• 28 Apr, 2025

पाकिस्तान के अली चिश्ती से हैदराबाद से पत्रकार दिनेश आकुला से महत्वपूर्ण बातचीत

पाकिस्तान के अली चिश्ती से हैदराबाद से पत्रकार  दिनेश आकुला से महत्वपूर्ण बातचीत

  • पाकिस्तान तकनीक में भारत से कोई तीस साल पीछे है...
  • कठमुल्ला और मिलिटरी गठजोड़ ने पाकिस्तान का बेडा गर्क कर दिया
  • यहां कि सियासत ने केवल नफरत ही सिखाया जबकि 90 फीसदी पाकिस्तानी इंडिया को अच्छी निगाहों से देखता है
  • यहां की इकॉनामी इतनी खराब है कि इंडिया में जो कार ढाई लाख रुपये में मिलती है उसी के यहां 27 लाख 50 हजार रुपये चुकाने पड़ते हैं.
  • हालात इतने बदतर हैं कि लोग पाकिस्तान छोड़कर जा रहे हैं यहां रहने के हालात नहीं हैं..

हैदराबाद। वरिष्ठ पत्रकार दिनेश आकुला ने पाकिस्तान के लेखक, उद्योगपति और सुरक्षा विशेषज्ञ अली के. चिस्ती से भारत और पाकिस्तान के संबंधों, विकास प्रक्रिया, विज्ञान की प्रगति के साथ ही अंतरिक्ष मिशन के बारे में विस्तार से बड़ी रोचक और बेबाक बातचीत की। दिनेश डिस्पेचेश के अंतर्गत हुई इस महत्वपूर्ण बातचीत के अंश।

दिनेश  - अली चिस्ती साहब आपका भारत के कार्यक्रम में आपका स्वागत है। मैं भारत और पाकिस्तान के अंतरिक्ष कार्यक्रम और स्पेस एक्सप्लोरेशन के बारे में बात करना चाहता हू। क्या वजह है कि पाकिस्तान का स्पेस प्रोग्राम भारत के इसरो के स्पेस प्रोग्राम से पीछे क्यों है जबकि भारत से काफी पहले पाकिस्तान के स्पेस एजेंसी सुपल्को ने 1962 में अंतरिक्ष मिशन की शुरूआत कर दी थी। पाकिस्तान में भारत के स्पेस प्रोग्राम को लेकर बहुत मीम बने कि भारत मून में पहुंचा ही नहीं है। तो भारत ने कहा कि पाकिस्तान के  तो केवल झंडे में ही चांद है जबकि भारत तो चांद में पहुंच गया।

अली चिस्ती- देखिए दिनेश आपको पहले बहुत मुबारकबाद कि आप भारत में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। स्पेस मिशन के बारे में क्या कहें य़े तो अब हिस्ट्री हो गया है। देखिए पाकिस्तान ने 1955 में अमेरिका के साथ दो डिफेंस पैक्ट की थी सीटो एंड सेन्टो। ये मेजर डिफेंस पैक्ट था अमेरिका के साथ जो सोवियत यूनियन के बढ़ते प्रभाव को ध्यान में रख कर किया गया था। हमने एक आर्टिकल लिखा कि अमेरिका ने  पाकिस्तान पर बहुत तगड़ा इनवेस्टमेंट किया। पाकिस्तान को  1947 से 1955 के बीच अकेले जापान और जर्मनी को कुल मिलाकर  जो अमेरिकन मदद मिली थी  इससे कही ज्यादा मदद हासिल की थी। ये सोवियत यूनियन के खिलाफ था क्योंकि वो एक ब्लाक बन रहा था। पाकिस्तानी स्पेस प्रोग्राम तो अब्दुस सलाम जिनको को नोबल साइंस का प्राइज मिला फिजिक्स में। उनके साथ एक पोलिश स्क्वाड्रन लीडर भी थे जिनके पास जर्मनी का अनुभव भी था। तो इन्होंने मिलकर पाकिस्तान का स्पेस प्रोग्राम शुरु किया 1962 में जिसे अमेरिका के स्पेस एजेंसी नासा से खासी मदद मिल रही थी। फिर पाकिस्तान के साइंटिस्ट और तकनीशियन को अमेरिका प्रशिक्षण के लिए भेजा गया फिर वे वापस आए और फिर पाकिस्तान का स्पेस प्रोग्राम शुरू हुआ। 

