स्वराज करुण
हरि ठाकुर जी हिन्दी और छत्तीसगढ़ी के श्रेष्ठ कवि तो वह थे ही, छत्तीसगढ़ के पौराणिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, साहित्यिक और राजनीतिक इतिहास के भी वह गहन अध्येता और लेखक थे। राज्य निर्माण आंदोलन के लिए सर्वदलीय मंच के संयोजक के रूप में उनकी यादगार भूमिका थी।
देश और समाज की बेहतरी के लिए एक साथ कई भूमिकाओं का निर्वहन कर 2001 में दुनिया छोड़ गए हरि ठाकुर ने अपनी 74 साल की जिन्दगी में कई सार्वजनिक जिम्मेदारियों को बखूबी संभाला। आम जनता के जीवन के सुख-दु:ख को शब्द देने वाले मया, पीरा के गीतकार और किसानों, मजदूरों और सामान्य मनुष्यों के जीवन संघर्षों को अभिव्यक्ति देने वाले कवि के रूप में समाज में उनकी एक खास पहचान थी।
वर्ष 1956 में छत्तीसगढ़ के छह युवा कवियों द्वारा परस्पर सहयोग से अपना एक संयुक्त काव्य संग्रह 'नये स्वर' का प्रकाशन उस जमाने में इस अंचल के साहित्यिक इतिहास में एक बड़ी महत्वपूर्ण घटना थी। इस संग्रह के कवि थे-हरि ठाकुर, गुरुदेव काश्यप चौबे, सतीशचन्द्र चौबे, नारायणलाल परमार, ललित मोहन श्रीवास्तव और देवीप्रसाद वर्मा 'बच्चू जांजगीरी'। लेखक सहकारी संघ के बैनर पर छपे इस काव्य संग्रह के प्रथम कवि हरि ठाकुर थे।
इस काव्य संग्रह में शामिल उनके एक गीत में कवि हॄदय में उमड़ती-घुमड़ती भावनाएं इस तरह प्रकट होती हैं-
अंगारों के हाथ न सौंपो फूलों के संसार को।
लहरों के यौवन को बाँधों मन के मीठे तार से,
अरमानों का आँगन भर दो पायल की झंकार से
आज हवाओं के पाँवों में बारूदी जंजीर है
संगीनों की झंकारों में कैद पड़ी मंजीर है।
नीर भरी सपनों की आँखें, पीर भरी हर रात है
धरती के धानी आँचल में लोहू की बरसात है।
तलवारों के हाथ न सौंपो जीने के अधिकार को
अंगारों के हाथ न सौंपो फूलों के संसार को।
हिन्दी और छत्तीसगढ़ी में उनकी 30 से ज्यादा किताबें छपीं, जिनमे कविता संग्रह-लोहे का नगर, नये विश्वास के बादल, गीतों के शिलालेख, जय छत्तीसगढ़, हँसी एक नाव सी, धान के कटोरा, सुरता के चन्दन और खण्ड काव्य शहीद वीर नारायण सिंह भी शामिल हैं। इतिहास केन्द्रित कई महत्वपूर्ण शोध आलेख और ग्रन्थ भी उन्होंने लिखे। इनमें छत्तीसगढ़ का प्रारंभिक इतिहास और छत्तीसगढ़ गौरव गाथा उल्लेखनीय हैं। इनमें से 'छत्तीसगढ़ गौरव गाथा' का प्रकाशन वर्ष 2003 में हुआ। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान छत्तीसगढ़ के तत्कालीन रायपुर जिले के ग्राम तमोरा (तहसील-महासमुन्द) में सितम्बर 1930 में अंग्रेजों के जंगल कानून को तोडऩे के लिए ग्रामीणों ने संगठित होकर 'जंगल सत्याग्रह' किया था। (सत्याग्रह की रिपोर्ट ठाकुर प्यारेलाल सिंह, पं. भगवती प्रसाद मिश्र, मौलाना अब्दुर्र रऊफ खां और यती यतनलाल जी ने वहां के गांवों का प्रत्यक्ष अवलोकन कर, ग्रामीणों के बयान दर्ज कर तैयार किया था।) हरि ठाकुर इस सत्याग्रह के इतिहास से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने 'तमोरा सत्याग्रह' शीर्षक से हिन्दी में एक नाटक लिखा। उनका लिखा एक अन्य नाटक है 'परबुधिया', जो छत्तीसगढ़ी में है। दोनों नाटक स्वर्गीय डॉ. राजेन्द्र सोनी द्वारा सम्पादित साहित्यिक पत्रिका 'पहचान यात्रा' के हरि ठाकुर विशेषांक में वर्ष 2002 में प्रकाशित हुए हैं।
लगभग पाँच दशक पहले छत्तीसगढ़ी भाषा में बनी दूसरी फीचर फिल्म 'घर द्वार' में हरि ठाकुर के लिखे गीत काफी लोकप्रिय हुए। जमाल सेन के संगीत निर्देशन में इन गीतों को मोहम्मद रफी और सुमन कल्याणपुर ने स्वर दिया था। 'गोंदा फुल गे मोर राजा, गोंदा फुल गे मोर बैरी, 'सुन-सुन मोर मया पीरा के संगवारी रे और 'झन मारो गुलेल, झन मारो गुलेल को लोग आज भी गुनगुनाते हैं।
हरि ठाकुर छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता सेनानी, श्रमिक नेता ठाकुर प्यारेलाल सिंह के सुपुत्र थे। लिहाजा लोकहित और देश हित का जज्बा उन्हें स्वाभाविक रूप से विरासत में मिला था। उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया। आजादी के बाद 1955 में गोवा मुक्ति आंदोलन में भी शामिल हुए। वे 15 अगस्त को पोर्तगीज पुलिस की कैद में थे।
आचार्य विनोबा भावे के सर्वोदय और भूदान आंदोलन से भी वह प्रभावित थे। हरि ठाकुर 1955 में नागपुर से प्रकाशित भूदान आंदोलन की पत्रिका 'साम्य योग' के सम्पादक भी रहे।
डॉ. खूबचन्द बघेल ने वर्ष 1956 में राजनांदगांव में छत्तीसगढ़ी महासभा का गठन करते हुए छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन की बुनियाद रखी। उन्होंने हरि ठाकुर को महासभा के संयुक्त सचिव नियुक्त किया।
अपने गृह नगर रायपुर में उन्होंने वर्ष 1966 में पिता ठाकुर प्यारेलाल सिंह के समाचार पत्र साप्ताहिक 'राष्ट्रबन्धु' के सम्पादन और प्रकाशन का दायित्व संभाला। इस साप्ताहिक का प्रकाशन वर्ष 1950 में शुरू किया गया था। हरि ठाकुर 1978 तक उसका सम्पादन और प्रकाशन करते रहे। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन को गति देने के लिए वर्ष 1992 में रायपुर में उनके घर में प्रबुद्धजनों की बैठक हुई, जिसमें सर्वदलीय मंच बनाने का निर्णय लिया गया। हरि ठाकुर इस मंच के संयोजक बनाए और उन्हें अध्यक्ष मंडल में भी शामिल किया गया।
उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर में शोध कार्य भी हुआ है। हरि ठाकुर वर्ष 1965-66 में छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य सम्मेलन के भी अध्यक्ष रहे। उन्होंने वर्ष 1965 में साहित्यिक पत्रिका 'संज्ञा' का भी सम्पादन किया। रायपुर में 3 दिसम्बर 2001 को उनके निधन हो गया।