किसानों की आय बढ़ाने व खाद्य सुरक्षा के लिए एक लाख करोड़, रेल कर्मियों को बोनस
■ केन्द्रीय कैबिनेट के महत्वपूर्ण फैसले
• निरंतर पहल मासिक पत्रिका के तीसरे स्थापना दिवस समारोह के अवसर पर एक आयोजन में • “खेती-खेतिहरों की दशा और मीडिया की भूमिका” विषय पर एक बहुत ही विचारोत्तेजक गोष्ठी
रायपुर । किसान को क्यों उसके फसल की वाजिब कीमत नहीं मिलती? देश का कृषक 70 साल से गरीब ही क्यों है ? इंडस्ट्रियलिस्ट या कथित कारपोरेट के लाखों करोड़ के कर्ज माफ कर दिये जाते हैं और दो लाख का कर्ज न चुका पाने वाला किसान अपने नन्हे बच्चे को पेट मे बांध कर नहर में कूद आत्महत्या को विवश है? इस तरह के संजीदा सवाल आयोजन के मुख्य अतिथि देविंदर शर्मा जी ने उठाए और उनके समाधान में किसनों के प्रति संवेदना और एकजुटता की जरूरत पर बल दिया।
कभी हमने सोचा कि कॉफी की पैदावार लेने वाले किसान को लाभ चुटकी भर और बड़े ब्रांडेड कॉफी शॉप में बिकने वाली कॉफी साढ़े तीन सौ रुपये कप क्यो मिलती है ? टमाटर 2 से 10 किलो और उससे बनने वाला कैचप सौ से डेढ़ सौ किलो ? आखिर ये कैसा बिजनेस मॉडल है जिसमे अमीर और अमीर होता जाता है और किसान दशकों से एक ही जगह पर है। बड़ी चतुराई से इस तरह की नीतियां बनाई गई है, ऐसा नरेटिव गढ़ा गया है कि जिसमे अमीरों के और अमीर हो जाने को ही विकास कहा गया है ? और हमने इसे जस का तस स्वीकार कर लिया। हमे फिक्र ही नही इस बात की कि विकास की ये परिभाषा क्यो है, किसने बनाई ? दुर्भाग्य है कि किसान को पूरी दुनिया मे इस तरह ही रहने दिया गया। आखिर किसान को अमीर क्यों नही होना चाहिए? जब पिछले दिनों टमाटर महंगे होने का हल्ला हुआ जब डेढ़ से दो सौ रुपये किलो टमाटर बिकने लगा तब एक ही जगह से सैकड़ों किसान कुछ ही दिनों में लखपति हो गए। मैं तो चाहूंगा कि टमाटर की मांग का एक मौसम किसानों को और मिलना चाहिए ताकि और किसानों को लखपति होने का अवसर मिले। 2009 में आई मंदी के बाद बैक्रप्ट उद्य्योगो को फिर से खड़ा करने में मदद करने स्टिम्युल्स पैकेज बनाये गए, उन्हें और कर्ज दे दिया गया जो पहले ही कर्ज चुकाने में असमर्थ थे और अभी तक ये सिलसिला जारी है। जबकि एक किसान कर्ज चुकाने में असमर्थ होता है तो उसे जेल हो जाती है। ये कैसी व्यवस्था है? ये दुःखद है।
कभी सोचा आपने कि ऐसा क्यों है? इस पर कौन आवाज उठाएगा? मुख्यधारा की मीडिया इस पर बात नही करना चाहती... वो आप मीडिया वाले बेहतर जानते है। पर हमारे पास जो साधन उपलब्ध है मोबाइल इस पर फेसबुक ,वाट्सअप पर खूब खेलते रहे हैं ? पर इसका इससे बेहतर इस्तेमाल भी कर सकते हैं ...यही आज के समय का मीडिया है ..
हम आवाज नही उठाते ये सोचकर कि मुझ अकेले से क्या होगा ? एक मच्छर आपके कान में भिनभिमा कर आपकी नींद हराम कर सकता है क्या हम मच्छर से भी गए गुजरे हैं ? कभी सोचा आपने?