  जहां तक भारत के स्पेस प्रोग्राम का सवाल है तो वो पाकिस्तान की तुलना में थोड़ी देर से शुरू हुआ था 1968 में जब उन्होंने राकेट बनाके भेजा पर वास्तव में भारत का स्पेस प्रोग्राम 1962 में शुरू हो गया था। फिर भी मैं थोड़ा सा पोलिटिकली कनेक्ट करूंगा पाकिस्तान को इंडिया से कि भी पाकिस्तान इंडिया से तकनीक के मामले में कोई 25 से 30 साल पीछे चल रहा है। इसकी वजह थी कि इंडिया के स्पेस प्रोग्राम पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक पर आधारित था जिसमें इंजीनियर्स से लेकर तकनीक तक सभी कुछ खुद ही विकसित किया हुआ था, जबकि पाकिस्तान के साथ ऐसा नहीं था वहां सभी कुछ  अमेरिका से आ रहा था।

दिनेश- अली साहब पाकिस्तान में सुपल्को ने स्पेस कार्यक्रम इंडिया से काफी पहले शुरू किया था और इंडिया से पहले लांच कर दिया था अपना राकेट।   फिर ऐसी क्या वजह हुई की पाकिस्तान के स्पेस प्रोग्राम को वो मकबूलियत हासिल न हो सकी जैसा कि उसे मिली चाहिए थी। 

अली चिस्ती-  जी इसकी एक खास वजह ये थी कि पाकिस्तान के साइंटिस्ट अब्दुस सलाम को पाकिस्तान मुसलमान ही नहीं मानता था।  पाकिस्तान ने उन्हें अहमदिया करार दिया गया।  दरअसल पाकिस्तान की सियासत में दीन का दखल शुरू से गहरे तक रहा है। पाकिस्तान की बुनियाद ही धर्म पर आधारित है। यहां कठमुल्लापन ने पाकिस्तान की तरक्की में बहुत ही बड़ी बाधा का काम किया । यदि वे प्रो. अब्दुस सलाम को साथ लेकर चलते तो न केवल स्पेस मिशन पाकिस्तान शायद और भी कई  मामलों मे काफी बेहतर जगह पर होता। जबकि भारत के सामने पाकिस्तान से कही पांच गुना ज्यादा बाधाएं थीं आजादी के समय। पाकिस्तान ने 6 सितंबर को वार स्टार्ट कर दिया था जिसे हम लोग पाकिस्तान में डिफेंस डे कहते हैं। कश्मीर में पाकिस्तान में अपने पैराट्रूपर उतार दिये थे। ऐतिहासिक रूप से ये तथ्य है कि ये पाकिस्तानी ही थे जिन्होंने भारत पर अटैक किया था ये यूथ डायरी में भी दर्ज है।  इसके अगेंस्ट इंडिया ने ईस्टर्न बार्डर पर किया और अयूब खान ने 1965 में भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को हल्के में ले लिया था क्योंकि उन्हें लगा था कि 1962 में चीन के साथ भारत के संघर्ष में भारत को पीछे हटना पड़ा था तो इन्हें लगा कि भारत तो कमजोर है पर इंडिया ने इस सोच के खिलाफ अपने को एक बार फिर मजबूत साबित किया। अयूब का फैसला 1965 में भारत से लड़ने का पूरी तरह नाकामयाब साबित हुआ और नतीजतन पाकिस्तान पूरी तरह से बैंकरप्ट हो गया। दिवालिया निकल गया उसका तो। 

फिर 1971 में तो पाकिस्तान आडियोलाजिकली डिस्ट्रायड।  हम बैंकरप्ट ही हो गए। फिर हम अफगानिस्तान से लड़ रहे थे। वी बिकेम हायर्ड गन फार अमेरिकन और तब इंडिया नान एलाएंड यानी निरपेक्ष रहा। आज जो आप इंडिया में जो तरक्की देखते हैं उसकी वजह है कि उसने 30 से 40 तक तो आयात बंद रखा। इंडिया में एम्बेसेडर कार चलती थी तो हम हंसते थे कि हमारे पाकिस्तान में शेवरले चला रहे हैं और वहां एम्बेसेडर पर आज हमें पता चला कि इंपोर्ट कंट्रोल जो रखी इंडिया ने उससे इंडिजिनस टेक्नॉलाजी को बढ़ावा मिला और तरक्की हुई।

दिनेश- जो आज हम डिजिटल आधार कार्ड आप इंडिया में देख रहे हैं उस तरह की कोशिश तो पाकिस्तान में बहुत पहले से हो गई थी पर उसके इम्पलीमेंटेशन में उसको लागू करने में क्या दिक्कत हुई थी। सिर्फ इतना ही नहीं और भी कुछ प्रयास पाकिस्तान में भारत से भी पहले हुए पर सफल नहीं हो पाये इसकी क्या वजह मानते हैं अली के चिस्ती साहब आप । 

अली चिस्ती – लॉट ऑफ गुड हेड हैपंड इन पाकिस्तान- आप की बात बिल्कुल सही है बहुत सी अच्छी बातें पाकिस्तान में हुई हैं भारत से पहले। बहुत अच्छी बात की आप ने । 1972 में पाकिस्तान ने आइडेंटिटी कार्ड प्रोग्राम शुरू किया था। जो नादरा है जो हमारा डेटा बेस है। जो मुशर्रफ के समय में 2000-2001 के दौरान इसे शुरू किया गया। देखिये पाकिस्तान में तीस से चालीस लाख अफगान शरणार्थी हैं। इसी तरह 20 लाख बंगाली हैं और बर्मी हैं कोई पांच लाख के करीब। अगर पाकिस्तान की आबादी पचीस करोड़ होगी तो इसें ढाई करोड़ लोग तो ऐसे हैं जिनका कोई रिकार्ड नहीं हैं। 

जाहिर है कि 1990 के बाद नरसिम्हाराव और मनमोहन सिंह जी की सरकारें आईं, इंडिया में लिबरलाइजेशन शुरू हुआ। डेमोक्रेटिक ट्रांजिशन इंडिया में रही । जो भी सरकारें आईं, अच्छी या बुरी तो जैसे वाजपेयी भी आए तो देवेगौड़ा भी आए। फिर जो आबादी भारत की अमेरिका या विदेशों में थी वे वापस इसी दौर में आईं और उन्होंने देश में अच्छा इनवेस्टमेंट भी किया जिससे देश में तरक्की की रफ्तार तेज हुई।  तो इंडिया की जो प्योरिटी है वो स्टेडी रही, रिफार्म हुए तो उनको लागू भी किय गया और वे सस्टेनेबल बनी रहीं।

अभी पिछले 9 से 10 सालों में जो हमने बीजेपी की सरकार में नेशनल सेक्यूरिटी पर जो काम किया है वो देखने लायक है क्यों कि नेशनल सेक्यूरिटी  ही मेरे जर्नलिस्जम का हिस्सा रहा है तो मैं तो कहता हूं खास कर 9-11 की जो घटना हुई इंडिया में तो एक तरह से इंडिया ने पाकिस्तान पर बहुत रहम किया मेरा मतलब यदि उस बखत इंडिया में बीजेपी की गवर्नमेंट होती तो हमारे खिलाफ फुल स्केल वार छिड़ गया होता। जाहिर है यदि सेक्युरिटी होगी तो ही तरक्की होगी और इनवेस्टर्स आएंगे। वन पार्ट आफ मोदीस गवर्नमेंट दैट आई लाइक इज कि उन्होंने सेक्युरिटी को तरजीह दी है।  मोदी सरकार की यही एक बहुत अच्छी बात हुई है कि इन्होंने नेशनल सेक्युरिटी को ही पहले नंबर पर प्रायोरिटी पर रखा। इसी से तरक्की के रास्ते खुलते हैं। 

दिनेश - थोड़ा सा हट के एक सवाल है कि चाहे वो डिक्टेटरशिप हो या फिर वो इलेक्टेड गवर्नमेंट हो। कोई अपने कंट्री को डिरेल नहीं करेगा। हो सकता है कि वे अपना काम ठीक से नहीं कर पा रहे हों पर पाकिस्तान के साथ ऐसा आखिर क्यों है कि वे किसी महत्वपूर्ण मामले में एक कदम आगे तो जाते हैं पर फिर दो कदम पीछे हो जाते हैं। क्या वहां पर अपनी योजना को ठीक से लागू करने के लायक काबिलियत की कमी है। और ये भी है कि आल द इलेक्टेड गवर्नमेंट लगभग हमेशा ही अपदस्थ कर दी गईं या तो सरकार के प्रमुख की हत्या कर दी गई या तो उन्हें फांसी दे दी गई आखिर पाकिस्तान के साथ ऐसा क्यो होता रहा है। 

