अब महाराष्ट्र-झारखंड में चुनावी सरगर्मियां तेज..
■ भाजपा ने दोनों राज्यों में लगाई सौगातों -वादों की झड़ी ■ विपक्षी खेमा भी सक्रिय हुआ ■ इन दोनों राज्यों में चुनाव नवंबर में होने की चर्चा
आजाद भारत में जन्मीं पहली राष्ट्रपति, गाँव में शिक्षिका रहीं, अब सेना की सर्वोच्च कमांडर प्रधानमंत्री ने घर जाकर बधाई दी... कहा- इतिहास रच दिया
नई दिल्ली । ( निरंतर पहल ) । द्रौ पदी मुर्मू देश की 15 वीं राष्ट्रपति निर्वाचित हुईं हैं। आजादी के 75 वें साल में मनाए जा रहे अमृत महोत्सव के बीच देश की आदिवासी समुदाय का पहला राष्ट्रपति बनकर उन्होंने इतिहास रच दिया। भारत ने देश की सबसे वंचित समुदाय की बेटी को देश का प्रथम नागरिक और तीनों सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर चुनकर लोकतंत्र की शक्ति दिखाई है । संसद में 21 जुलाई को हुई मतगणना में श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को 6 लाख 76 हजार 803 वोट मिले जो कुल मिले मतों का (63.03 प्रतिशत) मत है। विपक्ष के श्री यशवंत सिन्हा को 3 लाख 80 हजार 177 वोट मिले जो ( 35.97 प्रतिशत) मत है। श्रीमती मुर्मू देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति निर्वाचित हुई हैं। वे अब तक की सबसे कम उम्र की राष्ट्रपति (64 साल एक माह में ) बनीं। इससे पहले श्री नीलम संजीव रेड्डी ( 64 साल दो माह ) की उम्र में देश के इस सर्वोच्च पद पर आसीन हुए थे।
विपक्ष में सेंधमारी, छत्तीसगढ़ - बिहार में 6 और कई राज्यों में क्रास वोटिंग
भाजपा का दावा- 125 विपक्षी विधायकों और 17 सांसदों ने क्रास वोटिंग की।
असम में 22, मध्यप्रदेश में 20, बिहार और छत्तीसगढ़ में 6-6 गोवा में 4 और गुजरात में 10 विधायकों ने क्रास वोटिंग की।
श्रीमती मुर्मू को सबसे अधिक वोट यूपी, महाराष्ट्र से मिले वहीं श्री सिन्हा को बंगाल और तमिलनाडु से।
प्रधानमंत्री ने घर जाकर बधाई दी... कहा इतिहास रच दिया
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा ने श्रीमती मुर्मू के आवास जाकर राष्ट्रपति चुने जाने पर बधाई दी। मोदी ने कहा जनजातीय समुदाय की बेटी ने इतिहास रच दिया। वे आशा की किरण हैं वहीं विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने कहा कि देश को उम्मीद है कि राष्ट्रपति के रूप में श्रीमती मुर्मू संविधान की संरक्षक के रूप में कार्य करेंगी। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने भी श्रीमती मुर्मू को राष्ट्रपति निर्वाचित होने पर बधाई दी।
रायरंगपुर से रायसीना –
पति और दो बेटों को खोया, डिप्रेशन में चली गईं थीं-
ओडिशा के मयूरभंज जिले के रायरंगपुर में गरीब आदिवासी परिवार में जन्मीं श्रीमती द्रौपदी मुर्मू का जीवन बहुत ही त्रासद रहा है। पांच साल के भीतर उन्होंने अपना पति व अपने दो बेटे खो दिए फिर भी वे रुकी नहीं। वे इतने विराट दुख में गहन अवसाद में चली गईं पर किसी तरह उससे उबर कर उन्होंने समाज के दर्द को अपना दर्द समझा। पति और बेटों की याद में ओडिशा में स्कूल का निर्माण करवाया जहां उनकी प्रतिमाएं लगीं हैं । वे ओडिशा से राष्ट्रपति पद पर पहुंचने वाली पहली नेता हैं।
