
भारतीय संस्कृति की बड़ी पहचान उसका आध्यात्मिक पक्ष है। विभिन्न परम्पराओं और रिवाजों में उसका यह दार्शनिक - आध्यात्मिक पक्ष विविध रूपों में स्वयं को हर काल और स्थान पर जाहिर करता रहा है। इससे इतर अधिकांश मामलों में यह भी पाया गया है कि आस्था के प्रतीक देखने में स्थूल और मूर्तिमान हैं पर अपने अर्थ में सूक्ष्मता को धारण करते हैं। यह सूक्ष्मता आत्मा और परमात्मा के बीच की आध्यात्मिक कड़ी के रूप में स्थापित है। इस आध्यात्मिक विशेषता के बावजूद यह भी सच है कि यहां का जनमानस इस समृद्ध सांस्कृतिक थाती की इस सूक्ष्मता को कम समझता है और इसके स्थूल स्वरूप में ही मगन रहकर अपनी धार्मिक चेतना की सीमा का निर्धारण करता है।
हिन्दू धार्मिक - आध्यात्मिक परम्परा में इसी तरह एक अनोखा शब्द है, चक्काडोला। हिंदी समाज इससे लगभग अपरिचित ही है क्योंकि यह शब्द हिंदी का नहीं है। इस शब्द को समझने हमें ओडिसा के जगन्नाथपुरी जाना होगा जहां धार्मिक संस्कृति के उत्कलीय रूप में भगवान जगन्नाथ अपने भाई - बहनों के साथ बिराजते हैं। गौरतलब है कि तीनों भाई बहन; बलभद्र, सुभद्रा और जगन्नाथ में भगवान जगन्नाथ की आंखें विशाल और गोल गोल होती हैं। इन बड़ी और गोल आंखों को ही ओडिसा में 'चक्काडोला' कहा जाता है; जिसका अर्थ है, प्रेम, सुरक्षा, सांत्वना और करुणा से भरी निस्सीम आँखें। इन आँखों का एक अन्य उच्चारण 'चकदोला' या 'चोकोडोला'भी किया जाता है जिसके पर्यायवाची के रूप में 'चकनयन' या 'चकक्षिया' शब्द ओड़िया भाषा में उपलब्ध हैं। यह ओडिसा में भगवान जगन्नाथ के लिए एक स्नेहसिक्त पुकार वाला नाम है।
यह है किसी भाषा के किसी शब्द की शक्ति। चक्काडोला शब्द का आध्यात्मिक - दार्शनिक अर्थ विस्तार करने पर जो कुछ निकलकर आता है, वह मनुष्य को स्थूल बातों से निकालकर विस्तृत और परिष्कृत करता है। भगवान जगन्नाथ की यह बड़ी - बड़ी आंखें संसार के हर प्राणी को बराबरी के भाव में देखने, मन के भीतर गहरे उतरने और क्षणिक और भौतिकवादी जीवन से परे देख सकने की असीम दृष्टि का प्रतीक हैं। भगवान जगन्नाथ की हमेशा जागरूक रहनेवाली यह दिव्य दृष्टि मनुष्य को आत्मसाक्षात्कार करवाकर उसके आध्यात्मिक विकास का मार्ग प्रशस्त करती है।
भगवान जगन्नाथ की आँखों का यह विशाल आकार उनकी मूर्ति से कहीं अधिक विशिष्ट है। ओड़िया में डोला का अर्थ है, आंख की काली गोल पुतली। कोई आंख है जो सबको देख रही है, उस असीम सत्ता का एक सशक्त प्रतीक है चक्काडोला। यह देखना महत्वपूर्ण है कि चक्काडोला की तरह विस्तृत और थालीनुमा चपटी गोल संरचना सौरमण्डल और आकाशगंगाओं की है और शायद इस ब्रह्मांड की भी है। इस दृष्टि से चक्काडोला शब्द भगवान जगन्नाथ की ब्रह्मांडीय उपस्थिति का परिचायक प्रतीत होता है। उनकी यह आँखें ब्रह्मांड की विशालता और उसमें हमारी स्थिति की याद दिलाती हैं जिससे हमें अपने प्राकृतिक सहअस्तित्व को समझने में सहायता मिलती है।
हिंदू आध्यात्मिकता में किसी देवता की आँखों का बड़ा महत्व होता है। इस लिहाज से देखा जाए तो यह किसी देवता की सबसे बड़ी आंखें हैं जो उनकी विशाल दृष्टि की सर्वव्यापकता और सर्वज्ञता का प्रतीक है जो यह याद दिलाता है कि वे समय और स्थान की भौतिक सीमाओं से परे हैं। चक्काडोला की यह व्याख्या ब्रह्मांड की विशालता को मूर्त रूप में व्यक्त करती है। भगवान जगन्नाथ की यह आँखें उनके असीम ज्ञान और ब्रह्मांड में होने वाली हर चीज़ को देखने और समझने की उनकी क्षमता के रूपक के रूप में काम करती हैं।
चक्काडोला शब्द के उपर्युक्त अर्थविस्तार से कबीर के राम याद आते हैं जो सगुण - निर्गुण और काल - स्थान से परे हैं। गौरतलब है कि इस्लामिक दृष्टि में अल्लाह भी इसी तरह सभी सीमाओं से पार, सर्वत्र और अव्याख्येय है। इन धार्मिक अवधारणाओं को वैज्ञानिकता और तार्किकता से देखने पर भी यही बात निकलकर आती है कि सृष्टि को संचालित करनेवाली प्रकृति की शक्ति भी इसी तरह है। वह प्रकृति जो सर्वत्र है, अनंत है, पारदर्शी है, सूक्ष्म है और व्यापक है ठीक चक्काडोला की तरह। ऐसे में चक्काडोला का आध्यात्मिक अर्थ ब्रह्मांड के वैज्ञानिक अर्थ के बहुत निकट जान पड़ता है।
भगवान जगन्नाथ की यह आंखें जिसे चक्काडोला कहा जाता है, सृष्टि को संचालित करनेवाली सत्ता को ठीक से समझने और तदनुरूप व्यवहार करने को प्रेरित करता है। चक्काडोला से निःसृत करुणा, सुरक्षा, सांत्वना और प्रेम से भरी आंखों का भाव हम सबमें उतरे; प्रकृति और मनुष्यता सुरक्षित रहे, यह कामना है।
पीयूष कुमार
साहित्यकार और लोक संस्कृति अध्येता। उच्चशिक्षा विभाग, छत्तीसगढ़ शासन में हिंदी के सहायक प्राध्यापक हैं।