधी ने अपनी यह यात्रा 14 जनवरी को मणिपुर से शुरू की थी लेकिन ठीक उसी दिन मुंबई में उनके सबसे करीबी कहे जाने वाले मिलिंद देवरा ने पार्टी का साथ छोड़ दिया।
इसी के बाद से विभिन्न राज्यों में कांग्रेस के बड़े नेताओं का पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल होने का सिलसिला जारी है। 13 मार्च को नंदुरबार के आदिवासी क्षेत्र में पकड़ रखने वाले तीन बार के विधायक रहे पद्माकर वलवी भाजपा में शामिल हो गए। संयोग है कि इसी दिन राहुल गांधी ने नंदुरबार में आदिवासी न्याय की घोषणा की थी।
इससे पहले ही लोगों ने कहना शुरू कर दिया था कि राहुल की यात्रा के समापन के दिन महाराष्ट्र में कांग्रेस को कुछ और झटके लग सकते हैं जो कि ठीक वैसा ही हुआ भी। पार्टी के कुछ नेता यात्रा समापन से पहले भाजपा के संपर्क में थे और वे शामिल भी हो गए।
जाहिर है कि महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, बाबा सिद्दीकी, पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुरेश पचौरी, पूर्व गुजरात कांग्रेस अध्यक्ष अर्जुन मोढवाडिया, एआईसीसी सचिव अजय कपूर और केरल के पूर्व सीएम करुणाकरण की बेटी पद्मजा वेणुगोपाल समेत कई बड़े नेताओं ने कांग्रेस से किनारा कर लिया है।
यह सब ठीक ऐसे वक्त में हुआ है कि चुनाव के ठीक पहले यह झटके कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के मनोबल पर मनोवैज्ञानिक असर डाल रहे हैं। इतना सब होने पर राहुल गांधी पर इनका कोई असर नहीं दिख रहा है। राहुल गांधी अपनी पूरी ऊर्जा के साथ अपने तय अभियान में लगे हुए हैं। पिछले दो माह की अपनी इस यात्रा के दौरान उन्होंने किसानों, युवाओं , आदिवासियों और महिलाओं के लिए 17 बड़ी गारंटियां दी हैं अब यात्रा के समापन पर इनकी संख्या 20 तक पहुच गई है। कहा जा रहा है कि इसके बाद फिर 20 सूत्रीय कार्यक्रम के रूप में कांग्रेस इन्हें अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल भी करेगी।
कांग्रेस का हौसला पस्त करने की कोशिश... सूत्रों का कहना है कि चुनाव के पहले इस तरह के झटके कांग्रेस का हौसला पस्त करने के लिए दिये जा रहे हैं। पार्टी में निचली कतार के नेआओं और कार्यकर्ताओं पर इनका मनोवैज्ञानिक असर भी नज़र आ रहा है। इन सब के बावजूद कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व अपनी आक्रामक भावभंगिमा से इसे बेअसर करने की कोशिश कर रहा है। इसे संयोग कहा जाय या प्रयोग कि जब राहुल गांधी ने अपनी पहली यात्रा कन्याकुमारी से शुरू की थी तो जम्मू कश्मीर मे कांग्रेस के एक कद्दावर नेता गुलाम नबी आजाद ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था और जब दूसरी यात्रा मणिपुर से शुरु की तो मुंबई में मिलिंद देवड़ा पार्टी से अलग हो गए। | जांच एजेंसी का डर भी दिखाया जा रहा है.. कांग्रेस के नेता आरोप लगाते हैं कि जांच एजेंसियों का भय दिखाकर नेताओं को तोड़ा जा रहा है लेकिन यह बात भी आमतौर पर कही जा रही है कि 2024 के महासंग्राम में कूदने से पहले पार्टी ने अपना कील-कांटा दुरुस्त नहीं किया है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी में महत्वपूर्ण पदों पर कई ऐसे लोग बैठे हैं जिनका इस तरह की यात्रा और संघर्ष में विश्वास नहीं है। अब वे सब अपने निजी लाभ के लिए नए ठिकाने तलाश रहे हैं। इनता ही नहीं रायपुर महाधिवेशन में जब से पार्टी ने अपनी राजनीतिक लाइन में बदलाव किया है कहा जा रहा है कई नेता इससे भी सहमत नहीं हैं। इसके अलावा पदाधिकारियों और जमीनी स्तर के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच दूरियां बनी हुईं हैं। बहलहाल पिछले दो माह में पार्टी के दर्जनों नेताओं ने कांग्रेस को अलविदा कर दिया है। | कमलनाथ के भी भाजपा में जाने की चर्चा थी.. कांग्रेस नेताओं ने पहले भी पार्टी छोड़ी है लेकिन विशेष रूप से राहुल गांधी की यात्रा के दौरान पार्टी छोड़ने वालों की संख्या में तेजी आई है। हद तो यह है कि 18 फरवरी को मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने और उनके पुत्र नकुलनाथ के भी पार्टी छोड़ने की जोरदार अटकलें चलीं। बाद में मामले को सम्हाल लिया गया। इसके बाद हिमाचल प्रदेश के एआईसीसी सचिव सुधीर शर्मा समेत आधा दर्जन विधायकों ने बगावत कर दी, जिससे सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार पर खतरा मंडराने लगा, कहा जा रहा है कि इसी बगावत के चलते अभिषेक सिंघवी राज्यसभा का चुनाव हार गए। |
■ भाजपा ने दोनों राज्यों में लगाई सौगातों -वादों की झड़ी ■ विपक्षी खेमा भी सक्रिय हुआ ■ इन दोनों राज्यों में चुनाव नवंबर में होने की चर्चा
हम एक धर्म निरपेक्ष देश हैं । हमारे निर्देश सभी के लिए होंगे। चाहे वे किसी धर्म या व्यवसाय के हों। अगर सड़क के बीच में कोई धार्मिक संरचना है फिर वह गुरूद्वारा हो, दरगाह या फिर मंदिर, तो उसे हटाना ही पड़ेगा। यह जनता के आवागमन में बाधा नहीं डाल सकती। साथ ही अवैध निर्माण तोड़ने से पहले पर्याप्त समय देना चाहिए। महिलाओं और बच्चों को सड़क पर देखना अच्छा नहीं । - जस्टिस बी.आर. गवई
हम एक धर्म निरपेक्ष देश हैं । हमारे निर्देश सभी के लिए होंगे। चाहे वे किसी धर्म या व्यवसाय के हों। अगर सड़क के बीच में कोई धार्मिक संरचना है फिर वह गुरूद्वारा हो, दरगाह या फिर मंदिर, तो उसे हटाना ही पड़ेगा। यह जनता के आवागमन में बाधा नहीं डाल सकती। साथ ही अवैध निर्माण तोड़ने से पहले पर्याप्त समय देना चाहिए। महिलाओं और बच्चों को सड़क पर देखना अच्छा नहीं । - जस्टिस बी.आर. गवई
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