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● सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान बेंच में 22 साल बाद सुनवाई शुरू-
नई दिल्ली। क्या किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति को समाज के भलाई के लिए सरकार अपने हाथ में ले सकती है। इस संवैधानिक मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी. वाय. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 9 जजों की संविधान पीठ ने बुधवार 24 अप्रैल को सुनवाई की । अनुच्छेद 39 बी में कहा गया है कि सरकार को सभी के भले के लिए सामुदायिक संसाधनों को उचित रूप साझा करने के लिए नीतियां बनाने का अधिकार है। इसमें निजी स्वामित्व वाले संसाधन भी शामिल हैं।
1996 में तीन जजों की बेंच ने इसे पांच जजों की बेंच के पास भेजा। उस बेंच ने इसे 2001 में सात जजों की बेंच के पास भेजा। नहीं सुलझा तो इसे 2002 में 9 जजों की बेंच को भेजा। अब 22 साल बाद 9 जजों की बेंच 23 अप्रैल 2023 से इस पर सुनवाई कर रही है।
नई दिल्ली। निजी संपत्ति को संविधान के अनुच्छेद 39 बी के तहत लाने के मुद्दे पर संविधान बेंच ने केन्द्र सरकार से सवाल किया कि जब संविधान संशोधन करके उसकी जगह अन्य प्रावधान लाया जाता है तो मूल प्रावधान कायम रहता है या नहीं ? इस पर केन्द्र ने दलील दी कि ऐसे में मूल प्रावधान बने रहता है।
सीजेआई ने कहा कि आप संपत्ति की पूंजीवादी अवधारणा से देखें तो यह विशिष्टता की भावना को बताती है। उन्होंने अपना पेन दिखाते हुए कहा यह मेरा ही है। वहीं समाजवादी अवधारणा संपत्ति की समानता की धारणा को बल देती है। यह कहती है कि कुछ भी व्यक्ति विशेष का नहीं है बल्कि संपत्ति समुदाय के लिए सामान्य है। यह घोर समाजवादी दृष्टिकोण है। आम तौर पर हम संपत्ति को ऐसी चीज मानते हैं जिसे हम ट्रस्ट के तौर पर रखते हैं । इस मामले में कहा गया है कि सुनवाई इस पर गुरुवार 25 अप्रैल को भी होगी।
.चीफ जस्टिस - अगर समुदाय में कुछ उत्पन्न नहीं हुआ है तो वहां अनुच्छेद 39 बी लागू नहीं होता। यह सुझाव देना थोड़ा अतिवादी होगा कि समुदाय के पास संसाधनों का मतलब व्यक्ति की निजी संपत्ति नहीं होगा। संविधान का मूल उद्देश्य सामाजिक परिवर्तन लाना था। हम कतई नहीं कह सकते कि संपत्ति को निजी तौर पर रखे जाने के बाद 39 बी का उपयोग नहीं बचता है। सरकार का तर्क यह है कि 39 बी और सी अभी वैध हैं, क्या यह महत्वपूर्ण नहीं है कि कोर्ट इसकी जांच करे।
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