संवेदनशील
बच्चे के दान की खबर पाते ही बुलाया
मुर्मू सरल स्वभाव की हैं और संवेदनशील भी। जब वे झारखण्ड में राज्यपाल थीं तब ही अखबार में एक खबर आई थी कि गरीबी के कारण एक माँ अपने पांच साल के एक बच्चे को किसी को दान में देना चाहती है। खबर पढ़ते ही उन्होंने घोषणा कर दी कि इस बच्चे को वह गोद लेंगी, पढ़ाएंगी-लिखाएंगी।
सीख
अँग्रेजी बोलने वाली अनपढ़ नानी चाहती थीं मुर्मू खूब पढ़े
ओडिशा का दूरदराज का वह इलाका जहां ज्यादातर लोग तो प्राय अनपढ़ ही रह जाते थे । इस इलाके में रहने वाली द्रौपदी मुर्मू की नानी जो स्वयं अशिक्षित थीं पर थोड़ी बहुत अँग्रेजी बोलना जानती थीं वे चाहती थीं कि द्रौपदी खूब पढ़े लिखे। इसके लिए घर में प्रयास भी किए गए। इसके लिए उन्होने कोशिशें भी की और वे अपने गाँव से ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर जाकर पढ़ने वाली पहली लड़की थीं।
प्रकृति प्रेम
50 लाख पौधे रोपने की अलख जगाई
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को प्रकृति से बेहद लगाव है। जब वे झारखण्ड की राज्यपाल थीं तो चाहती थीं कि बड़े पैमाने पौध रोपण अभियान चलाया जाए। उनका मानना है कि पेड़ पोषणकर्ता के साथ साथ जीवनदायी हैं। उनकी इसी सोच और पहल के बाद पूरे ओडिशा में ट्रीज फॉर टाइगर अभियान चलाया गया। इसके तहत 50 लाख पौधे रोपे गए। वे पूर्व राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम के एक परिवार को दस पेड़ रोपने के संकल्प का आदर्श स्वयं भी मानती रहीं।
प्रेरणा
दोनो बेटों , पति , माँ और भाई खोया, अवसाद से लौटीं
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के मुस्कुराते चेहरे के पीछे सिलसिले से कई दर्द छिपे हुए हैं। साल 2009 से 2015 के बीच के उनके जीवन में लगातार हुए हादसों ने उन्हें तोड़ ही डाला था। इन छह सालों में उन्होंने अपना पति, दोनो बेटों , माँ और भाई को खो दिया। और इसके बाद वे इतने अवसाद में चली गईं कि जीना ही नहीं चाहती थीं। फिर उन्होंने खुद को सम्हाला और अपने काम में लग गईं। अब परिवार में उनकी बेटी इतिश्री, दामाद और नन्हीं नातिन ही बचे हैं।
मुकाम
25 साल में पार्षद से प्रेसिडेंट
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ओडिशा के मयूरभंज जिला के कुसमी ब्लॉक के उपरबेडा गाँव के संथाल आदिवासी परिवार से आती हैं। उनका जन्म 20 जून 1958 को हुआ था। वे दिवंगत विरंची नारायण टुडू की बेटी हैं।
श्रीमती मुर्मू का विवाह श्याम चरण मुर्मू से हुआ था और वह रायरंगपुर में मानद सहायक शिक्षक और सिंचाई विभाग में कनिष्ठ सहायक के रूप में काम कर चुकी थीं। उन्होंने 1997 में राजनीतिक जीवन की शुरूआत की ।
वे 1997 में रायरंगपुर की पार्षद बनीं और इसी साल वे भाजपा की ओडिशा ईकाई की अनुसूचित जनजाति मोर्चा की उपाध्यक्ष भी बनी थीं।
ओड़िशा में दो बार भाजपा की विधायक रहीं और नवीन पटनायक सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहीं।
ओडिशा विधानसभा ने सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया।
ईश्वर की शपथ लेती हूँ....मैं पूरी योग्यता से संविधान और विधि का सरंक्षण करूंगी...
सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने 25 जुलाई को द्रौपदी मुर्मू को देश के 15 वें राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई। वे भारत का सर्वोच्च संवैधानिक पद सम्हालने वाली पहली आदिवासी महिला और आजाद भारत में जन्म लेने वाली पहली राष्ट्रपति बन गई हैं। राष्ट्रपति के रूप में संसद भवन से पहले संबोधन की शुरूआत राष्ट्रपति मुर्मू ने आदिवासी अभिवादन –जोहार से की। अपने 18 मिनट के संबोधन में कहा कि यह हमारे लोकतंत्र की ही शक्ति है गरीब और सुदूर आदिवासी क्षेत्र में पैदा हुई बेटी भी भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुंच सकती है। राष्ट्रपति पद तक पहुंचना देश के हर गरीब की उपलब्धि है। मेरा इस पद पर चुना जाना इस बात का सबूत है कि भारत में गरीब सपने देख भी सकता है और वक्त आने पर उन्हें पूरा भी कर सकता है।
जीत का जश्न
द्रौपदी मुर्मू की जीत के बाद उनके ओडिशा स्थित पैतृक गाँव से लेकर देशभर में सभी जगह जश्न का माहौल..
जो गाँव राजनीति को अछूत मानता था, वहीं से निकलकर बनीं राष्ट्रपति
जिस गाँव में लोग राजनीति को अच्छा नहीं मानते थे उसी गाँव की द्रौपदी मुर्मू नज़ीर बन गईं हैं। उन्होंने तब राजनीति शुरू की जब इसे महिलाओं के लिए तो छोड़िये पुरुषों के लिए लोग गंदा मानते थे। उस दौर में शिक्षिका मुर्मू ने चुनाव लड़ा और जीत कर पार्षद बनीं फिर सफर यहीं नहीं रूका । फिर वे विधायक बनीं, फिर मंत्री भी। अब पहली आदिवासी राष्ट्रपति हैं। उनके नाम एक और कीर्तिमान भी दर्ज हो रहा है वह है उनका अब तक की सबसे कम उम्र की राष्ट्रपति चुना जाना। जिस दिन वे चुनी गईं वे 64 साल डेढ़ महीने की थीं।
■ भाजपा ने दोनों राज्यों में लगाई सौगातों -वादों की झड़ी ■ विपक्षी खेमा भी सक्रिय हुआ ■ इन दोनों राज्यों में चुनाव नवंबर में होने की चर्चा
हम एक धर्म निरपेक्ष देश हैं । हमारे निर्देश सभी के लिए होंगे। चाहे वे किसी धर्म या व्यवसाय के हों। अगर सड़क के बीच में कोई धार्मिक संरचना है फिर वह गुरूद्वारा हो, दरगाह या फिर मंदिर, तो उसे हटाना ही पड़ेगा। यह जनता के आवागमन में बाधा नहीं डाल सकती। साथ ही अवैध निर्माण तोड़ने से पहले पर्याप्त समय देना चाहिए। महिलाओं और बच्चों को सड़क पर देखना अच्छा नहीं । - जस्टिस बी.आर. गवई
हम एक धर्म निरपेक्ष देश हैं । हमारे निर्देश सभी के लिए होंगे। चाहे वे किसी धर्म या व्यवसाय के हों। अगर सड़क के बीच में कोई धार्मिक संरचना है फिर वह गुरूद्वारा हो, दरगाह या फिर मंदिर, तो उसे हटाना ही पड़ेगा। यह जनता के आवागमन में बाधा नहीं डाल सकती। साथ ही अवैध निर्माण तोड़ने से पहले पर्याप्त समय देना चाहिए। महिलाओं और बच्चों को सड़क पर देखना अच्छा नहीं । - जस्टिस बी.आर. गवई
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