अब महाराष्ट्र-झारखंड में चुनावी सरगर्मियां तेज..
■ भाजपा ने दोनों राज्यों में लगाई सौगातों -वादों की झड़ी ■ विपक्षी खेमा भी सक्रिय हुआ ■ इन दोनों राज्यों में चुनाव नवंबर में होने की चर्चा
● 2024 में सभी सीटें जीत कर इतिहास बनाना चाहती है भाजपा ● विधानसभा में भारी बहुमत से सीटें जीतने के बाद बहुत उत्साह में है पार्टी ● प्रत्याशी चयन में 2019 की तरह ही फार्मूला लगा सकती है भाजपा ● विधायक बनते ही तीन सांसद दे चुके हैं इस्तीफा
रायपुर। छत्तीसगढ़ में बहुमत से जीत कर सरकार बनाने वाली भाजपा का उस्ताह चरम पर है और अब वह प्रदेश की सभी ग्यारह लोकसभा सीटें जीतने की रणनीति पर काम कर रही है। आगामी लोकसभा चुनाव को अब दो पौने तीन महीने ही शेष रह गए हैं। इसी से पार्टी ने जीत सुनिश्चित करा सकने वाले प्रत्याशी के चेहरे तलाश रही है। पार्टी के भीतरी भरोसेमंद सूत्रों की मानें तो हो सकता है 2024 में लोकसभा के टिकट वितरण के समय ठीक 2019 की तरह का ही फार्मूला अपनाया जा सकता है। इसी की संभावना भी दिखाई दे रही है।
जाहिर है इसी के चलते भाजपा के बड़े दिग्गज नेताओं के पास दावेदारों के आवेदन और बायोडाटा आने का सिलसिला शुरु हो गया है। भाजपा की पूरी तैयारी है कि वह विधानसभा चुनाव की तरह ही लोकसभा के तमाम 11 सीटें जीतने की तैयारी कर रही है। बता दें कि पृथक छत्तीसगढ़ के गठन के बाद से लेकर अभी तक भाजपा ने राज्य की सारी लोकसभा सीटें नहीं जीत पाई है।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष किरणदेव सिंह भी ग्यारह सीटें जीतने का लक्ष्य दे चुके हैं। इसे देखते हुए इस बात की संभावना है कि विधानसभा चुनाव की तरह ही लोकसभा चुनाव में भी पार्टी कई सीटों पर अपने प्रत्याशी पहले से ही तय कर दे। उल्लेखनीय है कि भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने लोकसभा चुनाव की तैयारी कई महीने पहले से शुरु कर चुकी है। अब उसकी तैयारी अपने रणनीति पर अमल करने की है।
विगत दिनों भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में समूचे देश के लिए आने वाले तीन महीनों के लिए पूरी कार्ययोजना बनाई गई है जिसके तहत ही राज्यों में संगठनात्मक गतिविधियां भी शुरु की गई हैं। इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ की सभी ग्यारह सीटों पर भाजपा की नज़र है। पार्टी सभी ग्यारह सीटें जीतने की कार्ययोजना पर अभी से काम करने लगी है। वर्तमान में भाजपा के पास प्रदेश की कुल 11 में से 9 सीटें हैं। दो सीटें बस्तर और कोरबा कांग्रेस ने जीती थीं। इन दो सीटों पर भी पार्टी की नजर है और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अभी से नट बोल्ट कसने शुरु किये जा चुके हैं।
इसके लिए पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजों के अलावा इसी साल हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों का भी बारीकी से अध्ययन किया जा रहा है । विशेष रूप से कोरबा लोकसभा सीट पर क्योंकि इस लोकसभा के अंतर्गत आने वाली सभी 8 विधानसभा सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। इसी तरह बाकी लोकसभा की सीटों पर भी जातीय समीकरणों को समझा जा रहा है। भाजपा के सूत्रों का कहना है कि विधानसभा चुनाव तो पार्टी ने पीएम नरेन्द्र मोदी के चेहरे और उनकी गारंटी पर ही लड़ा था और लोकसभा के चुनाव के लिए भी इसी तरह की संभावना पर विचार किया जा रहा है। इस तरह विस चुनाव में ब्रांड बन कर उभरे मोदी को पार्टी लोकसभा में और भी मजबूत करना चाहती है। मकसद यही है कि वोटर कमल पर वोट दें और तीसरी बार भी भाजपा केन्द्र की सत्ता हासिल कर सके।
इधर अयोध्या में भगवान श्री राम की प्राणप्रतिष्ठा के अलावा भी भाजपा ने कई ऐसे कार्यक्रम शुरू कर दिये हैं कि जो सीधे मतदाताओं को भावनात्मक रूप से पार्टी से जोड़ रहे हैं। उल्लेखनीय है कि छ्त्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपने चार सांसदों को टिकट दी थी जिनमे से तीन सांदस विधानसभा चुनाव जीत कर आ गए हैं। जीतने वाले विधायकों ने बाद में सांसद पद से इस्तीफा दे दिया है।
इनमें बिलासपुर के अरुण साव, रायगढ़ से गोमती साय और सरगुजा से रेणुका सिंह प्रमुख हैं जबकि दुर्ग सांसद विजय बघेल पाटन से चुनाव हार गए। इस तरह अब इन तीन लोकसभा सीटों पर नये चेहरों को टिकट मिलने की संभावना बन रही है। छह लोकसभा सीटों कांकेर, महासमुंद, दुर्ग, रायपुर, राजनांदगांव और जांजगीर -चांपा के भाजपा सांसदों को राष्ट्रीय नेतृत्व की कसौटी पर खरा उतरना जरूरी माना जा रहा है।
छत्तीसगढ़ राज्य की सत्ता पर लगातार 15 साल तक कायम रही भाजपा को पिछले विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी। बहुमत वाली भाजपा सिर्फ 15 सीटों पर सिमट कर रह गई थी। इसके अलावा वोट प्रतिशत में भी कांग्रेस से करीब 13 फीसदी पिछड़ गई थी। विस चुनाव के कुछ महीनों बाद तब 2019 में लोक सभा के चुनाव होने थे। करारी हार से सबक लेकर पार्टी ने एक कूटनीतिक फैसला किया और राज्य की कुल 11 लोकसभा की सीटों से सभी वरिष्ठों के टिकट काटकर नये चेहरों को लोकसभा की टिकटें दे दी नतीजा यह हुआ कि वे सभी प्रत्याशी जीत गए और 9 सीटों पर भाजपा ने कब्जा कर लिया। इतना होने पर लोकसभा चुनाव जीत चुकी भाजपा की दूसरी बार भी केन्द्र में सरकार बनी पर वोट प्रतिशत फिर भी केवल 5 फीसदी ही बढ़ सका।
2024 में राजनीतिक परिस्थिति अलग है पिछले चुनाव और अब होने जा रहे चुनावों के समय में परिस्थितियों में जमीन आसमान का फर्क है। 2019 में भाजपा के सामने राज्य की सत्ता में कांग्रेस की सरकार थी विधानसभा चुनाव 2018 में करारी हार के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा हुआ था। जबकि 2024 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव के ठीक पहले राज्य में भाजपा की पूर्ण बहुमत की ससख्त सरकार है। इस बार भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल तो निसंदेह बढ़ा हुआ है पर वोट प्रतिशत के लिहाज से दोनो पार्टियां लगभग एक ही प्लेटफार्म पर खड़ी दिख रही हैं। इस हालत में भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व के सामने नेताओं और कार्यकर्ताओं का परफार्मेंस ही एक मात्र आधार है जाहिर है ऐसे में माना जा रहा है कि मजबूत जनाधार वाले नेताओं को ही दोबारा मौका मिल सकता है। हो सकता है कि भाजपा सभी चेहरे एक बार फिर बदल कर 2019 का अपना जीत का पुराना फार्मुला दोहरा सकती है। | नए चेहरों में प्रोफेशनल और सक्रिय लोगों को ही मौका छत्तीसगढ़ विधानसभा में खासे बहुमत से जीतने के बाद भी भाजपा ने अपनी रणनीति के तहत पुराने और कद्दावर नेताओं को हाशिये पर ही रखा है। कई तो जीतने के बाद भी मंत्री पद की दौड़ में पिछड़ गए तो ऐसे में कहा जा रहा है कि इन लोगों को लोकसभा में लड़ा कर आजमाया जा सकता है क्योंकि विस चुनाव तो वे जीत ही चुके हैं तो जीत की संभावना पर प्रश्न तो नहीं ही है। इनमें डॉ. रमन सिंह, विक्रम उसेंडी, लता उसेंड़ी,धरमलाल कौशिक जैसे नेताओं के नाम लिये जा रहे हैं। पर दूसरी तरफ भाजपा के भीतरी खाने से यह भी खबर है कि जिन्हें एक बार मौका मिल चुका है उन्हें फिर से मौका दिया जाय उसकी संभावना कम ही है। जिस तरह भाजपा में विधानसभा चुनाव के बाद प्रयोग हुए हैं उसे देखते हुए कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में प्रोफेशनल चेहरों को मौका दिया जा सकता है। खास कर पार्टी उन्हें आगे कर सकती है जो संगठनात्मक काम में आगे आगे रहे हैं और पार्टी के निर्देशों का पालन कर रहे हैं। | छत्तीसगढ़ में लोकसभा की 11 सीटें
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■ भाजपा ने दोनों राज्यों में लगाई सौगातों -वादों की झड़ी ■ विपक्षी खेमा भी सक्रिय हुआ ■ इन दोनों राज्यों में चुनाव नवंबर में होने की चर्चा
हम एक धर्म निरपेक्ष देश हैं । हमारे निर्देश सभी के लिए होंगे। चाहे वे किसी धर्म या व्यवसाय के हों। अगर सड़क के बीच में कोई धार्मिक संरचना है फिर वह गुरूद्वारा हो, दरगाह या फिर मंदिर, तो उसे हटाना ही पड़ेगा। यह जनता के आवागमन में बाधा नहीं डाल सकती। साथ ही अवैध निर्माण तोड़ने से पहले पर्याप्त समय देना चाहिए। महिलाओं और बच्चों को सड़क पर देखना अच्छा नहीं । - जस्टिस बी.आर. गवई
हम एक धर्म निरपेक्ष देश हैं । हमारे निर्देश सभी के लिए होंगे। चाहे वे किसी धर्म या व्यवसाय के हों। अगर सड़क के बीच में कोई धार्मिक संरचना है फिर वह गुरूद्वारा हो, दरगाह या फिर मंदिर, तो उसे हटाना ही पड़ेगा। यह जनता के आवागमन में बाधा नहीं डाल सकती। साथ ही अवैध निर्माण तोड़ने से पहले पर्याप्त समय देना चाहिए। महिलाओं और बच्चों को सड़क पर देखना अच्छा नहीं । - जस्टिस बी.आर. गवई
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