• 28 Apr, 2025

एनडीए की सरकार, इंडया ब्लाक की बड़ी सफलता भी

एनडीए की सरकार, इंडया ब्लाक की बड़ी सफलता भी

● एनडीए का हैट्रिकः नायडू और नीतीश का साथ मिला ● भाजपा ने अयोध्या समेत हिंदी पट्टी की 67 सीटें गवांई, दक्षिण में नए दरवाजे खुले ● स्थानीय मुद्दे हावी रहे जिससे क्षेत्रीय दलों को हुआ लाभ ● शेयर बाजार में भारी गिरावट दिखी

नई दिल्ली।  नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार एनडीए को बहुमत हासिल हुआ यह 62 साल बाद हो पाया। इस आम चुनाव में पीएम मोदी 1.52 लाख तो गृहमंत्री रहे अमित शाह लगभग साढ़े सात लाख मतों से चुनाव जीते।  वहीं कांग्रेस के नेता राहुल गांधी जिन्होंने वायनाड और रायबरेली दोनो जगहों से पर्चा भरा था वे दोनो ही जगहों पर तीन लाख से भी अधिक वोटो से विजयी रहे। वहीं एनडीए ने इस बार मप्र, दिल्ली, हिमाचल, उत्तराखंड, अरुणाचल और त्रिपुरा में लोकसभा की सभी सीटें जीतीं । 2029 में एनडीए ने 8 राज्यों में क्लीन स्वीप किया था। वहीं इससे पहले की एनडीए सरकार के 50 में से 37 केन्द्रीय मंत्री फिर से चुनाव जीत कर आ गए हैं। इधर इस बार के  आम चुनाव में किसी भी पार्टी का रुख नहीं करने वाले मतदाताओं ने नोटा में 2.18 लाख वोट डाले, इसी का पिछला 2019 का रिकार्ड कुल 51,660 का ही था।

  • एनडीए का हैट्रिकः नायडू और नीतीश का साथ मिला --

देशभर के कुल 64 करोड़ वोटर ने लगातार तीसरी बार बहुमत तो बेशक एनडीए को दिया लेकिन पू्र्वानुमान करते स्वयंभू चैनलों की एक्जिट पोल की पोल खोलकर रख दी। मतदाताओं के रुख ने इंडिया गठबंधन में भी नई जान फूंक दी। डॉ मनमोहन सिंह की दो बार की गठबंधन सरकार के बाद देश में एक बार फिर गठबंधन की सरकार होगी क्योंकि भाजपा अकेले के दम पर जरूरी बहुमत के आंकड़े से पीछे है।  यूपी में राहुल गांधी और अखिलेश यादव और पं बंगाल में ममता बेनर्जी ने भाजपा के विजय रथ के पहिए रोक दिये थे। इन सभी की तगड़ी मोर्चेबंदी ने इंडिया ब्लाक का वोट शेयर 13 फीसदी तर उछाल दिया।

     एनडीए को एक बार फिर बहुमत मिल तो गया है पर भाजपा इस बार फकत 240 सीटों पर ही अटक गई। कुल 543 सीटों की लोकसभा में बहुमत के लिए 272 सीटों की जरूरत होती है इसी स्थिति में अब 16 सीटें जीतने वाली चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी और नीतीश कुमार की पार्टी जद यू जिसने 12  सीटें हासिल की हैं किंगमेकर की भूमिका में आ गई हैं।  इन सहयोगी दलों के साथ भाजपा लगातार तीसरी बार केन्द्र की सत्ता सम्हालने जा रही है। मोदी मंगलवार चार जून की रात 8 बजे भाजपा मुख्यालय पहुंचे और कार्यकर्ताओं की हौसला अफजाई की । मोदी ने यहां खास  तौर पर ओडिशा का जिक्र किया जहां की एक समय की मजबूत रही आई पार्टी बीजद ( बीजू जनता दल) का सफाया करते हुए कुल 21 में से 20 सीटें हासिल करने में कामयाबी पायी।

    दूसरी ओर इंडिया ब्लाक ने तमाम तरह के एक्जिट पोल्स के दावों को नकारते हुए यूपी, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे राज्यों में उम्मीद से कहीं ज्यादा बेहतर प्रदर्शन करके देश को चौका दिया। राहुल गांधी ने कहा कि पार्टी ने विपरीत परिस्थितियों में चुनाव लड़ा है। उन्होंने एक बार फिर अडाणी पर हमला बोला,इस बीच अटकलों का दौर चलता रहा  कि कांग्रेस सरकार बनाने के लिए नीतीश कुमार ओर चंद्रबाबू नायडू से सम्पर्क साध रही है।

    वहीं  नायडू ने कहा कि आंध्र की जनता ने हमारे गठबंधन पर भरोसा करके हमें यह बड़ी जीत दिलाई है। हम एनडीए के साथ हैं वहीं जदयू के नेता के.सी. त्यागी ने कहा कि चुनाव पूर्व एनडीए को लेकर हमारा जो कमिटमेंट था वो अभी भी कायम है।  वहीं पीएम रहे नरेन्द्र मोदी ने नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू को फोन कर एनडीए की बैठक में शामिल होने का  न्यौता दिया। इससे पहले केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष  जे.पी. नड्डा और राजनाथ सिंह समेत अनेक वरिष्ठ नेता देर रात तक बैठकें करते रहे। 
 

