• 28 Apr, 2025

केंद्र और पीएसयू राज्यों को लौटाएंगे 12 साल की रायल्टी

केंद्र और पीएसयू राज्यों को लौटाएंगे 12 साल  की  रायल्टी

● 1 अप्रैल 2005 से रायल्टी वसूल करने की अनुमति दी है सुप्रीम कोर्ट ने ● खनिज संपन्न राज्यों की जीत ,कर लगाने के अधिकार वाला फैसला पूर्व प्रभाव से राजी होगा ● छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखंड जैसे राज्यों को सबसे अधिक लाभ ● खनिज सम्पन्न राज्यों को बकाये का भुगतान अगले 12 वर्षों में क्रमबद्ध तरीके से

नई दिल्ली। देश की खनिज समृद्ध राज्यों को बड़ी जीत मिली है । सुप्रीम कोर्ट ने इन राज्यों को अधिकार दिया है की वे खनिज कंपनियों और केंद्र सरकार से खनिजों की रॉयल्टी व कर बकाया 1 अप्रैल 2005 की तिथि से वसूल सकेंगी । सुप्रीम कोर्ट की 9 सदस्य संविधान पीठ ने कहा है कि उसका 25 जुलाई 2024 का फैसला पूर्व प्रभाव से लागू होगा।  
 
संविधान ने 25 जुलाई को आठ अनुपात एक 8:1 के बहुमत से यह फैसला दिया था कि खनिज संपदा पर लगाने का अधिकार संबंधित राज्य सरकारों से पास है न की संसद के पास । हालांकि तब कोर्ट ने यह साफ नहीं किया था कि उसका फैसला पूर्व प्रभाव से लागू होगा या नहीं । इस फैसले से छत्तीसगढ़, उड़ीसा और झारखंड जैसे राज्यों को सबसे ज्यादा फायदा होगा ।
 
 सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ अपनी 9  सदस्य पीठ की ओर से बुधवार 14 अगस्त को यह स्पष्ट कर दिया की यह फैसला 2005 से लागू माना जाएगा । पीठ ने हालांकि कहा कि इस बकाया राशि को आने वाले 12 वर्ष चरणबद्ध तरीके से वसूला जा सकेगा । कर की मांग  के  भुगतान का समय एक अप्रैल 2006 से शुरू होगा । कंपनियों या केंद्र पर बोझ न पड़े इसीलिए कोर्ट ने 25 जुलाई 2024 से पहले के बकाये पर ब्याज या जुर्माना लगाने की मंजूरी नहीं दी । पीठ ने केंद्र सरकार और खनन कंपनियों जिनमें कई सरकारी क्षेत्र की कंपनियां भी हैं के उस अनुरोध को नहीं माना की 25 जुलाई के फैसले को पूर्व प्रभाव से लागू न किया जाए ।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने माना 
 
  •  सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने माना की रॉयल्टी कोई कर नहीं
केंद्र ने कहा  था  कि  यदि फैसले को पूर्व तिथि से लागू किया जाता है तो आरंभिक आकलन के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को 70,000 करोड़ रुपये से अधिक का घाटा होगा । पीठ ने राज्यों के कर लगाने के अधिकार को बरकरार रखते हुए 25 जुलाई को कहा था की खनन पट्टाधारकों की ओर  से केंद्र सरकार को दी जाने वाली रॉयल्टी  कोई कर नहीं है। खान और खनिज विकास और विनिमय अधिनियम 1957 राज्यों की कर लगाने के अधिकार को सीमित नहीं करता ।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा था संघीय व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी
 
 जस्टिस नागरत्ना ने बहुमत के विचार से असहमति जताई और कहा था कि रॉयल्टी कर की प्रवृत्ति में हैं । उनका मानना था कि राज्यों को कर लगाने की अनुमति देने से संघीय व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी और खनन गतिविधियों में मंदी आएगी व राज्यों में खनन पट्टे प्राप्त करने के लिए अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी ।