नीति की सराहना, आक्रामक नीति से बैकफुट पर जा रहे नक्सली…
● बैठक- केन्द्रीय गृहमंत्री शाह ने सीएम साय की रणनीति को सराहा ● मंत्री शाह की अपील भटके युवा मुख्यधारा में लौटें
■ नक्सल विरोधी अभियान- मार्च 2026 तक माओवादी समस्या समाप्त करने का मोदी सरकार का संकल्प ■ सीआरपीएफ ने झारखंड से तीन और बिहार से एक बटालियन को वापस बुलाया
रायपुर। केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) जो एक अर्धसैनिक बल है छत्तीसगढ़ के बस्तर के सबसे नक्सल हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में 4000 से अधिक कर्मियों वाली चार बटालियनों को तैनात कर रहा है। यह मार्च 2026 तक माओवादी समस्या को समाप्त करने के केन्द्र सरकार के नवीनतम संकल्प के अनुरूप एक निर्णायक लड़ाई छेड़ने रणनीति का एक हिस्सा है। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पिछले महीने अगस्त में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में इस समय सीमा की घोषणा करते हुए इस बात पर जोर दिया था कि देश को वामपंथी उग्रवाद से मुक्त कराने के लिए एक मजबूत और निर्मम कार्ययोजना की जरूरत है।
वामपंथी उग्रवाद को कभी देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा कहा जाता था। इस बीच सीआरपीएफ ने झारखंड से तीन और बिहार से अपनी एक 450 से 500 किमी दक्षिण स्थित बस्तर क्षेत्र में की जाएगी। सीआरपीएफ को देश के प्रमुख आंतरिक सुरक्षा और नक्सल विरोधी अभियान बल के लिए जाना जाता है। ऐसा महसूस किया गया है कि इन दोनो राज्यों ( झारखंड एवं बिहार ) में नक्सली हिंसा की स्थिति में सुधार हुआ है और घटनाएं नगण्य हैं। इसलिए इन बटालियनों का छत्तीसगढ़ में बेहतर उपयोग किया जा सकता है जहां अब नक्सल विरोधी अभियान केन्द्रित है।
बताया गया है कि छत्तीसगढ़ में वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र मे मौजूदा बल को और मजबूत बनाने के लिए सीआरपीएफ की 159 ,218, 214 और 22 बटालियनों को तैनात किया जा रहा है। सीआरपीएफ की एक बटालियन में करीब हजार जवान होते हैं। इन इकाइयों को दंतेवाड़ा सुकमा और दूरदराज के जिलों और ओडिशा, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना के साथ राज्य की त्रिकोणीय सीमा के दूरदराज के स्थानों पर तैनात किया जा रहा है।
सीआरपीएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ये बटालियने सीआरपीएफ की कोबरा बटालियनों के साथ मिलकर जिलों के दूरदराज के इलाकों में और अधिक अग्रम परिचालन बेस ( एफओबी) स्थापित करेंगी, ताकि क्षेत्र को सुरक्षित करने के बाद विकास कार्य शुरू किये जा सकें। उल्लेखनीय है कि पिछले तीन वर्षों में बल ने छत्तीसगढ़ में 40 एफओबी बनाए हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे बेस बनाने में कई तरह की चुनौतियां आती हैं, जैसे माओवादियों द्वारा जवानों पर घात लगाकर विस्फोटक उपकरणों से हमला करना आदि।
उन्होंने बताया कि इन नई इकाइयों को बख्तरबंद गाड़ियों यूएवी ( अनमैन्ड एरियल वेहिकल ) , श्वान दस्ते, संचार सेट और राशन आपूर्ति के माध्यम से रसद सहायता प्रदान की जा रही है। इसका उद्देश्य बस्तर के सभी नो गो और अज्ञात क्षेत्रों में पैर जमाना है ताकि सरकार द्वारा तय की गई मार्च 2026 की समय सीमा के अनुसार वामपंथी उग्रवाद के खतरे को समाप्त किया जा सके। हालांकि एक अन्य अफसर ने यह बताया कि इकाइयों और उसका समर्थन करने वाली अन्य सीआरपीएफ बटालियनों को लगातार तकनीक, हेलीकॉप्टर और संसाधन सहायता की जरूरत होगी क्योंकि दक्षिण बस्तर नक्सल विरोधी अभियानों के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण क्षेत्र है।
केन्द्रीय मंत्री शाह ने दी थी जानकारी केन्द्रीय मंत्री अमित शाह ने 24 अगस्त को रायपुर में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि 2004-2014 की तुलना में 2014 -24 के दौरान देश में नक्सली हिंसा की घटनाओं में 53 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। शाह ने कहा कि 2004–14 में नक्सली हिंसा की 16274 घटनाएं दर्ज की गईं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के दौरान अगले दशक में यह 53 फीसदी गिर कर 7696 रह गई। उन्होंने कहा था कि इस तरह देश में माओवादी हिंसा के कारण मरने वालों की संख्या भी काफी हद तक कम हुई है। इसी काल खंड में यह घटकर 1990 रह गई है। गृहमंत्री शाह ने कहा था कि अब लड़़ाई अपने अंतिम चरण में पहुंच गई है। हमें विश्वास है कि हम मार्च 2026 तक देश को वामपंथी उग्रवाद से मुक्त कर पाएंगे। |
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