  • स्थानीय मुद्दे हावी रहे जिससे क्षेत्रीय दलों को हुआ लाभ

अब की बार 400  पार का नारा भले ही सही साबित नहीं हो सका लगातार दस साल तक सत्ता में रहने के बाद भी भाजपा का वोट शेयर एक फीसदी भी कम नहीं हुआ। इधर कांग्रेस के सफाये का प्रचार भी गलत साबित हुआ और वह भी अपने नए सहयोगी दलों के साथ मिलकर कहीं ज्यादा मजबूती से उभर कर सामने आई।

  • एनडीए क्यों पिछड़ गया आखिर ---
     
  • एक तो पूरे चुनाव में स्थानीय मुद्दे हावी रहे जिससे क्षेत्रीय दल मजबूत हुए , चुनाव के हर चरण में भाजपा नरेटिव बदलती रही। 
  • पूरी पार्टी मोदी के भरोसे बहुमत जुटाने  में रह गई जबकि कई बार स्वयं मोदी कह चुके थे कि केवल मेरे भरोसे न रहें स्थानीय नेता जनसंपर्क करें। 
  • टारगेट पर कांग्रेस को ही रखा और उसी पर हमला करती रही जबकि असली मुकाबला कई जगहों पर क्षेत्रीय दलों से भी था। 
  • उप्र में अगड़ों की नाराजगी और  महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी को तोड़ना भी भाजपा के खिलाफ ही गया। 
  • किसानों की नाराजगी दूर नहीं कर पाए,इसी से हरियाणा और पंजाब में बड़े नुकसान से खामियाजा भुगतना पड़ा। 
  • कई स्थानों पर पार्टी ने प्रत्याशी चयन में चूक की । 
  • आरक्षण का कोई विकल्प नहीं खोज पाने के कारण अनुसूचित जाति की 18, अनुसूचित जनजाति की 6 सीटो का नुकसान हुआ। 

इंडिया ब्लाक कैसे चमका -

  • कांग्रेस और सपा ने उम्मीदवारों का ऐलान दबाव में नहीं किया।
  • बेरोजगारी , संविधान और आरक्षण को बनाया मुद्दा , कई राज्यों में  इसका लाभ भी मिला।
  • नीतीश कुमार के जदयू और जयंत चौधरी के रालोद की विदाई के बाद इंडिया ब्लाक ने खुद को बिखरने से बचा लिया। 
  • जिन राज्यों में सीटों क बटवारे से फायदा होना था वहां किया और जहां अलग रहने में भलाई थी वहां दूरी बना ली। पंजाब, बंगाल और केरल में इंडिया ब्लाक ने यही रणनीति अपनाई थी।
  • बंगाल में तृणमूल का कांग्रेस और वामदलों के बीच गठबंधन नहीं रहने  से भाजपा बनाम आल की स्थिति नहीं बन पायी। 
  • कांग्रेस ने गठबंधन में बिग ब्रदर का रवैया अपनाने से सोचा समझा परहेज किया। महाराष्ट्र यूपी और बिहार में कांग्रेस ने प्रदेश इकाइयों की नाराजगी झेलते हुए सीटों का बटवारा किया।
  • भाजपा ने अयोध्या समेत हिंदी पट्टी की 67 सीटें गवांई, दक्षिण में नए दरवाजे खुले- हिंदी पट्टी की 205  सीटों में 127 सीटें ही जीत पाई भाजपा जबकि 2019 में 197 सीटें जीती थीं।
  • उत्तरप्रदेश - 80 में से 41 सीटें सपा और कांग्रेस ने जीत लीं। कुल 80 सीटों में 37 सीटें सपा , 33 भाजपा, 6 कांग्रेस , 2 रालोद, एक-एक अपना दल और आजद समाज पार्टी को मिलीं। भादपा को 29 सीटें घट गईं। सपा को 32 सीटें बढ गईं।

ये सब कैसे हुआ - एक तो राम मंदिर का नरेटिव जिस तरह के लाभ को नजर में रख कर  फैलाया गया था वह फेल हो गया। भाजपा फैजाबाद ( अयोध्या इसी में है) सीट ही 54 हजार से ज्यादा सीटों से हार गई।  भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर 43 फीसदी और (132) सांसदों के टिकिट काटे थे जबकि यूपी में 11 फीसदी यानी (7) के ही। बसपा का 80 से 90 फीसदी वोट इंडिया ब्लाक को मिला।

  • राजस्थान- 25 में से 14 सीटें भाजपा को 8 कांग्रेस ने छीनीं- 25 सीटों मं 14 भाजपा को मिलीं,कांग्रेस को 8 और फिर बची एक-एक रालोप, पीएपी और माकपा ने लीं। 2029 में भाजपा ने यहां 24 जीती थीं। बची एक भी सहयोगी पार्टी की ही थी।