अली चिस्ती – यू आर अबस्लूटली राइट राइट फ्राम इट्स इंसेप्शन जब से पाकिस्तान बना है तब ही से यहां ऐसी नौबत आती रही है। समझने की जरूरत है कि जिन्ना जिन्हें पाकिस्तान में कायदे आजम कहा जाता है वे कभी भी पाकिस्तान नहीं चाहते थे। ये सुनने में अजीब बात लग सकती है पर सच है। देखिये वो एक लॉयर थे, वकील थे और देखिये यदि एक लॉयर को एक हजार लेने होते हैं तो वो एक लाख रूपए की मांग करता है। तो पाकिस्तान वाज ए पोलिटिकल डिमांड इन 1946 जुलाई जिन्ना वाज टु साइन कैबिनेट मिशन प्लान टु फार्म द यूनाइटेड इंडिया,  तो पाकिस्तान की तो कोई बात ही नहीं थी। जिन्ना के दिमाग में कहीं उनकी प्रापर्टी थी।  उनके तो इंडिया में कितनी प्रापर्टी थी बाम्बे में तो उनका घर ही था। जिन्ना तो चाहते थे कि यूनाइटेड इंडिया प्लान। पर कांग्रेस इसके लिए राजी नहीं हुई और इसके बाद कोलकता में रायट्स हो गए और चीजें हाथ से निकल गई। डायरेक्ट एक्शन डे हो गया । इसके बाद ही पाकिस्तान वाज क्रियेटेड । बावजूद जिन्ना तो 1947 में भी कनाडा-अमेरिका टाइप  रिलेशनशिप । जिन्ना ने फिर नेहरू को खत भी लिखा कि उनके बाम्बे के घर को सुरक्षित रखा जाए और यदि किसी यूरोपियन को देना चाहें तो भी दे सकते हैं। आप तो जानते हैं वो तो ब्रिटिश राज का समय था और उन्हें एक बफर स्टेट चाहिए थी तो पाकिस्तान अलग करना ही था। 

इधर पाकिस्तान इनहेरिटेड अन आर्मी जिसमें पहले ब्रिटिश ही थे, कोलोनियल फोर्स थी। यदि आप पाकिस्तान के शुरुआती दिनों को देखें तो  जिन्ना की मौत 1948 में हो गई थी। फिर पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की हत्या कर दी गई।  आप यकीन करेंगे लियाकत अली का हत्यारा जो था वो आई बी एजेंट ऑफ पाकिस्तान और उस हत्यारे की पत्नी को बकायदा रहने के लिए घर दिया गया, यहां तक कि उन्हें पेंशन मिलती रही पाकिस्तान सरकार से। इसके बाद तो पाकिस्तान में अयूब खान ने बगावत की और 1954-55 में और फिर याहया खान, फिर जिया उल हक आए और यहां सरकारें पाकिस्तान में इसी तरह चलती रहीं।  निसंदेह जो आपका सवाल है वो सही है और नियतें जरूर सबकी सही होती हैं। फिर हाइब्रिड मॉडल आया प्रशासन में पाकिस्तान के यहां के प्रधानमंत्री और चीफ आफ स्टाफ सब बिजनेस मैन रहे। इस हाब्रिड मॉडल ने कहीं न कहीं पाकिस्तान को बहुत नुकसान पहुंचाया फिर यहां जो मुल्ला और मिलिटरी एलांयस रही । 

