नीति की सराहना, आक्रामक नीति से बैकफुट पर जा रहे नक्सली…
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● साल लगे, गढ़ में कैंप खोलना टर्निंग पाइंट ....
जगदलपुर, रायपुर। छत्तीसगढ़ तो पिछले तीन दशकों से भी अधिक समय से नक्सलियों के दंश झेलता आ रहा है। अब तक कितने निर्दोष आादिवासियों की भी हत्याएं हो चुकी हैं तो साथ ही नक्सलियों के सहयोगी बताकर सैकड़ों आदिवासियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। इधर एक दशक के बाद ऐसा अवसर आया है कि सुरक्षा बलों के जवान नक्सलियों पर भारी पड़ रहे हैं। इससे पहले तक देखा गया था कि नक्सली जवानों को अपने एम्बुश में फसाते थे और बड़ी तादात में शहादतें होती थीं पर इस साल जवानों ने अलग अलग मुठभेड़ों में 103 नक्सलियों को ढेर कर दिया। पुलिस के अनुसार नक्सलियों पर इस तरह आक्रामक नीति को लागू करने में तीन साल का समय लगा। नक्सलियों पर नकेल कसने और उनकी जड़ें काटने की योजना 2022 में बनाई गई थी। इसी समय समझा गया कि नक्सलियों से मुकाबला करना है तो उनके गढ़ में ही अपना भी बेस बनाना होगा।
इससे पहले जब नक्सलियों की सूचना पर जाते थे तो जंगलों में ही 50 से 100 किमी तक का सफर तय करते थे। ऐसे में उनके ऑपरेशन की खबरें लीक हो जाती थीं। यानी जवान कितनी संख्या में आए हैं कितने हथियार उनके पास है इन सब बातों की खबर नक्सलियों को फोर्स के वहां पहुंचने से पहले ही लग जाती थी। ऐसे में नक्सली एम्बुश लगाकर जवानों को घेर लिया करते थे।इससे बड़ी संख्या में बलों के जवानों की शहादत होती थी। जब 2022 में अफसरों ने नक्सलियों की इस नीति को ट्रेक कर उसका तोड़ निकाला तो तय किया गया कि नक्सलियों के गढ़ में ही बेस कैंप खोले जाएं। इसके बाद इसकी प्लानिंग शुरु की गई। 2023 में फोर्स ने संभाग के सात जिलों में करीब 60 से ज्यादा नए कैंप खोले। इनमें से ज्यादातर कैंप धुर नक्सल इलाके बीजापुर, सुकमा और अबूझमाड़ में ही खोले गए हैं।
2023 में कैंप खोल लेने के बाद प्लानिंग के मुताबिक 2024 में इन कैंपों से नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन शुरु किये गए। यह रणनीति कामयाब साबित हुई। फोर्स को नक्सलियों को घेरने और उनको मुठभेड़ में ही ढेर कर देने में सफलता मिलने लगी। पहले उल्टे फोर्स के जवान ही घेर लिये जाते थे। अब फोर्स को नक्सलियों तक पहुंचने के लिए बहुत कम सफर करना पड़ता है। बस्तर के आईजी सुंदरराज पी ने बताया कि अभी सेंट्रल और लोकल फोर्स तालमेल के साथ बेहतर काम कर पा रहे हैं। अब तो नक्सलियों के हर इनपुट पर प्लानिंग की जा रही है और आक्रामक ऑपरेशन लांच किये जा रहे हैं।
अफसरों का कहना है कि नक्सली इस जगह पर आने वाले दस दिनों तक रुकने की प्लानिंग में थे। यही कारण है कि उन्होंने पर्याप्त मात्रा में हथियारों के साथ अन्य सामान भी रखा हुआ था। इससे पहले तीन मई को जवानों ने सुकमा के जोमागुड़ा में नक्सलियों के खिलाफ बड़ा ऑपरेशन लांच किया था लेकिन तब नक्सली भाग निकलने में कामयाब हो गये थे।
मुठभेड़ वाला इलाका नक्सलियों के हथियारों की फैक्ट्री... बस्तर में नक्सलियों के कुछ चुनिंदा सेफ जोन हैं जहां वे खुलकर अपनी सत्ता चलाते हैं नक्सली गतिविधियों को अंजाम देते हैं। 10 मई को पीढ़िया के जंगल में जहां फोर्स ने अपना ऑपरेशन लांच किया वह नक्सलियों का सेफ जोन समझा जाता है। यह इलाका उनके लिए इतना सुरक्षित है इस बात का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि इस जंगल में उनके हथियार बनाने की फैक्ट्री भी हैं। इतना ही नहीं यहीं वे नए लड़कों को हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी देते हैं। यह काम वे दशकभर से भी अधिक समय से कर रहे हैं। 2009 में इस क्षेत्र में पहली बार हेलीकॉप्टर पर नक्सलियों की ओर से हमला किया गया था वह पीढ़िया में ही हुआ था। तब एक गोली हेलीकॉप्टर पर सवार एयरफोर्स के एक इंजीनियर को भी लग गई थी। जवानों का यहां घुसना जोखिम से भरा है। |
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