कैसे हुआ -   जातियों की राजनीति ने भाजपा का गणित खराब कर दिया। आरक्षण को लेकर एससी-एसटी में नाराजगी थी। जाट-राजपूतों में गुस्सा था। गुर्जर -मीणा एक हो गए। भाजपा का वोट शयर 60 प्रतिशत से कम होकर 49 प्रतिशत पर आ गया।

  • हरियाणा- 10 में से 5 ही सीटें बचा पाई भाजपा,पांच छीनीं- भाजपा और कांग्रेस को इस प्रदेश में पांच -पांच सीटें ही मिली हैं। 2019 में भाजपा ने सभी 10 सीटें जीत ली थीं।

कैसे हुआ- किसान आंदोलन , एंटी इनकंबेंसी और पहलवानों के विद्रोह का असर होने से भाजपा को अपनी आधी सीटें गवानी पड़ीं।

  • बिहार- जदयू के  साथ से भाजपा बड़े झटके से बच गई,इंडिया का वोट शेयर 9 फीसदी बढ़ा और सीटें 7 लीं- कुल 40 सीटों में 12 जदयू, 12 भाजपा,5 लोजपा, 4 राजद, 3 कांग्रेस,2 सीपीआई (एमएल), 1-1 हम और निर्दलीय को। 2019 में भाजपा को 17 मिली थीं। जदयू-16,  लोजपा-6 और एक कांग्रेस ने जीती थी।  

कैसे हुआ- इंडिया का वोट शेयर 9 प्रतिशत बढ़ गया, एनडीए का 2 फीसदी कम हो गया। चुनाव से पहले जदयू को साथ लाकर भाजपा बड़े नुकसान से बच गई।

  • उत्तर-पूर्व- यहां के 8 राज्यों में कुल 25 सीटों में से 13 भाजपा और 7 कांग्रेस ने जीत लीं। मणिपुर में भाजपा के हाथ से दोनों सीटें चली गईं। वजह थी मणिपुर की हिंसा पर सुप्त बने रहना।  
  • बंगाल-   भाजपा की 6 सीटें घटीं, तृणमूल की 7 बढ़ीं जबकि वोट शेयर में 2 फीसदी का ही अंतर है- कुल 42 सीटों में से 29 पर दीदी का दबदबा बना रहा। भाजपा कुल 12 सीटों पर ही सिमट गई। कांग्रेस को एक सीट हासिल हो सकी। जबकि 2019 में भाजपा -18 , टीएमसी की 22 सीटें थीं।  क्या हुआ- भाजपा का वोट शेयर करीब 2 फीसदी कम हो गया वहीं तृणमूल का 2 फीसदी बढ़ गया। संदेश खाली का मुद्दा बेअसर रहा। इंडिया गठबंधन का हिस्सा होकर भी कांग्रेस से अलग हो कर लड़ने से ममता बेनर्जी को लाभ हुआ।
  • महाराष्ट्र- शिवसेना -एनसीपी टूटने से कांग्रेस को लाभ, भाजपा को बड़ा नुकसान- 48 सीटों में 10 भाजपा, 13 कांग्रेस, 9 शिवसेना (उद्धव) , 7 शिवसेना(शिंदे) , 7 एनसीपी (शरद), 1-एनसीपी ( अजित पवार) व एक सीट निर्दलीय ने जीती। 2019  में 23 भाजपा , 18 शिवसेना और 4 एनसीपी की थीं।  कैसे हुआ- असली -नकली की लड़ाई में शरद और उध्दव की पार्टियां खरी साबित हुईं। इसका सबसे बड़ा लाभ कांग्रेस को हुआ। महज 17 प्रतिशत वोट लेकर कांग्रेस वहां सबसे ज्यादा सीटें जीत गई। वहीं सबसे बड़े वोट शेयर 26 फीसदी के बाद भी भाजपा 13 सीटें गवा कर 10 पर आकर ठहर गई।
  • दक्षिण- केरल में भाजपा का प्रवेश, तेलंगाना में दोगुनी, आंध्र में तीन सीटें... तो कर्नाटक में 8 गवा दी- यहां की कुल 129 सीटों में भाजपा को 29 सीटें ही मिलीं वहीं कांग्रेस को 40 सीटें। तमिलनाडु में 29 में से 22 द्रमुक ने, 9 कांग्रेस ने जीती। कर्नाटक में 28 में से 17 भाजपा,9 कांग्रेस,2 जेडीएस को मिली। आंध्रप्रदेश में 25 में से 16 टीडीपी, 4 वाईएसआर नायडू को और भाजपा को 3 सीटें मिलीं। तेलंगाना- में भाजपा और कांग्रेस को 8-8 सीटें मिलीं। 

कैसे हुआ- आंध्र में टीडीपी से गठबंधन से भाजपा को फायदा हुआ। केरल में चर्चित चेहरे गोपी ने भाजपा का खाता खुलवाया। तेलंगानामें  बीआरएस का वोट भाजपा को जाने से उसकी सीटें 4 से बढ़कर 8 हो गईं। तमिलनाडु में भाजपा को सीटें नहीं मिलीं पर वोट शेयर जरूर बढ़ गया।