हम इंडिया के बारे में कहते हैं यार इंडिया में एक कोई घटना हो  जाती है मुसलमान के साथ तो मीडिया इतना बढ़ा चढ़ा कर बताते हैं। इंडिया की आबादी 130 करोड़ से ज्यादा है और एक इंसीडेंट हो गया तो हल्ला मचाते हैं। चलिए हम योगी आदित्य नाथ के बारे में बात करते हैं। उनकी पाकिस्तान में आलोचना करते हैं। मैं तो खुद यूपी का हूँ मेरे पुरखों का घर फतेहपुर सीकरी, मेरा ननिहाल मेरठ में है।  इवन इन पाकिस्तान आई फालो पोलिटिक्स ऑफ उत्तरप्रदेश। मेरी जड़ें तो वहां हैं।   बीइंग अन एनालिस्ट मैं कहूंगा कि योगी साहब जो हैं वे तो वहां कमाल के एडमिनिस्टर हैं पर उनके पहले जो यूपी के सीएम मुलायम सिंह यादव थे वो और उनका परिवार को करप्ट ऑफ द करप्ट रहा है।  उन्होंने यूपी के लिए क्या किया।  उन लोगों ने तो यूपी को तबाह ही कर दिया। यूपी जो कि जमीन और आबादी के लिहाज से भी पाकिस्तान से बड़ा है उसकी तो हालत खराब कर दी है। यूपी बिकम द वर्स्ट स्टेट टु बी गवर्न। उत्तरप्रदेश शासन करने के लिए सबसे खराब प्रदेश रह गया था। और जब से योगी आए हैं कम से कम वहां करप्शन तो कम हुआ है। हाइवे बन रहीं हैं। डिवेलपमेंट का काम हो रहा है। वहां सिक्युरिटी पर काम किया जा रहा है और जहां सिक्युरिटी होगी वहीं लोग इनवेस्ट भी करेंगे, विकास भी वहीं होगा।

देखिए साहब हमने भी इंडिया देखा है। वहां पर मुसलमानों के एक खास किस्म के तबके ने बदमाशी की है। बदमाशी से रहना सीखा है। आई आववेज से कि इंडिया गॉट फ्री सही मायनों में सिंस 2013 -14 । मैं हमेशा कहता हूं यदि आप मुझे इजाज़त दें कि हमारे बाप-दादा जो थे वे हमेशा कहते थे कि ये मेरी जमीन है,  हमारी जमीन है। हमें कहना ही चाहिए हमारी जमीन है। मैं इंडिया जाता हूं देखता हूं कि वहां मुस्लिम बहुत ही बैकवर्ड हैं। वहां लड़कियों को  पढ़ाना चाहिए। ट्रिपल तलाक का मसला है। यू कैन नाट लिव इन आइसोलेशन । जितना आप आइसोलेशन की तरफ आप जाएंगे उतना ही रिलीजियस फेनेटिसिज्म की ओर जाते जाएंगे। इंडियन मुसलिम को इंट्रास्पेक्ट करना चाहिए। ऐसे में इंडियन गवर्नमेंट इज राइट। सब के लिए इक्वल राइट और समान अधिकार की बात कर रही है।

दिनेश – मैं किसी लर्नेंट पाकिस्तानी से कई सालों से पूछना चाहता था कि एक ये है कि इंडिपेंडेंस डे मनाता है पाकिस्तान 14 अगस्त 1947 को और भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ तो वे इसे इंडिपेंडेंस डे के रूप में मनाते हैं जबकि पाकिस्तान को तो फाउंडेशन डे मनाना चाहिए क्योंकि पहले तो इंडिया वाज ए कंट्री जो ब्रिटिश सरकार से फ्री हुआ था जबकि पाकिस्तान तो इससे पहले कोई देश नहीं था तो उसे आजादी का दिवस मनाने की क्या जरूरत है।
 
अली चिस्ती- जी ये बात ही गलत है कि पाकिस्तान 14 अगस्त को बना। पाकिस्तान भी 15 अगस्त को बना था रात 12 बजे के बाद  लेकिन हमारे जो लियाकत अली खान और जो भी लोग फाउंडर  थे उनका कहना था कि हम इंडिया से एक दिन पहले आजादी का दिन मनाएंगे। पाकिस्तान वाज क्रियेटेड लाइक इज़राइल। देयर वाज नथिंग काल्ड पाकिस्तान विज वाज आक्यूपाइड बाय इनवेडर्स तो आप बिल्कुल ठीक कह रह हैं कि पाकिस्तान को इंडिपेंडेंस डे नहीं फाउंडेशन डे ही मनाना चाहिए। 