हमे किसानों के एमएसपी मिनिमम सपोर्ट प्राइस के लिए को करना ही होगा। पहला रिवाल्यूशन किसान ड्रिवन था पर अब कंज्यूमर ड्रिवन होगा। यदि आपको अच्छा फूड चाहिए तो इसके लिए आपको मांग करनी होगी अन्यथा वही दस साल पहले वाली स्थिति रहेगी।
कृषि मामलों के जानकार और मुख्यमंत्री के कृषि सलाहकार श्री प्रदीप शर्मा ने कहा कि अभी डॉ. संकेत भाई कह रहे थे कि शहरों में खेती किसानी की चर्चा थोड़ी कम ही होती है। अभी कुछ रोज पहले ही चर्चा हो रही थी कि एक तो छत्तीसगढ़ में पिछले चार पांच साल में कुल इसके बनने के बाद के 23 सालों में अभूतपूर्व पुनर्जागरण का समय रहा है। कला के क्षेत्र में, पत्रकारिता के क्षेत्र में हो और सबसे ज्यादा कृषि के क्षेत्र में । यह पहली बार हुआ है कि यहां मुख्यमंत्री ने सही मायनों में खेती की सुध ली और किसानी को बचा लिय़ा। मै नहीं कहता कि किसानों का कर्जा माफ करने से या उन्हें उपज का सही मूल्य देने भर से विकास होता है। या कि केवल सरकार ने किसानों को बचा लिया । इससे पहले हम निरंतर उस दिशा में बढ़ थे जब गांव एक तरह से शहर की ओर पलायन करते हुए मजदूरों की बस्ती में बदल रहे थे। लगातार पलायन हो रहा था।
इससे पहले बड़े फ्लाई ओवर, सड़कों का निर्माण और बड़े निर्माण कार्यों को ही विकास समझ लिया गया था जिससे एक आम छत्तीसगढिया को लगने लगा था कि वह एक तरह से दरकिनार कर दिया गया है। पर इस सरकार ने इस सोच को बदल दिया। अब नई योजना नरवा, गरुआ, घुरवा बारी पर काम हो रहा है। बताते हुए खुशी हो रही है कि अब तक 12 हजार पुराने नालों को रिवाइव कर लिया गया है और 6 हजार को किया जा रहा है।
इधर एक और बात का असर हो रहा है। बे आफ बेंगाल में जहां से हमारे यहाँ के मानसून का बड़ा हिस्सा आता है उसमें हर पांच साल में साइक्लोन में 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो रही है। ये क्लाइमेट चेंज की वजह से होता है। ये सब किसानों को तकलीफ में डालते हैं।
छत्तीसगढ़ जहां 44 फीसदी जंगल है और मानसून के बाद के साइक्लोन के बाद उनके फ्लावरिंग में कमी आती है। इससे इन जंगलों से जिनकी आजीविका जुड़ी होती है उनको फर्क पड़ता है। इन कमियों का कोई रिकार्ड भी नहीं होता।
उन्होंने नालों से सिंचाई के बाद मिलेट के उत्पादन में असाधारण बढ़ोतरी का जिक्र कर बूताया कि इस सरकार जो काम किये हैँ उसके नतीजे आने लगे हैं। 28 लाख हेक्टेयर वाटर शेड एरिया से 24 लाख हेक्टेयर कवर हुआ और मिलेट का उत्पादन 56 हजार से एक लाख से अधिक हेक्टेयर तक पहुंच गया। ये नालों के विकास के बाद के केवल एक इंडिकेशन भर है।
बीते बर्षों की दो बड़ी घटनाओं और उसके बाद की स्थितियों का आकलन करते हुए वरिष्ठ पत्रकार और आयोजन के विशिष्ट अतिथि श्री सुदीप ठाकुर आजादी के तुरत बाद के बरसों में किसानों की दशा का जिक्र किया। देश के हालात और उस समय प्रधानमंत्री रहे पं. जवाहर लाल नेहरू की सोच और प्रयासों को याद करते हुए कहा कि उन्होंने तब विभाजन के बाद इस ओर आए किसानों की स्थिति देख हुए एक सामुदायिक विकास मंत्रालय बनाया और 1956 में नेहरू जी ने एक के डे से कहा देखिए 5 लाख 57 हजार गांव आपको सौंप रहा हूँ और आज से आप उनके मालिक हैं। लेकिन उस दिन के लगभग 76 साल बाद भी किसानों की दशा नहीं सुधरी। तो इसके लिए कौन से कारक या तत्व जिम्मेदार हैं।
