लेखक डॉ० साकेत कुमार पाठक की पुस्तक ‘केदारनाथ अग्रवाल का साहित्यिक वैशिष्ट्य’ परिमल प्रकाशन (प्रयागराज) ने प्रकाशित किया है| लेख़क ने केदारनाथ अग्रवाल की कविताओं में आधुनिक समाज के आईने को दर्शाया है| उनके साहित्य में प्रकृति चल-सौंदर्य लिए हुए हैं| केन कूल का कवि प्रकृति में विविध मानवीय गुणों का इतना सूक्ष्म समाहार करता है कि प्रकृति और मनुष्य का विभेद लगभग समाप्त सा हो जाता है| केदारनाथ अग्रवाल ने अपनी रचनाओं में समाज के उन लोगों की वकालत की है जो स्वयं अपनी बात नहीं रख पाते| साहित्यकार केदारनाथ अग्रवाल अपनी दर्जनों साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से सामाज की उन विद्रुपताओं को निकाल फेंकना चाहता है जो मानवता के विकास में बाधक है| केदारनाथ अग्रवाल जी संघर्षरत आम आदमी की आवाज बन अधिकारों की लड़ाई लड़तें हैं| समाजवाद की स्थापना भारतीय समाज से विस्थापित होते मानवीय मूल्यों की चिंता करते हैं एवं उनके पुनः स्थापन की कोशिश करते हैं| परंपरा के निरर्थक उत्तराधिकार को समाप्त कर नये मानदंड गढ़ कर सामाजिक सद्भावना का विकास करना केदारनाथ जी का मुख्या उद्देश्य रहा है| उनके गद्य और पद्द दोनों ही सामाजिक ढांचे का जीवंत दस्तावेज़ है | जहाँ एक तरफ उपन्यास "पतीया" में सामाजिक विभेद और आर्थिक वैषम्य मार्मिकता से उद्घाटित है | वहीँ दूसरी तरफ इनके काव्य संकलनों में मजदूर, दबे-कुचले और वंचितों की जीवंत स्थितियां झलकती है| गाँवों की सीमित राजनीति आपसी वैमनष्य के रूप में प्रकट होती है जबकि कविताओं के माध्यम से कवि राजनीति से सीधे टक्कर लेते हुए सत्ता के खेल और जनता की विवशताओं को इनकी कविताओं में एक जीती-जागती तस्वीर दिखाई देती है| कवि केदारनाथ के काव्य में नारी, जीवन की कठिनाइयों से संघर्ष करने में प्रेरणा श्रोत भी बनती है और काव्य रचना की शक्ति भी | लेख़क ने कवि केदारनाथ अग्रवाल जी की कविताओं में प्रत्येक बिन्दुओं को भावपूर्ण दृष्टि से इनकी काव्य-शैली का पूर्ण बोध कराया है|
अंकुर शर्मा, इलाहाबाद