और एक बात देखिये कि पाकिस्तान में एक स्टेस्टिक्स बताऊं नेहरू और गफ्फार खान जो थे और हमारे मौलाना आज़ाद थे दे वेंट जेल फार इयर्स और जिन्ना साहब ने एक दिन भी जेल में नहीं गुजारे इससे क्या साबित होता है कुछ तो था जो गलत था। कौन किसके लिए काम कर रहा था। इसका मतलब है द होल फाउंडेशन इज ए लाय। 

दिनेश – एक और बात पूछना चाहता था भले वो पाकिस्तानियों को बुरा लगे। पाकिस्तान वाज एन इंटिगरल पार्ट ऑफ इंडिया जिसमें लाहोर, करांची, इस्लामाबाद सब और जब इंडिया में अफगानिस्तान की तरफ से इनवेडर्स आये थे .. महमूद गजनबी, गौरी सब तो वाय डस पाकिस्तान नेम देयर मिसाइल गौरी एंड गजनबी। क्यों जिन लोगों ने हम पर अटैक किया उनके नाम से क्यों ... बाबर का समझ में आता है..
 

अली चिस्ती- थैंक्स टु गाड दैट माय फैमिली इस लिबरल। वी आलवेज थाट गौरी और गजनबी वेयर इनवेडर्स और वे चोर और डकैत थे। हमारे यहां न कुरिकुलम में पढ़ाया जाता है कि गजनबी ने सोमनाथ का मंदिर तोड़ा । पहली बात है कि किसी के भी इबादतगाह को टच करना तो एथिकली गलत बात है। यहां तो पढ़ाया जाता है। आप एक तरह से अपने बच्चों को ही एक तरह से इनडाक्ट्रिनेट कर रहे हैं ये कह कर कि एक मुसलमान के बराबर दस हिन्दु .. ये सब क्या है। और सोमनाथ का मंदिर इसलिये तोड़ा होगा कि उसमें  सोना था। जिस अमाउंट में सोना था वही लूटना उनका मकसद था जैसे साउथ के मंदिरों में अभी भी हैं।  

हमारे यहां तो प्रो.अब्दुस सलाम को गैर मुसलमान कह देते हैं काफिर कह देते हैं। एनी बड़ी हू इज पीस लविंग इस कंसिडर्ड वीक। जो कोई भी शांति की पहल करता है उसे यहां कमजोर समझा और समझाया जाता है। अब आपके हीरोज ही गजनबी और गौरी किस्म के लोग हैं  तो ये तो आपकी मानसिकता को जाहिर करता है। देखिये मैं एक देशभक्त पाकिस्तानी हूँ।  मतलब मुझे ये जो मिसाइल और सारी चीजें रखनी तो ये क्या है।

दिनेश – अली साहब एक बात हो रही है कि इंडिया कोई मून में नहीं पहुंचा वो तो एआई आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के मार्फत वीडियो बनाकर सारा झूठ फैलाया जा रहा है तो इस तरह का पाकिस्तान में स्टेट ऑफ डिनायल क्यों। इंडिया की कामयाबी को आखिर नकारा क्यों  जाता है।

अली चिस्ती- देखिए स्टेट ऑफ डिनायल तो 1965 में भी था कि कश्मीर में लोग उतार देंगे और कश्मीर आजाद करा देंगे। स्टेट ऑफ डिनायल तो बांगलादेश के समय भी था। कारगिल में भी स्टेट ऑफ डिनायल था। टेरेरिज्म में भी स्टेट ऑफ डिनायल था कि वे तो टीटीपी तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान है वे उसके लोग हैं वे तो इंडियन एजेंट हैं। तो भई मेरा कहना है कि वे इंडियन थे तो एक जहाज लाते बी-52 बाम्बर और वहां कार्पेट बांबिंग करवा देते किस्सा ही खत्म हो जाता।

यानी हर वो चीज जो पाकिस्तान में बुरी होती है वो या तो इंडिया करवाता है, अफगानिस्तान करवाता है या इजराइल करवाता है। जो अच्छा होता है वो पाकिस्तान आर्मी करवाती है। वे सब लो आई क्यू के लोग हैं जो इस तरह की बात करते हैं। 