श्री सुदीप ने कहा कि श्री देविंदर शर्मा जी किसानों की दशा में सुधार नहीं होने या नहीं होने देने के लिए जिम्मेदार तत्वों, कारकों और मनस्थिति की बात करते हुए जो एक बात हर बार ही कहते हैं कि किसानों को औऱ समाज को इसमें सुधार के लिए आगे आना होगा। हमारी अपनी ही कमजोरी है कि हम आवाज नहीं उठाते। उसके नतीजे में पूरा एक कृषक समाज अपने वाजिब हक से वंचित रह जाता है।
श्री सुदीप ठाकुर ने कहा कि दूसरी बड़ी घटना ने देश की सरकार और आवाम के सामने यह जाहिर कर दिया कि आजादी के इतने सालों बाद भी देश में किसानों के लिए कौन सी जगह बची है। कोविड के समय महानगरों से अपने घरों की ओर कूच कर रहे किसानों मजदूरों की दशा ने जता दिया कि इन्हें बस यूं ही अपने हाल पर छोड़ दिया गया है।
डॉ. संकेत ठाकुर ने कहा कि आज पहली बार है कि शहर में कृषि पर चर्चा हो रही है। मैं निरंतर पहल की इस कोशिश की सराहना करता हूँ। हमने दो दशक पहले मोती बाग में एक कृषि मेला का आयोजन किया था। मैं एक बात पर यहां रोशनी डालना चाहता हूँ कि हमारे यहां कृषि में अकुशल श्रमिक ही काम करते हैं सरकारी भाषा में यही है। यानी जो अनपढ़ हो वह भी कर सकता है पर मुझे आप सबसे जानना है कि क्या हमें पता है कि एक एकड़ खेत में फसल के लिए कितने धान के बीज की जरुरत होती है। देखिये अनाज तो हम सब के जरूरत की चीज है।
मुझे दो दशक पहले एक मार्गदर्शक मिले जिन्होंने कहा कि आप कृषि वैज्ञानिकों ने खेती को बर्बाद कर दिया है। खेतों को बर्बाद कर दिया है सुन कर मुझे बड़ा दुख हुआ कि कैसे हमने बर्बाद कर दिया उन्होंने कहा कि आप नैसर्गिक रूप से पैदावार नहीं होने देते. तरह-तरह से रसायनिक खाद डालकर खेतों को बीमार कर दिया है जिन पर बीमारी दूर करने का दायित्व है वही बीमार करने में लगे हैं।
और तब ही से हमने अभ्युदय संस्थान के संस्थापक के नागराज जी के सिध्दांतों पर पिछले 20 साल से आर्गेनिक खेती कर रहे हैं इसके लिए एक तरह से आर्गेनिक माइंड सेट की जरूरत होती है। मैं अपने साथी कृषि वैज्ञानिकों से कहता हूं कि आइये देखिए कैसे एक एकड़ में हम 24 क्विंटल धान लगाते है और खुशबू वाले धान की पैदावार भी 16 क्विटल तक तो ले ही लेते हैं। उन्हें हैरानी होती है। मेरा आपसे आग्रह है मीडिया तो इस पर तवज्जो नहीं देता पर आज ह्म सभी के पास मीडिया हाथ में हैं । कभी किसानों की भी तस्वीरें लीजिए। जिम में पसीना बहाते हैं कभी खेतों में भी पसीना बहा लीजिए। आखिर भोजन तो आपकी जरूरत है फिर वो बिचारी किसान क्यों खेतों में खटे। वो सरकारी भाषा में विशुध्द रूप से अकुशल मजदूर है.... । मेरा बस इतना कहना है कि किसानों के हित में सोचें।
