• 28 Apr, 2025

छोटे जुर्मों पर अब जेल नहीं सिर्फ जु्र्माना..

छोटे जुर्मों पर अब जेल नहीं सिर्फ जु्र्माना..

• वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने दिसंबर 2022 में यह विधेयक लोकसभा में पेश किया था और जिसे तब संसद की संयुक्त समिति को भेज दिया गया था | • 19 मंत्रालय से जुड़े 42 कानूनों के बदलेंगे 183 प्रावधान..| • दलील दी गई है कि उससे मुकदमों का बोझ कम होगा |

नई दिल्ली । केन्द्र  सरकार ने एक और नया फैसला किया है जिसके लिए दलील दी गई है कि उससे मुकदमों का बोझ कम होगा। सरकार ने कारोबारी सुगमता बढ़ाने के और न्यायालयों में मुकदमों की आमद कम के लिए छोटे अपराधों में कारावास के प्रावधानों को खत्म करने का फैसला लिया है।

      कहा जा रहा है कि ऐसी गलतियों के लिए अब केवल अर्थदण्ड लगाया जाएगा । इसके लिए जनविश्वास ( प्रावधान संशोधन) विधेयक 2023 को 12 जुलाई बुधवार को केन्द्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिल गई। प्रस्तावित विधेयक को संसद के मानसून सत्र में पेश किया जा सकता है।  विधेयक के जरिये 19 मंत्रालयों से जुड़े 42 कानूनों के 183 प्रावधानों में संशोधन करके छोटे जुर्म को अपराध की श्रेणी से हटाने का प्रस्ताव है। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने दिसंबर 2022 में यह विधेयक लोकसभा में पेश किया था और जिसे तब संसद की संयुक्त समिति को भेज दिया गया था।  कहा गया है कि 31 लोगों की उक्त समिति का गठन विशेष तौर पर इस मुद्दे पर चर्चा के लिए किया गया था। समिति ने उसके गठन के उद्देश्य के मुताबिक विधायी और विधि मामलों के विभागों के साथ उससे जुड़े सभी मंत्रालयों के साथ लम्बी चर्चा की। साथ ही सभी राज्यों से चर्चा के बाद इसी साल मार्च में समिति ने रिपोर्ट सौंपी थी।  बजट सत्र के दूसरे चरण में इसे संसद के दोनों सदनों में रखा गया था।  सरकार का मानना है कि देश के विकास की गति पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले और विनिवेशकों को हतोत्साहित करने वाले पुराने कानूनों से मुक्ति जरूरी है। इसके लिए जेल की जगह आत्म विश्वास का भाव पैदा होना चाहिए। 

• राज्यों को भी संशोधन के लिए प्रेरित करे केन्द्र
समिति ने केन्द्र सरकार को राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों को भी जनविश्वास विधेयक की तर्ज पर छोटे जुर्म को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के लिए कानूनी उपाय करने को प्रेरित करने कहा है। 

इन प्रावधानों में बदलाव के प्रावधान

  • आईटी एक्ट, 2000 में संशोधन के प्रावधान के तहत निजी जानकारी सार्वजनिक करने पर तीन साल की सजा या पांच लाख रूपये तक का हर्जाना या दोनों हो सकते हैं पर अब जेल की सजा खत्म कर 25 लाख रुपये तक अर्थ दण्ड का प्रस्ताव है। 
  • पेटेंट कानून, 1970 के तहत भारत में पेटेंट होने का झूठा दावाकर किसी वस्तु को बेचना अपराध था अब प्रस्ताव में दस लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान किया गया  है।
  • कृषि उपज ( ग्रेडिंग और मार्किंग) अधिनियम 1937 के तहत नकली ग्रेड उपनाम चिन्ह आदि के इस्तेमाल पर तीन साल की सजा  और पांच हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान है अब प्रस्ताव दिया गया है कि इसके लिए 8 लाख रुपये अर्थ दण्ड का प्रावधान किया गया है। 
  • पोस्ट ऑफिस एक्ट,1898 के तहत हर जुर्म को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का प्रस्ताव है। 
  • जुर्माने की जगह अर्थदण्ड का उपयोगः-
    विधेयक में कई अपराधों की जगह जेल की सजा के प्रावधान  की जगह अर्थदण्ड का प्रावधान किया गया है। जुर्माना लगाने के लिए अदालती आदेश की जरूरत होती है जबकि अर्थ दण्ड अधिकारी स्तर पर लगाया जा सकता है।  इसका अर्थ है कि प्रावधान में सजा के लिए अब अदालती आदेश की जरूरत नहीं होगी। 
  • फैसला लेने वाले अधिकारियों की नियुक्तिः-
    विधेयक के कानून बनने के बाद केन्द्र सरकार दंड निर्धारित करने के लिए अधिकारियों  की नियुक्ति कर सकती है। ये अधिकारी व्यक्तियों के साक्ष्य के लिए समन भी भेज सकते हैं और उल्लंघन की जांच कर सकते हैं।  इसमें अपीलीय तंत्र का भी प्रावधान होगा। 

मुख्यतः इन कानूनों में होगा संशोधन 

  1. औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम1940
  2. सार्वजनिक ऋण अधिनियम 1944
  3. फार्मेसी अधिनियम 1948
  4. कॉपीराइट अधिनियम 1957
  5. सिनेमेटोग्राफी अधिनियम 1957
  6. पेटेंट अधिनियम 1970
  7. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 
  8. मोटर वाहन अधिनियम 1988
  9. ट्रेड मार्क अधिनियम 1999
  10. रेलवे अधिनियम 1989
  11. सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000
  12. मनी लांड्रिंग निरोधक अधिनियम 2002
  13. खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 शामिल किये गए हैं। 

अपराध की गंभीरता के आधार पर होगा जुर्माना
इस प्रस्ताव में कहा गया है कि आर्थिक दण्ड की राशि अपराध की गंभीरता पर निर्भर करेगी। अलग - अलग गड़बड़ियों के लिए तय जुर्माने की राशि में हर तीसरे साल दस फीसदी की वृध्दि की जाएगी।