हम तो शुरू से कह रहे थे जो पांच फीसदी लोग थे । जब आप टेररिस्ट पालोगे तो वे तो आप ही के पास आएंगे। बहुत बाद में समझे, समझ तो पहले भी रहे थे जब पता चला कि कई मोर्चों पर पिट रहे हैं तो लगा कि बहुत सी पासिसी हमारी गलत थीं तो फिर उन्हें छोड़ा गया। 

आई थिंक पाकिस्तान में 80 से 90 फीसदी लोग इंडिया को प्रेज करते हैं तारीफ करते हैं। इस समय इमरान खान के आने के बाद लोगों की आंखें खुली हैं। एक्चुअल में तो यहां पंजाबी ही तो लोग पाकिस्तान में राज कर रहे हैं वे ही हैं जिनकी आबादी 65 फीसदी है। तो अब लग रहा है कि जो पालिसी गलत है उसे छोड़ते हैं। 

इकॉनामी भी देख लीजिए कार यहां 27 लाख 50 हजार में  कारें मिलती हैं जो इंडिया में ढाई लाख रुपये मिल जाती हैं। अब ऐसे में देखिए कौन कश्मीरी इस इकॉनामी में आना चाहेगा। जो हैं यहां वे ही पाकिस्तान से माइग्रेट कर रहे हैं ये सचाई है। 

और जब प्रो अब्दुस सलाम ने अपना नोबेल प्राइज भारत आकर अपने गुरु प्रो गांगुली कर गले मे डाल दिया....

सन 1979 में पाकिस्तान के भौतिकविद डॉक्टर अब्दुस सलाम ने नोबेल प्राइज़ जीतने के बाद भारत सरकार से रिक्वेस्ट की कि उनके गुरु प्रोफ़ेसर अनिलेंद्र गांगुली को खोजने में उनकी मदद करे। प्रोफ़ेसर अनिलेंद्र गांगुली ने डॉक्टर अब्दुस सलाम को लाहौर के सनातन धर्म कॉलेज में गणित पढ़ाया था। प्रोफ़ेसर अनिलेंद्र गांगुली को खोजने के लिए डॉक्टर अब्दुस सलाम को 2 साल का इंतजार करना पड़ा और फ़ाइनली 19 जनवरी 1981 को कलकत्ता में उनकी मुलाकात प्रोफ़ेसर गांगुली से हुई।
 
प्रोफ़ेसर गांगुली विभाजन के पश्चात लाहौर छोड़कर कलकत्ता में शिफ्ट हो गए थे। जब डॉक्टर अब्दुस सलाम प्रोफ़ेसर गांगुली से मिलने उनके घर पहुंचे तो देखा कि वे बहुत वृद्ध और कमज़ोर हो चुके थे। यहाँ तक कि उठ कर बैठ भी नहीं सकते थे। उनसे मिलकर डॉक्टर अब्दुस सलाम ने अपना नोबेल मेडल निकाला और उनको देते हुए कहा कि सर यह मेडल आपकी टीचिंग और आप द्वारा मेरे अंदर भरे गए गणित के प्रति प्रेम का परिणाम है।
 
अब्दुस सलाम ने वह मेडल गांगुली के गले में डाल दिया और कहा सर यह आपका प्राइज़ है, मेरा नहीं। पाकिस्तान के भौतिकविद इस जेस्चर ने बताया कि भले ही देश विभाजित हो गया था लेकिन उसके मूल्य और उसकी आत्मा ज़िंदा थी। किसी भी विभाजित सीमा के पार जाकर अपने गुरु को इस तरह से ट्रिब्यूट देना बताता है कि यही वह सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार है जो एक गुरु अपने शिष्य से अपेक्षा कर सकता है।
 
लेकिन प्रोफेसर अब्दुस को पाकिस्तान में खूब प्रताड़ित किया गया क्योंकि वह अहमदिया यानी कादियानी थे उनके ऊपर कई बार हमले हुए यहां तक की पाकिस्तान ने उन्हें पाकिस्तानी मानने से इनकार कर दिया। जीते जी तो छोड़िए मरने के बाद भी उन्हें प्रताड़ित किया गया और उनके कब्र पर लिखी शिलापट को पाकिस्तान सरकार के आदेश से हटवा दिया गया क्योंकि पाकिस्तान सरकार और पाकिस्तान की लोगों में उनका गुनाह यह था कि वह अहमदिया मुस्लिम थे।