आयोजन के अध्यक्ष डॉ सुशील त्रिवेदी ने कहा कि देविंदर जी ने बहुत ही सरल शब्दों में किसानों के जीवन-मरण के सवाल पर प्रकाश डाला। किसानों की दशा ठीक आज की स्थिति की तरह कोई सवा सौ साल पहले भी महात्मा गांधी ने देखी होगी और तब उन्होंने एक बात कही थी जो आज भी कमोबेश उसी तरह कही जा रही है। - उन्होंने कहा था आप भारतीय किसान से बात करना शुरु कीजिए। जैसे ही वह मुंह खोलता है बुध्दिमत्तापूर्ण बाते निकलनी शुरू हो जाती है।ऊपर से गंवार दिखने वाले व्यक्ति के अंदर आप आध्यात्मिकता का सागर पाँएगे।
उक्त विचार निरंतर पहल मासिक पत्रिका के तीसरे स्थापना दिवस समारोह के अवसर पर एक आयोजन में खेती-खेतिहरों की दशा और मीडिया की भूमिका विषय पर एक बहुत ही विचारोत्तेजक गोष्ठी में चंडीगढ़ से आये, आयोजन के मुख्यातिथि देश विदेश में प्रसिद्ध कृषि नीति विशेषज्ञ श्री देविंदर शर्मा, विशिष्ट अतिथि हमारे शहर रायपुर के प्रसिद्ध कृषि विज्ञानी डॉ संकेत ठाकुर , दिल्ली से आये मेरे सहकर्मी रहे वरिष्ठ पत्रकार और दो चर्चित किताबो के लिए प्रसिद्ध लेखक श्री सुदीप ठाकुर, प्रदेश के मुख्यमंत्री के कृषि नीति सलाहकार एवं इस विषय के असाधारण जानकर श्री प्रदीप शर्मा और आयोजन की सदारत कर रहे पूर्व प्रशासनिक अधिकारी वरिष्ठ पत्रकार , जनसरोकारों पर लिखने वाले प्रसिद्ध लेखक डॉ सुशील त्रिवेदी जी ने व्यक्त किए।
सभी अतिथियों ने निरंतर पहल पत्रिका के कंटेंट, रूपसज्जा और इस आयोजन में इस सार्थक और जरुरी विषय के चयन की सराहना की। सुनने के लिये आये आमंत्रित अतिथियों ने भी इस आयोजन की सार्थकता और विशेषज्ञ देविंदर शर्मा को मंत्रमुग्ध हो कर डेढ़ घण्टे से भी अधिक समय तक सुन कर उनके सारगर्भित व्याख्यान की खूब प्रशंसा की।
■ केन्द्रीय कैबिनेट के महत्वपूर्ण फैसले
● खाद्य तेल 13 दिन में 30 रुपये, प्याज 4 माह में 35 रुपये और आटा 6 महीने में 7 रुपये महंगे हो गए ● सरकार ने किसानों को राहत तो दी पर मुनाफाखोरों ने बाजार में दाम ज्यादा बढ़ाए इन्हे नहीं रोका..
■ हरेली छत्तीसगढ़ी लोक का सबसे लोकप्रिय और सबसे पहला त्यौहार है। ■ पर्यावरण को समर्पित यह त्यौहार छत्तीसगढ़ी लोगों का प्रकृति के प्रति प्रेम और समर्पण दर्शाता है।
■ हमारे साझा सरोकार "निरंतर पहल" एक गम्भीर विमर्श की राष्ट्रीय मासिक पत्रिका है जो युवा चेतना और लोकजागरण के लिए प्रतिबद्ध है। शिक्षा, स्वास्थ्य, खेती और रोजगार इसके चार प्रमुख विषय हैं। इसके अलावा राजनीति, आर्थिकी, कला साहित्य और खेल - मनोरंजन इस पत्रिका अतिरिक्त आकर्षण हैं। पर्यावरण जैसा नाजुक और वैश्विक सरोकार इसकी प्रमुख प्रथमिकताओं में शामिल है। सुदीर्ध अनुभव वाले संपादकीय सहयोगियों के संपादन में पत्रिका बेहतर प्रतिसाद के साथ उत्तरोत्तर प्रगति के सोपान तय कर रही है। छह महीने की इस शिशु पत्रिका का अत्यंत सुरुचिपूर्ण वेब पोर्टल: "निरंतर पहल डॉट इन "सुधी पाठको को सौपते हुए अत्यंत खुशी हो रही है। संपादक समीर दीवान
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