रायपुर । देश के शीर्ष साहित्यकार राजधानी रायपुर निवासी श्री विनोद कुमार शुक्ल को साहित्य अकादमी ने शुक्रवार 23 अगस्त को अपने सर्वोच्च सम्मान - महत्तर सदस्यता से विभूषित किया। अकादमी के सर्वोच्च सम्मान की घोषणा 2021 में की गई थी लेकिन स्वास्थगत कारणों से उन्हे यह सम्मान नहीं दिया जा
सका था। शुक्रवार को ही श्री शुक्ल के रायपुर स्थित आवास पर संक्षिप्त पुरस्कार अलंकरण समारोह हुआ जिसमें साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक और सचिव श्रीनिवास राव ने उन्हे अकादमी की महत्तर सदस्यता प्रदान की ।
भारत में साहित्य अकादमी का यह सबसे बड़ा सम्मान है। वहीं एशिया में इस सम्मान को पाने वाले वे पहले साहित्यकार हैं। इस मौके पर श्री शुक्ल ने कहा इस सम्मान को मेरे घर आकर देने के लिए मैं साहित्य अकादमी का आभार प्रकट करता हूंँ। उन्होंने कहा कि उन्होंने कभी उम्मीद नही की थी कि इतना बड़ा सम्मान उन्हें प्राप्त होगा। पुरस्कार के लिए विनोद कुमार शुक्ल को चुनने वालों में लेखक संगीतकार
अमित चौधरी, ईरानी -अमेरिकी पत्रकार रोका हाकाकियन और इथोपियाई अमेरिकी लेखिका माजा मेगिस्टे थे। इस पैनल ने कहा कि श्री शुक्ल के पद्य और गद्य में सूक्ष्म और अनचीन्ही चीजों का अवलोकन है। उनके लेखन में जो आवाज सुनाई पड़ती है वह एक गहरे बुध्दिमत्ता वाले चितेरे की है। गोया दिन में
सपने देखने वाला एक व्यक्ति जो बीच-बीच मे हठात चकित हो उठता है।
रचनात्मक यात्रा-
एक जनवरी 1937 को राजनांदगांव छत्तीसगढ़ में जन्में शुक्ल ने कविता संग्रह लगभग जयहिन्द से अपनी रचनात्मक यात्रा की शुरुआत की थी। उन्होंने - वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह, - सब कुछ होना बचा रहेगा और कविता से लंबी कविता सहित आकाश धरती को खटखटाता है जैसी कविताएं लिखीं। गद्य मे उन्होंने -नौकर की कमीज, खिलेगा तो देखेंगे और दीवार में एक खिड़की रहती थी जैसे उपन्यास लिखे जो हिन्दी के श्रेष्ठ
- उपन्यासों में शुमार हैं। उनके कहानी संग्रह - पेड़ पर कमरा औऱ महाविद्यालय भी चर्चित रहे हैं।
- उनके उपन्यास नौकर की कमीज पर जानेमाने फिल्मकार मणि कौल ने एक फिल्म भी बनाई थी।
शुक्ल कविता व गल्प का अद्मुत संयोग रचने वाले सर्जक हैं- श्रीनिवास राव
उनके सम्मान के अवसर पर साहित्य अकादमी के सचिव श्रीनिवास राव प्रशस्ति पाठ करते हुए कहा- विनोद कुमार शुक्ल कविता और गल्प का अद्मुत संयोग रचने वाले सर्जक हैं। यह संयोग कुछ ऐसा होता है
कि विधाओं की सीमा का अतिव्यापन सा हो जाता है। अपरिग्रह का अभ्यासी यह रचनाकार अभिव्यक्ति कला और शब्द -शक्तियों का ऐसा अपूर्व अन्वेषण करता है कि रचना रहस्य लीला सी लगने लगती है। उन्होंने कहा कि स्थानिकता का वैश्विकता से क्या रिश्ता है यह विनोद कुमार शुक्ल की रचनाओं को पढ़कर जााना जा सकता है। दुनियाभर के आदिवासी इन दिनों जल जंगल और जमीन से विस्थापन के संकट से गुजर रहे हैं ऐसे में विनोद कुमार शुक्ल जी की कविताएं भरपूर स्थानिक और विशद वैश्विक एक साथ ही हैं।
- कई सम्मान और पुरस्कार -
कविता और उपन्यास लेखन के लिए गजानन माधव मुक्तिबोध फैलोशिप,रजा पुरस्कार, वीरसिंह देव पुरस्कार, सृजन भारती सम्मान, रधुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार, दयावती मोदी कवि शिखर सम्मान, भवानी प्रसाद मिश्र पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान,पं सुंदरलाल शर्मा पुरस्कार जैसे अनेक पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके विनोद कुमार शुक्ल को उपन्यास दीवार में एक खिड़की रहती थी के लिए वर्ष 1999 के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिल चुका है । हाल के वर्षों में उन्हें मातृभूमि बुक ऑफ द ईयर अवार्ड भी दिया गया है। पिछले ही साल उन्हें पेन अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय ख्याति के लिए नाबोकॉव अवार्ड से सम्मानित किया था।
- अपनी तरह के अकेले विनोद कुमार शुक्ल -
विनोद कुमार शुक्ल करीब 50 वर्षों से लेखन में रत हैं। उनका पहला कविता संग्रह 1971 में प्रकाशित हुआ था। इसी तरह - वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह, सब कुछ होना बचा रहेगा, अतिरिक्त नहीं, कविता से लंबी कविता और आकाश धरती को खटखटाता है जैसी कविता संग्रह की कविताओं को भी खूब सराहा गया है। बच्चों के लिए लिखे गए हरे पत्तों के रंग की पतरंगी और कहीं खो गया नाम का लड़का जैसी रचनाओं को भी पाठकों ने हाथों हाथ लिया है। दुनियाभर की भाषाओं में उनकी कविताओं के अनुवाद हो चुके हैं।