• 28 Apr, 2025

क्या समाज के भले के लिए सरकार निजी संपत्ति ले सकती है

क्या समाज के भले के लिए सरकार निजी संपत्ति ले सकती है

● सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान बेंच में 22 साल बाद सुनवाई शुरू-

नई दिल्ली। क्या किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति को समाज के भलाई के लिए सरकार अपने हाथ में ले सकती है। इस संवैधानिक मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के  चीफ जस्टिस डी. वाय. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 9 जजों की संविधान पीठ ने बुधवार 24 अप्रैल को सुनवाई की । अनुच्छेद 39 बी में कहा गया है कि सरकार को सभी के भले के लिए सामुदायिक संसाधनों को उचित रूप साझा करने के लिए नीतियां बनाने का अधिकार है। इसमें निजी स्वामित्व वाले संसाधन भी शामिल हैं।

  • 1996 में हुई थी पहली सुनवाई -

1996 में तीन जजों की बेंच ने इसे पांच जजों की बेंच के पास भेजा। उस बेंच ने इसे 2001 में सात जजों की बेंच के पास भेजा। नहीं सुलझा तो इसे 2002 में 9 जजों की बेंच को भेजा। अब 22 साल बाद 9 जजों की बेंच 23 अप्रैल 2023 से इस पर सुनवाई कर रही है। 

  • संविधान संशोधन पर मूल प्रावधान बने रहते हैं-केन्द्र 

नई दिल्ली। निजी संपत्ति को संविधान के अनुच्छेद 39 बी के तहत लाने के मुद्दे पर संविधान बेंच ने केन्द्र सरकार से सवाल किया कि जब संविधान संशोधन करके उसकी जगह अन्य प्रावधान लाया जाता है तो मूल प्रावधान कायम रहता है या नहीं ? इस पर केन्द्र ने दलील दी कि ऐसे में मूल प्रावधान बने रहता है।

सीजेआई ने कहा कि आप संपत्ति की पूंजीवादी अवधारणा से देखें तो यह विशिष्टता की भावना को बताती है। उन्होंने अपना पेन दिखाते हुए कहा यह मेरा ही है। वहीं समाजवादी अवधारणा संपत्ति की समानता की धारणा को बल देती है। यह कहती है कि कुछ भी व्यक्ति विशेष का नहीं है बल्कि संपत्ति समुदाय के लिए सामान्य है। यह घोर समाजवादी दृष्टिकोण है। आम तौर पर हम संपत्ति को ऐसी चीज मानते हैं जिसे हम ट्रस्ट के तौर पर रखते हैं । इस मामले में कहा गया है कि सुनवाई इस पर गुरुवार 25 अप्रैल को भी होगी।

  • कोर्ट रूम लाइव- आप संपत्ति किसी को नहीं देते हैं तो भी 39 बी लागू नहीं होता

.चीफ जस्टिस - अगर समुदाय में कुछ उत्पन्न नहीं हुआ है तो वहां अनुच्छेद 39 बी लागू नहीं होता। यह सुझाव देना थोड़ा अतिवादी होगा कि समुदाय के पास संसाधनों का मतलब व्यक्ति की निजी संपत्ति नहीं होगा। संविधान का मूल उद्देश्य सामाजिक परिवर्तन लाना था। हम कतई नहीं कह सकते कि संपत्ति को निजी तौर पर रखे जाने के बाद 39 बी का उपयोग नहीं बचता है। सरकार का तर्क यह है कि 39 बी और सी अभी वैध हैं, क्या यह महत्वपूर्ण नहीं है कि कोर्ट इसकी जांच करे।

  1.  तुषार मेहता( सोलिसिटर जनरल) -  हमने भी इस नजरिये से अभी तक जांच नहीं की है। इस मुद्दे को वापस 7 जजों की बेंच के पास भेजा जाना चाहिए।
  2. चीफ जस्टिस- मिनर्वा मिल्स के फैसले के आधार पर अनुच्छेद 31 सी भी मौजूद नहीं है। ऐसे में क्या निजी संपत्ति को समुदाय के भौतिक संसाधनों के अंतर्गत लाने का कानून अनुच्छेद 39 बी और सी के तहत संरक्षित है। इसका सवाल ही नहीं उठता।
  3. एक वकील- 39 बी भूमि के स्वामित्व की बात नहीं करता इसलिए इसे अनुच्छेद 31 सी के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए।
  4. सोलिसिटर जनरल - 31 सी का इतिहास बताता है कि आप किसी खिलाड़ी को विकल्प बना कर मैदान में भेजते हैं और वह आउट हो जाता है तो मतलब यह नहीं वह खिलाड़ी मैदान से बाहर हो गया।  वह उसके बावजूद खेल में बना रहता है।
  • संदर्भ- सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी दुबे ने बताया शीर्ष कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ निजी संपत्ति को लेकर 1977में रंगनाथ रेड्डी  केस में आए जस्टिस कृष्णा अय्यर के फैसले की व्याख्या को लेकर सुनवाई कर रही है।