• 28 Apr, 2025

कार्पोरेट में निवेश 2 साल में 12 फीसदी तक बढ़ गया है

कार्पोरेट में निवेश 2 साल में 12 फीसदी तक बढ़ गया है

● क्षमता विस्तार में पैसा लगा रहीं कंपनियां, नौकरियां बढ़ेंगी ● देश के 38 में से 23 सेक्टरों में बढ़ रहा है निवेश- ● लगभग साढे चार हजार फर्मों में करीब पौने पांच लाख करोड़ का निवेश

मुंबई।  देश में व्यापार और इंडस्ट्रीज की दिशा में यथोचित विकास दर्ज किया गया है। गुजरे दो सालों में देशभर के 38 इंडस्ट्रीज में से 23 सेक्टरों में निवेश का रुझान उम्मीदों से भरा रहा है। लगभग साढे चार हजार कंपनियों ने 4.76 लाख करोड़ का निवेश किया है। इनमें भी प्लास्टिक्स उत्पाद , डायमंड ज्वेलरी, इलेक्ट्रिकल्स और बिजनेस सर्विस इंडस्ट्रीज में निवेश का रुझान सबसे ज्यादा देखा गया है।

  जानकारों के मुताबिक इस तरह के निवेश रुझान के बहुत ही सकारात्मक नतीजे निकलते हैं। बाजार की नब्ज जानने वालों का कहना है कि इस तरह के निवेश देश में डिमांड बढ़ने के संकेत हैं क्योंकि कार्पोरेट निवेश बढ़ाए जाने का उद्देश्य सीधे तौर पर उनकी क्षमता विस्तार से जुड़ा होता है। जब उद्योगों  में उत्पादन क्षमता बढ़ती है तो जाहिर है नौकरियों की संख्या भी बढ़ती है । क्षमता विस्तार से सीधे तौर पर प्रबंधन पर  बाजार की मांग पूरी करने का दबाव बढ़ता है तो जाब्स की संभावना भी उसी के समानांतर बढ़ती चलती है।

 बीते वित्त वर्ष 2023-24 में इन कंपनियों ने 4.8 प्रतिशत और 2022-23 में 7.6 फीसदी तक निवेश क्षमता विस्तार के चलते बढ़ाया था। बीते वित्त वर्ष 23 में कंपनियों का निवेश या तो स्थिर रहा या फिर बढ़ा। कंपनियों की निवेश में बढ़ोतरी से उसकी ग्रास फिक्सड एसेट (जीएफए) बढ़ती है। वित्तवर्ष 22-23 में बढ़कर यह 40.17 लाख करोड़ और 23-24 में यही 42.09 लाख करोड़ रुपये हो गया।  कहने का तात्पर्य - दो वर्षों में कंपनियों ने 12.75 फीसदी निवेश बढ़ाया।

कंपनियों का फोकस बाज़ार की बढ़ी हुई मांग पूरी करने पर

उद्योंगों की नब्ज जानने वाले बताते हैं कि कंपनियां ठोस आधार पर व निवेश बढ़ाने या कम करने का निर्णय करती हैं। उत्पादन क्षमता, क्षमता के इस्तेमाल की मौजूदा स्थिति, बाज़ार में मांग और पूंजी की लागत ( ब्याज दर) इसमें शामिल है। जाहिर है बाज़ार में किसी उत्पाद या सेवा की मांग बढ़ने पर उत्पादन में इजाफा करने के लिए क्षमता विस्तार की जरूरत तो पड़ती ही है।  इसे पूरा करने के लिए निवेश बढ़ाना पड़ता है। एक नजीर को इस तरह से देखें कि घरेलू कार्पोरेट सेक्टर की 24.9  फीसदी ग्रास फिक्स्ड एसेट (जीएफए) अकेले फूड और आयल इंडस्ट्रीज में है । इसी में 15.1फीसदी के साथ इसमें पावर इंडस्ट्रीज दूसरे पायदान पर है। इसी तरह 9.4 फीसदी के साथ टेलीकाम इंडस्ट्रीज तीसरे स्थान पर है। कुल एसेट्स में 67.5 प्रतिशत की हिस्सेदारी सिर्फ 6 इंडस्ट्रीज की ही है। कहा जा रहा है कि इनमें टॉप तीन के अलावा आयरन-स्टील, ऑटोमोबाइल और बैंकिंग सेक्टर भी शामिल है।